राहु का 12 भावों में फल

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Astro Rakesh Periwal 30th Jul 2021

राहु का 12 भावों में फल

प्रथम भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में सभी नौ ग्रहों में राहु को विशेष स्थान प्राप्त है। ज्योतिष शास्त्र में वैसे तो राहु को एक क्रूर ग्रह की संज्ञा दी गई है, पर माना जाता है कि जिस भी जातक पर राहु की कृपा हो जाए वो उसे रंक से राजा बना सकते हैं। आइए जानते हैं कुंडली के प्रथम भाव में राहु के फल।

कुंडली का पहला भाव जिसे लग्न भी कहा जाता है यहां पर राहु विराजमान होने पर जातक को मिले जुले परिणामों की प्राप्ति होती है। ऐसे जातक जिनके लग्न में राहु हो वो परोपकारी और धैयर्वान होते हैं। कुंडली के पहले भाव में स्थित राहु जातक के कद को ऊंचा बनाता है। ऐसा व्यक्ति कभी रोगी तो कभी निरोगी बना रहता है।

माना जाता है कि जिन भी जातकों की कुंडली के प्रथम भाव में राहु देव विराजमान होते हैं ऐसे जातकों को अपने जीवनकाल में धन की कमी नहीं होती। उन्हें किसी न किसी प्रकार से धन की प्राप्ति होती रहती है। ऐसे लोग समय समय पर दुसरों के धन का प्रयोग अपने लिए करते हैं और उसी धन से अन्य लोगों को भी लाभ पहुंचाते हैं।

वैदिक ज्योतिष में माना जाता है कि लग्न में राहु होने पर व्यक्ति की वेशभूषा प्रभावशाली होती है। ऐसे जातक छोटे से स्तर से शुरुआत कर जीवन में बड़ी ऊंचाइयों को प्राप्त करते हैं और अपने जीवन काल में विभिन्न प्रकार के भोगों का उपभोग करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने से बड़ों से विनम्रता पूर्वक व्यवहार करते हैं। पहले घर में स्थित राहु व्यक्ति को साहसिक बनाता है और ऐसा व्यक्ति लोगों से अपना काम निकलवाने में निपुण होता है। प्रथम भाव में स्थित राहु शिक्षा में तो कुछ व्यवधान उत्पन्न करता है लेकिन ऐसा व्यक्ति अपने जीवन काल में कई प्रकार का ज्ञान प्राप्त करता है। यहां स्थित राहु व्यक्ति को बुद्धिमान और व्यवहार कुशल बनाता है और व्यक्ति अपने वादे को पूरा करने में विश्वास रखता है।

प्रथम भाव में स्थित राहु के कुछ अशुभ परिणाम भी बताए जाते हैं जैसे लग्न में स्थित राहु व्यक्ति को अति साहसी या कहना चाहिए कि कई बार दुस्साहसी बनाता है। व्यक्ति में बेवजह शक करने की आदत होती है और वो कई बार गलत को सही और सही को गलत समझता रहता है। ऐसे व्यक्ति चाहते हैं कि लोग उनके दिशा निर्देशों के अनुसार कार्य करें जिससे कई बार इनके संबंध लोगों से अत्याधिक खराब भी हो सकते हैं। प्रथम भाव में स्थित राहु को वैवाहिक जीवन और साझेदारी के लिहाज से भी अच्छा नहीं माना जाता।

द्वितीय भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के द्वितीय भाव को धन भाव भी कहा जाता है। इस भाव से जातक की आर्थिक स्थिति, उसे प्राप्त होने वाले परिवार का सुख, वाणी, जीभी, खाना पीना और संपत्ति के बारे में भी जाना जा सकता है। आइए जानते हैं राहू के दूसरे भाव में होने के प्रभाव।

