वर्गोत्तम ग्रह क्या होते है? भाग-1 यदि कोई ग्रह नवमांश कुंडली में जिस राशि मे होता है, वह राशि लग्न कुंडली के जिस भाव मे होती है, तो वह ग्रह उस संबंधित भाव को भी प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए एक मेष लग्न की कुंडली में सूर्य तृतीय भाव मे मिथुन राशि में है। नवमांश कुंडली में सूर्य मकर राशि मे है। मकर राशि लग्न कुंडली में दशम भाव में है, अतः अपनी दशा या अंतर्दशा मे सूर्य लग्न कुंडली के पराक्रम भाव के साथ कर्म भाव को भी प्रभावित करेगा। अतः भाव स्थिति के अनुसार प्रत्येक ग्रह लग्न कुंडली के दो भावों को प्रभावित करता है। जब कोई ग्रह लग्न और नवमांश कुंडली में एक ही राशि मे होता है, तो वह लग्न कुंडली के एक ही भाव को दोहरे रूप से प्रभावित करता है। इस स्थिति को वर्गोत्तम कहते है। वर्गोत्तम ग्रह का बल दोगना होता है। उदाहरण के तौर पर प्रस्तूत कुंडली में मंगल लग्न और नवमांश दोनो मे ही सिंह राशि में है। अतः मंगल इस कुंडली में वर्गोत्तम ग्रह है। यदि वर्गोत्तम ग्रह अपनी स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि, और उच्च राशि में हो तो उसे महावर्गोत्तम ग्रह कहते है। प्रस्तुत कुंडली में बुध लग्न और नवमांश कुंडली में मिथुन राशि में है, मिथुन बुध की अपनी राशि है, अतः बुध इस कुंडली में महावर्गोत्तम ग्रह है। वर्गोत्तम तीन प्रकार का होता है। 1- राशि वर्गोत्तम 2-भाव वर्गोत्तम 3-तत्व वर्गोत्तम राशि वर्गोत्तमः जब एक लग्न और नवमांश कुंडली में एक राशि मे होता है तो राशि वर्गोत्तम कहलाता है, जोकि उपरोक्त समझाया गया है। भाव वर्गोत्तमः जब कोई ग्रह लग्न और नवमांश कुंडली में एक ही भाव मे होता है, राशि समान या अलग भी हो, तो भाव वर्गोत्तम होता है। तत्व वर्गोत्तमः जब कोई ग्रह लग्न और नवमांश कुंडली में एक ही तत्व राशि मे होता है तो तत्व वर्गोत्तम कहते है। जहाँ राशि अलग हो सकती है, लेकिन तत्व एक होना चाहिए। अग्नि तत्व: मेष, सिंह, और धनु पृथ्वी तत्व: वृषभ, कन्या, और मकर वायु तत्व: मिथुन, तुला,और कुम्भ जल राशि : कर्क, वृश्चिक, और मीन उदाहरण के लिए प्रस्तुत कुंडली में मंगल लग्न और नवमांश कुंडली में सिंह राशि मे है। सिंह अग्नि तत्व की राशि है, मंगल भी आग्नेय ग्रह है। अतः वह सम तत्व राशि में है। और मंगल के बल मे वृद्धि करता है। इसी प्रकार बुध भी वायु जोकि सम तत्व की राशि में है। क्रमशः