ज्योतिष के आधार पर विद्या अध्ययन हेतु विषय के चयन की संभावनाऐं
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ज्योतिष का भावार्थ ईश्वर की ज्योति है । अर्थात यह एक ऐसा शास्त्र है जिसकें माध्यम से ईश्वर हमें संकेत देतें है कि हमें किन-किन क्षैत्रों में कर्म करने पर सफलता मिलेगी एवं कौनसें क्षैत्र हमारे लिये र्निषेध है । जिस प्रकार यदि व्यक्ति पानी के प्रवाह की दिशा में तैरता है तो उसें जल्दी ही किनारा मिल जाता है एवं यदि वह पानी के प्रवाह के विपरीत दिशा में तैरता है तो उसकें किनारें तक पहुॅचने में विफलता की सम्भावना अधिक रहती है । इसी प्रकार हम ज्योतिषीय आधार पर अपने जीवन में कियें जाने वालें कर्मो की दिषा निर्धारित करतें रहें तो हमें शीघ्र ही सफलता मिलती है एवं उसकें विपरीत दिषा में हमारे कर्मो को करने का प्रयास करतें है तो सफलता या तो संदिग्ध हो जाती है अथवा काफी अधिक परिश्रम के पष्चात हम गन्तव्य तक पहुॅचतें है ।
आज के लेख की भूमिका का मेरा मूल उददेश्य विद्याार्थी वर्ग के विषय चयन में सहयोग के लियें ग्रहों की भूमिका का विश्लेशण करना है । विद्याार्थी माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के पष्चात इस पेशोपेश में रहता है कि मेरे द्धारा किस विषय का चयन किया जायें ताकि वह विषय मेरे लिये रोजगारोन्मुख हो सकें ।
ज्योतिष की पौराणिक पुस्तकों में दिये गयें संकेतो एवं मेरे अनुभव के आधार पर मैनें यह पाया है कि सर्वप्रथम गुरू एवं बुध के बलाबल को देखना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा के यह दो प्रमुख नैसर्गिक कारक ग्रह है यदि यह दोनों बलषाली हो साथ ही कुण्ड़ली का पंचमेश एवं नवमेश भी मजबूत हो तो जातक निश्चित ही उच्च षिक्षा प्राप्त करता है ।
अब प्रष्न यह उत्पन्न होता है कि जातक किस क्षैत्र की शिक्षा ग्रहण करे जो उसकें भावी जीवन के लियें उपयुक्त हों । यदि किसी जातक की कुण्ड़ली में मंगल एवं सूर्य योगकारक ग्रह होकर युक्ति या परस्पर दृष्टि संबध बना रहें हो तो जातक को बाॅयोलाॅजी सब्जेक्ट लेना चाहियें ऐसा जातक चिकित्सा क्षैत्र में काफी सफल होतें देखे गयें है । यदि अंशो एवं षड़बल के आधार पर भी सूर्य एवं मंगल बलशाली हो तो जातक निश्चित ही एक सफल चिकित्सक बनता है,साथ ही यदि सूर्य एवं मंगल दोनों अपने मित्र ग्रहों के नक्षत्रों में हो तो ‘‘सोने पर सुहागा’’ होता है । यदि इन ग्रहों के बलों में क्षीणता हो किन्तु इनकी युक्ति या परस्पर दृष्टि संबध हो तो जातक चिकित्सा क्षैत्र की अन्य नौकरियों अर्थात नर्सिग कर्मी आदि बनता है । सूर्य मंगल की युक्ति वालें जातक चिकित्सा क्षैत्र अर्थात् मेडिकल व्यावसाय में सफल होतें देखें गयें है ।
सूर्य मंगल की युक्ति लग्न,पंचम, दशम अथवा एकादश भाव में हो तो जातक चिकित्सक होने के साथ-साथ वह किसी अन्य क्षैत्र में पी.जी. भी करता है । सूर्य मंगल की उक्त स्थानों पर स्थिति जातक को सर्जरी में पी.जी. करवाती है ।
यदि सूर्य मंगल के साथ यदि बुध भी योगकारक ग्रह होकर इनके साथ हो जातक के न्यूरोसर्जन बननें की संभावनायें अधिक होती है । इसी प्रकार यदि सूर्य मंगल के साथ गुरू की युक्ति हो तो जातक स्त्रीरोग विषेशज्ञ बनता है । सूर्य मंगल की युक्ति के साथ यदि शनि भी योगकारक होकर बैठा हो तो जातक अस्थिरोग सर्जन होता है ।
इसी प्रकार यदि सूर्य मंगल के साथ शुक्र एवं बुध भी हो तो जातक चर्म रोग विषेशज्ञ होता है । इसी प्रकार हम चिकित्सा क्षैत्र की अन्य शाखाओं का भी विश्लेशण कर सकतें है ।
सूर्य मंगल की युक्ति वालें जातक विद्युत संबधी एवं अग्नि,होटल आदि व्यवसायों में भी सफल होतें देखें जा सकतें है । इन सबका विष्लेशण करतें समय जातक की अध्ययन के समय चल रही विशोंतरी महादशा,अन्र्तेदशा एवं प्रत्यान्तरदशा का विश्लेशण करना भी आवश्यक होता है ।