कुंडली के दूसरे भाव में राहु जातक को शुभ और अशुभ दोनों तरह के फल प्रदान करते हैं। माना जाता है कि ऐसे जातकों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है और उन्हें राजा या सरकार के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। धन भाव में स्थित राहु जातक को व्यवहार कुशल भी बनाता है और लोग ऐसे जातकों पर आराम से भरोसा कर लेते हैं ये अलग बात है कि ये किसी के विश्वास पर खरे उतरे या न उतरे। ऐसे जातकों की ठोड़ी पर किसी न किसी प्रकार का निशान होता है और ऐसे जातकों की नाक सामन्यता लम्बी होती है।

द्वितीय भाव में स्थित राहु जातक को सभी प्रकार का सुख प्रदान करते हैं। ऐसे व्यक्ति अपने जीवन काल में गौरव और आदर प्राप्त करते हैं और उन्हें विदेशों से भी धन की प्राप्ति होती है। माना जाता है कि यहां स्थित राहु जातक को विदेशों से धन कमाने के बहुत मौके प्रदान करता है और जातक को जीवनकाल में देश और विदेशों में घूमने के बहुत मौके प्राप्त होते हैं। ऐसे जातक अपने शत्रुओं को आराम से परास्त कर लेते हैं।

दूसरे भाव में राहु होने से जातक की संतान की संख्या सामान्यता कम ही होती है और यहां स्थित राहु व्यक्ति के कामों में किसी न किसी प्रकार का व्यवधान उत्पन्न करता रहता है। ऐसे जातकों की वाणी में किसी न किसी प्रकार के दोष होने की भी संभावना होती है। ऐसे जातक मांस मदिरा या किसी प्रकार के नशे के शौकीन भी हो सकते हैं। माना जाता है द्वितीय भाव में अशुभ राहु कई बार पैतृक संपदा का विनाश का कारण भी हो सकते हैं।

द्वितीय भाव में राहु कई बार जातक को बहुत खर्चीला भी बनाता है और व्यक्ति बेमतलब के कार्यों पर धन को बरबाद करता है।

तृ्तीय भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के तीसरे भाव को सहज भाव या पराक्रम भाव भी कहा जाता है। इस भाव से किसी भी जातक के छोटे भाई बन, नौकर चाकर, धैर्य, साहस, बल कंधे और हाथ आदि का विचार किया जाता है। जानिए राहु के तीसरे भाव में होने के फल।
 
कुंडली के तीसरे भाव में स्थित राहु को अरिष्टनाशक और दुखों का नाश करने वाला बताया गया है। वैदिक ज्योतिष में जाता है कि इस भाव में स्थित राहु जातक को निरोगी काया और बल प्रदान करते हैं। ऐसे जातक अत्याधिक बलशाली होने के साथ साथ पराक्रमी और साहसी होते हैं।

तृतीय भाव में राहु जातक को चंचल स्वभाव तो प्रदान करते हैं लेकिन साथ साथ जातक विद्यवान और भाग्यशाली होता है। ऐसे जातक अपने जीवन काल में कई प्रकार की यात्राएं करता है जिससे उसे खुश मान सम्मान और यश की प्राप्ति होती है।

तीसरे भाव में राहु होने पर जातक की कीर्ति देश विदेशों मे फैलती है और वह अपने जीवन काल में खूब मान सम्मान प्राप्त करता है। ऐसे व्यक्ति को दान पुण्य पर बहुत विश्वास होता है और वह सबके साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार करते हैं। ऐसे जातक किसी के साथ भी भेदभाव पूर्ण व्यवहार नहीं करते और जो भी कार्य करते हैं पूरी निष्ठा और लगन के साथ करते हैं।

तृतीय भाव में स्थित राहु व्यक्ति को सभी प्रकार के सुख साधन, नौकर चाकर और वाहन इत्यादि सभी प्रकार विलासिता प्रदान करता है। व्यक्ति को बिना बहुत से प्रयत्न के जीवन में सबकुछ आराम से प्राप्त हो जाता है। तीसरे भाव में राहु व्यक्ति के भाग्योदय में सहायक होते हैं और व्यक्ति को जीवन में हर प्रकार की सफलता और वैभव प्रदान करते हैं।

