हर एक जातक/जातिकाओ पर किसी न किसी ग्रह की महादशा और अंतरदशा चलती रहती है इसके बाद भी प्रत्यंतर, प्राण दशा शुष्म दशा रहती है।लेकिन यहाँ महत्वपूर्ण दशा महादशा में अंतरदशा ही होती है तो किसी ग्रह की महादशा में किसी ग्रह की अंतरदशा या किसी ग्रह की अंतरदशा में किसी ग्रह की महादशा कैसा फल देगी यह सब कुंडली मे ग्रहो की स्थिति पर निर्भर करता है इसी विषय पर आज बात करते है:- जब भी किसी ग्रह की महादशा चल रही होती है तो उस समय यह देखना बहुत जरूरी होता है कि महादशा शुभ है या अशुभ, कमजोर है या बलवान उसके बाद अंतरदशा के ग्रह में भी यही सब देखा जाता है।लेकिन यहाँ प्रश्न है महादशा में अंतरदशा या अंतरदशा में किसी ग्रह की महादशा शुभ होगी या नही इसके लिए इन दशाओ के ग्रहों के बीच संबंध देखा जाता है जैसे कि:- यदि महादशा का स्वामी किसी केंद्र त्रिकोण का स्वामी है ओर अंतरदशा का स्वामी ग्रह भी केंद्र त्रिकोण का स्वामी है या दूसरे/"ग्यारहवे भाव का स्वामी है और दोनों ही ग्रह बलवान और शुभ है तो इनकी दशा आपस मे बहुत शुभ फल देगी।। अब यदि महादशा का स्वामी अशुभ हो गया हो और अंतरदशा का स्वामी भी अशुभ हो गया हो तब उस समय जब भी दोनो ग्रहो की दशा एक साथ होगी या आएगी तो बहुत अशुभ समय रहेगा।। इसी तरह महादशा खराब है और अंतरदशा का ग्रह शुभ फल कारक हो तब अंतरदशा का ग्रह भी थोड़े ही सामान्य शुभ फल दे पाएगा ज्यादा नही इसके उल्टा महादशा का स्वामी ग्रह शुभ और बलवान है और अंतरदशा का स्वामी अशुभ स्थिति में है तब जितने समय तक उस अंतरदशा स्वामी ग्रह की अंतरदशा रहेगी उतने समय तक समय खराब रहेगा, महादशा बहुत बलवान और शुभ है तब अंतरदशा ग्रह भी खराब होने पर ज्यादा अशुभ फल नही देगा,कमी करके अशुभ फल देगा। अब किसी ऐसे ग्रहो की आपस मे ग्रह दशा हो जो एक दूसरे से छठे और आठवे स्थान पर बैठे हो यव एक दूसरे से बारहवे स्थान पर बैठे हो जैसे कि चौथे भाव मे चौथे का स्वामी हो और नवे भाव का स्वमक नवे भाव मे हो तब दोनो एक दूसरे से छठे और आठवे स्थान पर है इस कारण यह दोनों एक दूसरे की महादशा अंतरदशा में ज्यादा शुभ फल नही दे पाएंगे जबकि दोनो शुभ स्थानों के स्वामी है।। अब यदि केंद्र के स्वामी ग्रह की महादशा/अंतरदशा हो और साथ मे त्रिकोण के स्वामी की अंतरदशा/महादशा हो और दोनों ही ग्रह एक दूसरे से भी गिनने पर शुभ स्थिति में हो तब ऐसी दशा बहुत शानदार फल देगी, जैसे कामयाबी,उन्नति,सुख, धन,रोजगार वृद्धि आदि।। इसी तरह केंद्र 2,4,7,10 या त्रिकोण 5,9 के स्वामी ग्रहो के साथ 6,8,12 भगव के स्वामी की महादशा में अंतरदशा या अंतरदशा में महादशा कभी भी अच्छा फल नही देगी लेकिन 6,8,12 भाव के स्वामी की महादशा में इन्ही ग्रहो की अंतरदशा और यह ग्रह इन्ही 6,8,12 या तीसरे घर मे होंगे तो इनकी दशा अच्छा फल देगी आदि।। इस तरह से ग्रह यदि शुभ भी हो लेकिन ग्रह दशा के समय उनका संबंध ठीक नही हो जैसे कि 6, 8संबंध या अनुकूल भाव के स्वामी न हो आपस मे जैसे केंद्र/त्रिकोण स्वामी के समय 6,8,12भाव के स्वामी की दशा आदि।तो किस समय किस ग्रह की महादशा में अंतरदशा और किस ग्रह की अंतरदशा में महादशा कैसा शुभ/अशुभ फल देगी या शुभ/अशुभ फल देगी भी या नही यह कुंडली मे इन ग्रहों की स्थिति पर निर्भर करेगा क्योंकि ग्रह दशाएं ही सबसे महत्वपूर्ण होती है।
nice article