ज्योतिष

Share

Astro Pawan Kumar Pandey Ji 21st Dec 2022

*वैदिक ज्योतिष में कुंडली विश्लेषण कैसे करें :-*

जन्मपत्री व्यक्ति के जीवन की घटनाओ की संभावना बताती है कि आने वाला समय कैसा हो सकता है. जीवन में कौन सा समय अच्छा तो कौन सा समय व्यक्ति के लिए बुरा हो सकता है आदि बातों का पूर्वानुमान इस विद्या के द्वारा लगाने का प्रयास किया जाता है ताकि व्यक्ति संभल सके, वैसे तो व्यक्ति का भाग्य पहले ही लिखा जा चुका होता है लेकिन फिर भी कुण्डली के माध्यम से बुरी बातों का प्रभाव जप-तप आदि द्वारा कम करने का प्रयास किया जाता है. जन्म कुण्डली में होता क्या है, यह बनती कैसे है और इसे किस तरह से पढ़ा जाना चाहिए आदि बातो को इस लेख के माध्यम से पाठकों को बताने का यह प्रयास भर है.  

*जन्म कुंडली का परिचय –*

जन्मकुंडली एक समय विशेष पर आकाश में विचरते ग्रहों का एक नक्शा है जिसे जन्म कुंडली में उतारा जाता है जिससे एक समय विशेष पर ग्रहो की स्थिति का पता चलता है कि कौन सा ग्रह किस राशि अथवा भाव में गोचर कर रहा है. हर जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें भाव कहा जाता है. इस तरह से हर कुण्डली में बारह भाव होते हैं जिनकी अपनी विशेष भूमिका होती है. जन्म कुण्डली बनाने का अलग-अलग स्थानो पर भिन्न-भिन्न तरीका होता है. भारत में भी उत्तर भारतीय पद्धति, दक्षिणी भारतीय पद्धति और पूर्वांचल क्षेत्र की एक अलग पद्धति होती है.

जन्म कुंडली बनाने के लिए बारह राशियों का उपयोग होता है क्योंकि भाव बारह हैं तो हर भाव में एक राशि का अपना आधिपत्य होता है. इस तरह से बारह अलग भावों में बारह अलग राशियाँ आती है. जन्म के समय चक्र पर जो राशि उदय होती है वह कुंडली के पहले भाव में आ जाती है और पहला भाव व्यक्ति का लग्न हो जाता है और लग्न में जो राशि आती है उसका स्वामी लग्नेश कहलाता है. अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा(एंटी क्लॉक वाइज) में चलती है. माना पहले भाव में कर्क राशि आती है तब दूसरे में सिंह राशि आएगी और बाकी इसी क्रम से चलते हुए बारहवें भाव में मिथुन राशि आएगी.

जब आप कुण्डली को देखें तो लग्न, लग्नेश को देखें कि वह किस हालत में है अर्थात बली हैं या निर्बल है या सामान्य सी अवस्था में ही हैं. फिर आप चंद्रमा को देखें कि किस राशि में है और बली है या निर्बल है? उसके बाद आप चंद्र जिस राशि में है उस राशि स्वामी का अध्ययन करें, इसे चंद्रेश कहेगें. चंद्र व चन्द्रेश का बल भी देखा जाना चाहिए. अगर ये चारों बली हैं तो कुण्डली काफी बली हो जाती है. इनके बलाबल में कमी होने पर कुण्डली कमजोर हो जाती है. इसी तरह से कुण्डली के हर पहलू का निरीक्षण किया जाता है.  

*भाव का परिचय –*

जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंध रखते हैं. कुण्डली में कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं. जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है. हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है इसलिए भाव, भावेश तथा भाव के कारक का अध्ययन जरुर करना चाहिए कि वह कुण्डली में किस अवस्था में है. अकसर व्यक्ति भाव तथा भाव स्वामी यानि भावेश का ही अध्ययन करता है और कारक को भूल जाता है. जिससे फलित भी कई बार ठीक नहीं बैठता है.

कुण्डली में पहले, पांचवें तथा नवें भाव को अत्यधिक शुभ माना गया है और इन्हें त्रिकोण स्थान कहा गया है. फिर चौथे,सातवें, दसवें भाव को त्रिकोण से कुछ कम शुभ माना गया है और इन्हें केन्द्र स्थान कहा गया है. पहले भाव को त्रिकोण तथा केन्द्र दोनों का ही दर्जा दिया गया है. तीसरे, छठे तथा एकादश भाव को त्रिषडाय का नाम दिया गया है और इन्हें अशुभ भाव ही कहा गया है. दूसरे, आठवें तथा बारहवें भाव को सम कहा गया है लेकिन आठवें व बारहवें भाव में समता जैसी कोई बात दिखाई नहीं देती है बल्कि आठवां भाव तो सदैव रुकावट देता है. फिर भी जो रिसर्च करते हैं उनकी कुण्डली में इसी भाव से रिसर्च देखी जाती है. साथ ही पैतृक संपत्ति व बिना कुछ किए धन की प्राप्ति अथवा कमीशन आदि इसी भाव से देखा जाता है. इसलिए यह भाव कई बातों में अशुभ होने के साथ कई बार शुभता भी दे देता है. शायद इसी वजह से इस भाव को सम कहा गया है.

बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं. अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं. किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है जैसे कि पंचम भाव का स्वामी यदि अपने भाव से एक भाव पीछे चतुर्थ भाव में चला जाता है तब इसे कई बातों में अच्छा नहीं माना जाता है. वैसे त्रिकोण का संबंध केन्द्र से बनना राजयोग दे रहा है लेकिन पांचवें भाव से मिलने वाली अन्य कुछ बातों में कमी आ सकती है क्योंकि हर भाव का पिछला भाव उससे बारहवाँ बन जाता है और बारहवाँ भाव व्यय भाव हैं जिससे उस भाव के फलों का व्यय या ह्रास हो जाता है. यदि भाव स्वामी का अपने भाव से अगले भाव में जाता है तब यह अच्छा माना जाता है क्योंकि आगे जाना भाव के फलों में वृद्धि करने वाला होता है लेकिन यहाँ भी यह देखना जरुरी है कि अगला भाव बुरा तो नहीं है अगर हां तब फलों में वृद्धि तो होगी लेकिन पहले कुछ हानि भी हो सकती है यदि भाव स्वामी पीड़ित हो रहा है.

*ग्रहो की स्थिति –*

ग्रह स्थिति का अध्ययन बहुत महत्वपूर्ण है. पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है. ग्रह जिस राशि में स्थित है वह उसके साथ कैसा व्यवहार करती है अर्थात ग्रह मित्र राशि में स्थित है या शत्रु राशि में स्थित है. ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें. ग्रह, कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बना रहा है. जिनसे संबंध बना रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे. जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं. इन सभी बातों को आप “ ” या “-” से लिख सकते हैं कि कितनी बातें कुण्डली के लिए अच्छी हैं और कितनी खराब. इससे आप कुंडली की क्षमता का पता भी लगा सकते हैं कि कुंडली में देने की क्षमता कितनी है.

जो ग्रह स्थिति आप जन्म कुण्डली में देख रहे हैं उन्हें नवांश कुण्डली में जरुर देखें क्योंकि कई बार जन्म कुण्डली का बली ग्रह नवांश में जाकर कमजोर हो जाता है तब अच्छे फलों की प्राप्ति नहीं होती है और अकसर व्यक्ति समझ नहीं पाता कि कुंडली बली होने पर भी शुभ फल क्यों नहीं दे पा रही है. इसलिए वर्ग कुंडलियों का अध्ययन आवश्यक माना गया है. जिस भाव के फल देखने हैं तो उस भाव से संबंधित वर्ग कुंडली का अध्ययन करें. उदाहरण के लिए यदि संतान संबंधी फल देखने हैं तब जन्म कुण्डली के पंचम भाव, पंचमेश तथा संतान का कारक ग्रह गुरु का जन्म कुण्डली में तो अध्ययन करेगें ही, साथ ही इन सभी को सप्तांश कुंडली में भी देखेगें कि यहाँ इनकी क्या स्थिति है. साथ ही सप्तांश कुंडली के लग्न, लग्नेश, पंचम भाव, पंचमेश का भी अध्ययन करेगें. जितनी कम पीड़ा उतना अच्छा फल होगा. इसी तरह से सभी वर्ग कुंडलियों का अध्ययन किया जाएगा तभी सटीक फलादेश दिया जा सकता है.

*कुंडली का फलकथन –*

भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद फलित करने का प्रयास करें. पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें. कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास करें. भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करें. यदि तीनो बली हैं तो चीजें बहुत अच्छी होगी, दो बली हैं तब कुछ कम लेकिन फिर भी अच्छी होगी और यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलेगे.

*दशा का अध्ययन*

सर्वप्रथम यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है. जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, देखें. महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्र है या शत्रु हैं, देखें. कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में है, देखें. उदाहरण के लिए महादशानाथ जिस भाव में स्थित है तो उस भाव से अन्तर्दशानाथ कौन से भाव में आता है, यह देखें. माना महादशानाथ पांचवें भाव में है और अन्तर्दशानाथ बारहवें भाव में है तब दोनों ग्रह एक – दूसरे से 6/8 अक्ष पर स्थित होगें, इसे षडाष्टक योग भी कहा जाता है जो कि शुभ फल देने वाला नहीं होगा. इसी तरह से यदि महादशानाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में शत्रुता का भाव रखते हैं तब भी शुभ फलों में कमी हो सकती है. शुभ फल मिलने के लिए या किसी कार्य की सिद्धि होने के लिए महादशानाथ, अन्तर्दशानाथ तथा प्रत्यंतरदशानाथ में से किन्हीं दो का आपस में मित्र होना जरुरी है.

*इसके बाद यह देखें कि महादशानाथ बली है या निर्बल है.*

महादशानाथ का जन्म कुंडली और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन जरुरी है.

*गोचर का अध्ययन –*

दशा के अध्ययन के साथ गोचर का अपना महत्वपूर्ण स्थान होता है. किसी काम की सफलता के लिए अनुकूल दशा के साथ अनुकूल गोचर भी आवश्यक है. किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है. ये दोनो ग्रह जब किसी भाव अथवा भाव स्वामी को एक साथ दृष्ट करते हैं तब उस भाव के फल मिलने का समय शुरु होता है लेकिन संबंधित भाव के फल तभी मिलेगें जब उस भाव से संबंधित दशा भी चली हुई हो और कुंडली उस भाव संबंधित फल देने का प्रोमिस भी कर रही हो. यदि दशा अनुकूल नहीं होगी केवल ग्रहों का गोचर हो रहा होगा तब भी फलों की प्राप्ति नहीं होती है।


Like (0)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।