इस भाव में स्थित राहु के अशुभ होने पर जातक कई बार अभिमानी या अत्याधिक आलसी भी हो जाता है। ऐसे जातक अपने आस पास के लोगों पर शक करने लगता है और अपनी रातों की नींद खराब करता है। तृतीय भाव में खराब राहु कई बार भाइयों के बीच में बेमतलब का विरोध भी पैदा करता है और उनमें जीवनभर किसी न किसी बात को लेकर मनमुटाव बना रहता है।

चतुर्थ भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के चौथे घर को मातृस्थान कहा जाता है। इस भाव से जातक को प्राप्त होने वाले मातृसुख, गृह सुख, वाहन का सुख, मित्र, पेट के रोग और मानसिक स्थिति का विचार किया जाता है। आइये जानते हैं राहु के चौथे भाव में होने के फल।

जन्मकुंडली के चौथे भाव में स्थित राहु आमतौर पर जातक को शुभ परिणाम देता है। यहां स्थित राहु जहां एक ओर जातक को साहसी बनाता है वहीं उसे राजसत्ता के माध्यम से सुख प्रदान करता है। चौथे भाव में स्थित राहु जातक को राजा का प्रिय पात्र भी बना सकता है। ऐसे जातकों को माता का पूर्ण सुख प्राप्त होता है और जातक के पास विभिन्न प्रकार के वस्त्र और आभूषण होते हैं। यहां स्थित राहु जातक को प्रशासनिक व्यक्तियों के माध्यम से विभिन्न प्रकार के लाभ कराने में सहायक होता है।

कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु स्थित होने पर जातक सैर सपाटे का शौकीन होता है और देश विदेश में घूमने के अवसर दिलाता है। ऐसे जातकों को अपनी जन्मभूमि में रहने के अवसर सामान्यता कम ही प्राप्त होते हैं। चौथे भाव का राहु वयक्ति की उन्नति में विभिन्न प्रकार की रुकावटें उत्पन्न करता है और कठिन परिश्रम और मेहनत के बाद ही जातक को सफलता प्राप्त हो पाती है। वैदिक ज्योतिष में चतुर्थ भाव के राहु को सरकारी नौकरी और साझेदारी के कामों के लिए अच्छा परिणाम देने वाला बताया गया है।

कुंडली के चौथे भाव का राहु कई बार जातक के दो या ज्यादा विवाह का कारण भी हो सकता है। ऐसे जातक का कई लोगों से आंतरिक लगाव भी हो सकता है। ऐसे जातकों का जीवनसाथी विपरीत स्थितियों में उसका पूरा सहयोग करता है। इस भाव में स्थिति राहु होने से जातक के पुत्रों की संभावना कम ही होती है। 36वें वर्ष से लेकर 56 वें तक जातक का भाग्य उसका पूरा साथ देता है।

कुंडली के चतुर्थ भाव में राहु अगर अशुभ प्रभाव दे रहा हो तो यह जातक को कई प्रकार की मानसिक परेशानियां भी देता है। ऐसे जातकों के पास हर प्रकार की सुख सुविधा होने के बाद भी जातक किसी न किसी बात को लेकर अशांत बना रहता है और बेमतलब की चिंताओं में अपनी रातों की नींद खराब करता है।

पंचम भाव में स्थित राहु का फल 
जन्मकुंडली के पांचवे भाव को संतान भाव भी कहा जाता है। इस भाव से बच्चों से मिलने वाले सुख, विद्या्, बुद्धि और उच्चशिक्षा, पाचन शक्ति और अचानक धन लाभ और नौकरी परिवर्तन का विचार किया जाता है।  आपको बताते हैं राहु देव यदि किसी जातक की कुंडली के पांचवे भाव में हो तो क्या होता है।
 
