कुण्डली में ग्रहों के प्रभाव दिखाने का समय । कुण्डली में नौ ग्रह अपना समय आने पर पूरा प्रभाव दिखाते हैं। वैसे अपनी दशा और अन्तरदशा के समय तो ये ग्रहअपने प्रभाव को पुष्ट करते ही हैं लेकिन 22 वर्ष की उम्र से इन ग्रहों का विशेष प्रभाव दिखाई देना शुरू होता है। जातककी कुण्डली में उस दौरान भले ही किसी अन्य ग्रह की दशा चल रही हो लेकिन उम्र के अनुसार ग्रह का भी अपना प्रभावजारी रहता है। देखते हैं कि ज्योतिष के अनुसार उम्र में कौनसा ग्रह प्रभावी होता है- 22 से 24 वर्ष इस समय सूर्य का प्रभाव अधिक रहता है। आदमी टीन एज को पार कर वयस्क अवस्था मेंपहुंचता है। अधिकार बढते हैं और आंखों में सूर्य का तेज झलकने लगता है। इस समय जो व्यक्ति झूठ से दूर रहता है औरकिए गए वादे निभाता है सूर्य लम्बे समय तक उसके साथ रहता है। यह वय बीत जाने के बाद भी सूर्य का प्रभाव बना रहता है। सूर्य प्रभावी लोगों के लिए जहां यह उत्तम काल होता है वहीं शनि एवं राहू प्रभावी लोगों के लिए कष्टकारीसमय होता है। 24 से 25 वर्ष यह चंद्रमा का काल होता है। नए आइडिया आते हैं। दिमाग अधिक उपजाऊ हो जाता है। जातक अपनाविस्तार करता है। पढाई, नौकरी, परिवार या अन्य उन क्षेत्रों में जिन में वह पहले से लगा होता है। इस समय जातककी आंखों में शीतल चमक आने लगती है। ये शुद्ध प्रेम का काल होता है। 25 से 28 वर्ष यह शुक्र का काल है। इस काल में जातक में कामुकता बढती है। शुक्र चलित लोगों के लिए स्वर्णिमकाल होता है और गुरू और मंगल चलित लोगों के लिए कष्टकारी। मंगल प्रभावी लोग काम से पीडित होते हैं और शुक्रवाले लोगों को अपनी वासनाएं बढाने का अवसर मिलता है। इस दौरान जो लव मैरिज होती है उसे टिके रहने की संभावना अन्य कालों की तुलना में अधिक होती है। शादी के लिहाज से भी इसे उत्तम काल माना जा सकता है। 28 से 32 वर्ष यह मंगल का काल है। हालांकि मंगल को उग्र बताया गया है लेकिन यह 28 वर्ष की उम्र के बाद अपनेसर्वाधिक शानदार परिणाम देताह है। गौर करें कि वास्तव में मंगल सेनापति होता है। यानि पराक्रम और बुद्धि कौशलसाथ-साथ ऐसे में गधिया पच्चीस (25 साल की उम्र तक जवान लोग काफी बेवकूफियां करते हैं कभी जोश में तो कभीअज्ञान में इसलिए इसे गधिया पच्चीसी कहता हूं।) का समय बीत जाने के बाद जातक सेनापति बनने के लिए तैयारहोता है। अपने परिवार के लिए, कैरियर के लिए या फिर आपदाओं पर नियंत्रण के लिए। 32 से 36 वर्ष यह बुध का काल होता है। जातक अपने भले बुरे के अलावा आगामी जीवन के बारे में अधिक कुशलतासे सोचने लगता है। बच्चों और संबंधों पर अधिक गौर किया जाता है। बुध का काल इतना अधिक प्रभावी औरमहत्वपूर्ण है कि इसे छोटे पैराग्राफ में समेटा नहीं जा सकता। लेकिन इतना कहा जा सकता है कि यह परिवर्तन कासबसे महत्वपूर्ण काल होता है। इसके बारे में चर्चा बाद में विस्तार से करूंगा। 36 से 42 वर्ष शनि का काल। यह रुककर देखने का समय है कि चल क्या रहा है। बाकी लोग क्या कर रहे हैं। लम्बीप्लानिंग बनती है। व्यवस्थाएं स्थिरता की ओर जाती है। लम्बे एग्रीमेंट होते हैं जो जीवन को स्थाई बनाने का प्रयासकरते हैं। जातक इस काल में घर भी बना लेता है। परिवार को जमाने का काम किया जाता है। 42 से 48 वर्ष राहू का समय। यह विशुद्ध रूप से चिंता का काल होता है। इस समय आदमी चिंतन करता है। हर बातपर। चाहे वह उससे संबंधित हो या न हो। इन्हें थिंक टैंक की बजाय चिंता का टैंक कहा जा सकता है। कई लोग इसदौरान डूम शोवर हो जाते हैं। यानि उन्हें लगता है कि बस बहुत हो गया अब तो प्रलय आ ही जाएगी। 48 से 54 वर्ष यह सक्रिय जीवन का लगभग अंतिम काल है। यह केतू का समय है। इस समय जातक जिस काम को अब तक करता आया है उसे लगातार करता रहता है। उससे पीडित भी रहता है और उसे ढोता भी है। यानि रो धो करयह काल निकालता है। विकास कितना होता है यह तो स्पष्ट नहीं होता लेकिन काम बहुत रहता है। जो लोग 48 सेपहले खाली बैठे होते हैं उनके इस काल के दौरान खाली बैठे रहने की संभावना अधिक होती है। कार्यशील लोग नयाकाम करने की बजाय जिस काम में लगे हैं उसी में लगे रहते हैं। इसके बाद का समय प्रभावी नहीं माना गया है। ऊपर बताए गए ग्रह और समय अन्य ग्रहों की दशा में भी अपना प्रभावदिखाते हैं। यह एक सामान्य नियम है हर कहीं लागू नहीं होता लेकिन अन्य ग्रहों की गणना के दौरान ज्योतिषी इसकाभी ध्यान रखते हैं इससे प्रॉब्लम सॉल्व करने में मदद मिलती है।