वैदिक ज्योतिष में माना जाता है कि कुंडली के पांचवे भाव में स्थित राहु जातक को तीक्ष्ण बुद्धि प्रदान करता है। ऐसे जातकों को विभिन्न प्रकार के शास्त्रों का ज्ञान होता है। ऐसे जातक स्वभव से कर्मठ और दयालु होतें हैं। पांचवे भाव में राहु होने पर जातक भाग्यशाली होता है। ये अलग बात है कि जातक को पहली संतान के रूप में कन्या की ही प्राप्ति होती  हैँ आप कई प्रकार के व्यवसाय कर अपनी जीवका चलाने में कामयाब हो सकते हैं। ऐसे जातकों को पुत्र प्राप्ति में कई प्रकार के व्यवधान आ सकते हैं।

पांचवे भाव में स्थित राहु व्यक्ति को रचनात्मकता प्रदान करता है। ऐसे जातक लेखन कला में प्रवीण होते हैं ओर जातक को जीवन काल में खूब मानसम्मान और यश की प्राप्ति होती है।

कुंडली के पंचम भाव में स्थित राहु के कुछ दुष्पिरणाम भी बताए जाते हैं। अशुभता की स्थिति में यहा स्थति राहु व्यक्ति को मतिभ्रम का शिकार बना देता है। जातक को संतान को लेकर किसी न किसी प्रकार का कष्ट बना रहता है। यहां स्थित राहु जातक का धन बेकार के कामों में खर्च कराता रहता है जब तक कि जातक पूर्ण रूप से निर्धन हो जाए। पंचम में भाव राहु जातक को काला रंग प्रदान करते हैं, अधिकतर देखा गया है कि ऐसे जातकों का रंग काला ही होता है।

पंचम भाव में स्थित राहु जातक को गलत मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। ऐसे जातकों को मन पढ़ाई लिखाई में कम ही रहता है। ऐसे लोगों को पेट संबंधी किसी न किसी प्रकार की परेशानी लगी रहती है। पेट में शूल, गैस और मंदाग्नि रोग की संभावना अधिक होती है। अत्याधिक प्रयास के बाद ही धन की प्रापति होती है। जीवनसाथी से भी मनमुटाव की संभावना बनी रहती है।

छ्टें भाव में स्थित राहु का फल
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के छठे भाव को रोग स्थान या शत्रु स्थान भी कहा जाता है। कुंडली के इस भाव से किसी भी व्यक्ति के दुश्मनों, बिमारी, भय और तनाव का पता चलता है। कुंडली का छटा भाव गृह कलह, मुकदमें, मामा मौसी का सुख, घर में नौकर चाकरों की उपलब्धता और जननांगों के रोग के बारे में भी बताता है। जानिए राहु के छटे भाव में होने के प्रभाव।
 

जन्मकुंडली के छठे भाव में स्थित राहु जातक के अनिष्टों का निवारण करता है। माना जाता है कि यदि किसी जातक की कुंडली के छटे भाव में राहु देव विराजमान हो तो उसके जीवन के कष्ट अपने आप समाप्त हो जाते हैं। ऐसे जातकों का हृदय उदार होता है और वे हर कार्य बड़ी धैर्यपूर्वक करते हैं। छटे भाव में राहु जातक को बहुत साहसिक बनाता है और वह अपने जीवन में बड़े बड़े कामों को आसानी से कर लेते हैं। ऐसे जातक शारीरिक रूप से निरोगी और दीर्घायु होते हैं।

कुंडली के छटे भाव में राहु विराजमान हो तो जातक अपने सभी प्रकार के शत्रुओं पर विजय प्राप्त करता है और उसकी प्रतिष्ठा किसी राजा की तरह होती है। ऐसे जातकों पर सरकार या सरकारी अधिकारियों की कृपा बनी रहती है। अन्य धर्मों के लोगों के द्वारा ऐसे जातकों को लाभ और धन की प्राप्ति होती है। छटे भाव में स्थित राहु जातक को एक अमीर व्यक्ति बनाता है।

कुंडली के षठ भाव में स्थित राहु जहां जातक को अनेक प्रकार के वाहनों का सुख देता है वहीं जातक को सुंदर वस्त्र और विभिन्न प्रकार के आभूषण भी प्रदान करवाता है। ऐसे जातकों को बहुत अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है जो जीवन के सभी अच्छे और बुरे समय में जातक का साथ देता है।

कुंडली के छठे भाव में राहु यदि खराब प्रभाव दे तो ऐसे जातकों की संगति खराब रहती है। उन्हें किसी न किसी प्रकार की ऊपरी बाधाएं सताती रहती हैं, कई बार जातक को कोई रहस्यमयी बीमारी हो सकती है जो काफी समय तक चिकित्सकों की समझ में भी नहीं आती। ऐसे जातकों की नौकरी में भी किसी न किसी प्रकार की बाधा बनी रहती है। मामा, मौसी या चाचा पक्ष से सुख में कमी ही बनी रहती है।

सप्तम भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के सप्तम भाव को विवाह स्थान कहा जाता है। इस भाव से किसी जातक के वैवाहिक सुख, शैयया सुख, साझेदारी, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार और विदेश में प्रवास के योग, कोर्ट कचहरी के मामले को देखा जाता है। जन्म कुंडली का सप्तम भाव किसी जातक को जीवन में प्राप्त होने वाले यश और अपयश को भी दर्शाता है। जानिए राहु के सप्तम भाव में होने के प्रभाव।

जन्मकुंडली के सप्तम भाव में राहु को अधिकांशता खराब ही बताया गया है। ये जातक को मुख्यता खराब परिणाम ही देते हैं, जीवन में कभी कभार सप्तम भाव का राहु कुछ शुभफल भी प्रदान कर सकता है। ऐसे जातक अत्याधिक चतुर प्रकृति के होते हैं और इन्हें घूमने फिरने का बहुत शौक होता है।

कुंडली के सप्तम भाव में विराजमान राहु जातक को अत्याधिक अहंकारी बनाते हैं जिससे जातक किसी की अधीनता स्वीकार नहीं करता उसे अधिकतर स्वतंत्र रहने की ही चाहत बनी रहती है। इस कारण नौकरी या साझेदारी में भी सामान्यता अनबन बनी रहती है। ऐसे जातकों का विवाह कई बार जल्दी या अत्याधिक देरी से होता है। सप्तम भाव में स्थित राहु जातक को अच्छा जीवनसाथी प्रदान करता है। जातक और उसके जीवनसाथी के बीच प्रेम बना रहता है।

कुंडली के सप्तम भाव में शुभ राहु जातक को अच्छी नौकरी प्रदान करते हैं और उसका व्यवसाय भी ठीकठाक ही चलता रहता है। लेकिन यदि इस भाव में राहु खराब प्रभाव में हो तो जातक का कद नाटा हो सकता है। जीवन में अच्छा काम करने पर भी जातक को बुराई ही हाथ लगती है। ऐसे जातक स्वभाव से क्रोधी और दूसरों से झगड़ा करने वाले हो सकते हैं।

सप्तम भाव में राहु व्यक्ति को अत्याधिक अहंकारी और असंतुष्ट बनाता है। जातक का स्वभाव काफी उग्र होता है। ऐसे जातकों की संगति खराब व्यक्तियों से हो सकती है। खराब संगति में पड़कर जातक कई बार अच्छे लोगों को कष्ट पहुंचा सकता है। ऐसे जातकों को बेकार में घूमने फिरने से बचना चाहिए। जहां तक संभव हो ऐसे जातकों को धर्म का पालन करना चाहिए। मनमुताबिक जीवनसाथी न मिलने पर घर में कलह हो सकती है। या जीवनसाथी का स्वास्थ्य खराब रह सकता है। राहु का दुष्प्रभाव के कारण ऐसे जातकों का दाम्पत्य जीवन नष्ट हो जाता है और किसी न किसी प्रकार का कष्ट बना रहता है।

अष्टम भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के अष्टम भाव को मृत्यु स्थान कहा जाता है। इस भाव से जातक के आयु निर्धारण, जातक को प्राप्त होने वाले दुख, उसकी आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार और जातक के जीवन में आने वाले अचानक संकटों का पता चलता है।  जानिए राहु के अष्टम भाव में होने के प्रभाव।
 
जन्मकुंडली के अष्टम भाव में राहु विराजमान होने पर जातक का शरीर मजबूत होता है। ऐसे जातकों को अपने जन्मस्थान से दूर रहना पड़ता है। अधिकतर ऐसे जातक विदेशों में घर से दूर निवास करते हैं। सरकारी प्रतिनिधियों, राजाओं और पंडितों की कृपा जातकों पर जीवनभर बनी रहती है। अष्टम भाव में राहु जातक को धार्मिक कार्यों की ओर प्रवृत्त करता है और जातकों का भाग्योदय छब्बीस से छत्तीस वर्ष के बीच होता है।

कुंडली के अष्टम भाव में राहु होने पर जातक धनवान होता है और राज्यपक्ष से उसे समय समय पर धन की प्राप्ति होती रहती है। लेकिन ऐसे जातक कई बार अपना धन बेकार के कार्यों में बरबाद करते हैं। ऐसे जातकों के पुत्रों की संख्या सामान्यता कम ही होती है। अष्टम भाव में विराजमान राहु जातक को बढ़ापे में बहुत सुखी रखते हैं। ऐसे जातकों का बुढ़ापा बहुत आराम से कटता है। यदि अष्टम भाव में राहु वाले जातकों की रुचि गाय पालने में हो तो उनके पास पशुधन अत्याधिक मात्रा में होता है और जीवन में आने वाली कई बातों का पूर्वानुमान उन्हें हो सकता है।

कुंडली के अष्टम भाव में राहु अशुभ हो तो जातक को भीरू और आसली बना सकते हैं। ऐसे जातक कई बार बहुत जल्दीबाजी में काम करने वाला या अत्याधिक वाचाल भी हो सकता है। जिससे उसकी सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी आती है। ऐसे जातकों को कई बार ऐसे काम भी करने लगते हैं जो धार्मिक या सामाजिक दृष्टि से अच्छे नहीं माने जाते, तथा जातक को अपनी पैतृक संपदा या जायदाद से वंचित रहना पड़ सकता है। अष्टम भाव में अशुभ राहु जातक को अत्याधिक खर्चे की ओर अग्रसित करते हैं जिससे जातक को धन संचय में परेशानी बनी रहती है और जातक के भाई बंधुओं से भी संबंध खराब ही रहता है।

नवम भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के नवम भाव को भाग्यस्थान भी कहा जाता है, इस भाव से जातक की आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, जातक की बुद्धिमत्ता, गुरू व परदेश गमन को देखा जाता है। कुंडली का नवम भाव पुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी और जातक के दूसरे विवाह के बारे में भी बताता है। जानिए राहु के नवम भाव में होने के प्रभाव।

जन्मकुंडली के नवम भाव में राहु होने पर जातक परिश्रमी और ईश्वर पर विश्वास करने वाला होता है। ऐसे जातक कृपालु, गुणवान और अपने परिवार को स्नेह करने वाला होता है। ऐसे जातकों को तीर्थाटन और साधु संतों की सेवा में बहुत आनंद प्राप्त होता है। नवम भाव में राहु विराजमान होने पर जातक अत्याधिक विद्धवान होता है और अपने सदगुणों के कारण लोगों में सम्मान प्राप्त करता है। उसके आसपास के लोग जातक का बहुत सम्मान करते हैं।

कुंडली के नवम भाव में राहु जातक को बहुत कीर्तिमान बनाते हैं, जातक का देवताओं और तीर्थों के प्रति श्रद्धा और विश्वास होता है। वह दान और पुण्य कर अपने जीवन में यश और कीर्ति प्राप्त करता है। ऐसे जातक पर यदि कोई उपकार करता है तो जातक जीवन भर उस एहसान को नहीं भूलता। नवम भाव में राहु जातक को अत्याधिक चतुरता प्रदान करते हैं जिससे जातक अपनी चतुराई से भरी सभा में लोगों को आश्चर्य में डाल सकता है।

नवम भाव में राहु वाले जातक सुधारवादी विचार वाले होते हैं वे समाज की उन्नति कल्याण के लिए जीवन भर प्रयत्नशील रहते हैं। उन्हें कोई भी कार्य बीच में छोड़ना पंसद नहीं होता।

नवम भाव में राहु अगर खराब प्रभाव में हो तो जातक पाप कर्मों की ओर अग्रसर होता है। धर्म और ईश्वर की ओर आस्था में कमी करता है। ऐसे जातकों को ऐसी स्थिति से बचाव करना चाहिए। उन्हें सदैव अच्छे वस्त्र धारण करना चाहिए और अपने मित्रों और भाईयों से संबंध अच्छे रखने चाहिए।

दशम भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में जन्मकुंडली के दशम स्थान को कर्मस्थान कहा जाता है। इस भाव से जातक को मिलने वाले पितृसुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों के दर्द, सासु मां और जातक की मान सम्मान का पता चलता है। जानिए राहु के दशम भाव में होने के प्रभाव।
 
वैदिक ज्योतिष में माना जाता है कि यदि किसी जातक की कुंडली के दशम भाव में राहु देव विराजमान हो तो जातक अत्याधिक बलवान और निडर होता है। ऐसे जातक बुद्धिमान, परोपकारी और गर्वीले स्वभाव के होते हैं। यहां स्थित राहु जातक को कुछ प्रकार की चिंताएं देता है और जातक के घमण्ड को धीरे धीरे दूर करवाता है।

दसवें भाव में राहु होने पर जातक की रुचि काव्य और कविताओं में होती है। ऐसे जातक अच्छे लेखक, पत्रकार या सम्पादक तक हो सकते हैं। दशम स्थान पर राहु होने पर जातक को जीवनकाल में सफलता, सम्मान और कीर्ति प्राप्त होती है। ऐसे जातक लोक समूह, गांव या नगर में किसी बड़े पद पर आसीन हो सकते हैं। राहु की यह स्थिति जातक को मंत्री या सेनापति भी बना सकती है।

कर्मस्थान में राहु विराजमान होने पर जातक शत्रुहंता होता है ऐसे जातकों के शत्रु या तो नहीं होते और अगर होते भी हैं तो नष्ट हो जाते हैं। यहां स्थित राहु जातक को गंगा स्नान का लाभ प्रदान करवाता है और जातक समय समय पर यज्ञ आदि भी करता है।

दशम स्थान में राहु विराजमान होने पर जातक व्यापार में निपुण होता है और ऐसा जातक अपने जीवन काल में कई प्रकार की यात्राएं करता है। यहां विराजमान राहु वैसे तो पुत्र संतति में कमी करते हैं लेकिन जातक को अदालती कामों में अधिकतर विजय ही प्राप्त होती है। दशम स्थान के राहु जातक को शुरू में कष्ट देते हैं और जातक कष्ट भोगकर अपने जीवन में उत्तरोतर उन्नति करता है।

दशम स्थान में यदि राहु खराब प्रभाव में हो तो जातक अत्याधिक आलसी और उत्साहीन हो जाता है, ऐसे में जातक को आलस्य त्यागकर मन लगाकर अपने कामों को करना चाहिए। व्यर्थ के घमण्ड और बेकार की बातों में अपना समय नष्ट नहीं करना चाहिए। ऐसे जातकों को जहां तक संभव हो मांस मदिरा और किसी भी प्रकार के नशे से भी दूर रहना चाहिए।

एकादश भाव में स्थित राहु का फल 
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के एकादश भाव को लाभ कहा जाता है। इस भाव से जातक को जीवन में प्राप्त होने वाली धन संपदा, लाभ, आय उसके मित्र, बहू, जंवाई, भेट उपहार और विभिन्न तरीकों से होने वाली आय के बारे में पता चलता है।  जानिए राहु के एकादश भाव में होने के प्रभाव।

एकादश भाव में राहु जातक के जीवन में आने वाले अरिष्टों को कम करता है। ऐसे जातक शारीरिक रूप से मजबूत और बलशाली होते हैं और उन्हें लम्बी आयु प्राप्त होती है। एकादश भाव में राहु जातक को न सिर्फ परिश्रमी बनाते हैं बल्कि जातक के मन में कवि और कविताओं के प्रति प्रेम होता है। ऐसे जातक अपने परिश्रम के बल पर सभी प्रकार की विलासिताओं का उपभोग करते हैं।

एकादश भाव में विराजमान राहु जातक को आकर्षक और मितभाषी बनाते हैं, ऐसे जातकों को विभिन्न शास्त्रों का ज्ञान होता है और जातक अपनी इन्द्रियों को वश में करने वाला होता है। यहां विराजमान राहु जातक को विद्धवान और विनोदी स्वभाव भी प्रदान करते हैं। राहु की यह स्थिति जातक को बड़े स्तर पर पहुंचाती है और चारों दिशाओं में उसकी कीर्ति फैलती है। ऐसे जातकों के मित्रता चतुर व्यक्तियों से होती है जो उसके जीवनकाल में उसे कई प्रकार से लाभ पहुंचाते हैं।

ग्यारहवें घर में राहु जातक को विदेशों से धन कमाने के मौके प्रदान करवाते हैं। ऐसे जातकों को कई बार अनैतिक रूप से भी धन लाभ होता देखा गया है। उनके आय के विभिन्न स्रोत होते हैं और उनके पास कई प्रकार के वाहन होते हैं। ऐसे जातक कई बार अत्याधिक अभिमानी हो जाते हैं और बेकार के विवादों में पड़कर अपना धन और समय दोनों बरबाद करते हैं। ऐसे जातकों को चाहिए की जहां तक संभव हो धोखा और ठगी के माध्यम से धन न कमाएं अन्यथा संतान से संबंधित परेशानी हो सकती है।

द्वादश भाव में स्थित राहु का फल  
वैदिक ज्योतिष में कुंडली के बारहवें भाव को व्यय भाव भी कहा जाता है। इस भाव से जातक पर होने वाले कर्जे, नुकसान, परदेश गमन, सन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन गुप्त शत्रु, आत्महत्या, जेल यात्रा और मुकदमेबाजी का भी विचार किया जाता है। जानिए राहु के द्वादश भाव में होने के प्रभाव।
 
कुंडली के बारहवें भाव में राहु विराजमान हो तो जातक पराक्रमी और यशस्वी होता है। ऐसे जातक अत्याधिक महत्वाकांक्षी और ऊंचे आदर्शों वाला होता है। बारहवें भाव में राहु जातक को परोपकारी और आध्यात्मिक बनाते हैं। ऐसे जातकों की रुचि वेदों और वेदांतों में होती है और जातक का स्वभाव साधु की तरह हो सकता है। राहु की यह स्थिति जातक को अत्याधिक मिलनसार और परोपकारी बनाती है। जातक अपने परिश्रम के बल से उन्नति के शिखर को प्राप्त करता है।

कुंडली के व्ययस्थान में विराजमान राहु जातक के शत्रुओं का नाश करते हैं और उसे विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से धन लाभ करवाते हैं। ऐसे जातक यदि एक ही स्थान पर टिक कर बैठें रहे तो उनकी सभी इच्छाओं की पूर्ति अपने आप होती रहेगी। कई बार राहु की यह स्थिति जातक को जन्मस्थान से दूर भी करवा देती है।

बारहवें भाव में विराजमान राहु जीवन के प्रारम्भिक समय में थोड़ी अस्थिरता देते हैं जिससे जातक को अपनी आजीविका के लिए इधर उधर भटकना पड़ता है। जन्मस्थान से दूर होने पर ऐसे जातकों का भाग्योदय हो जाता है और वह खूब कमाई करते हैं। राहु की यह स्थिति जातक को अत्याधिक खर्चीला भी बनाती है। ऐसे जातकों को चाहिए की वे छलकपट और विवेकहीनता से दूर रहे। किसी भी प्रकार नीचकर्म और पापपूर्ण कार्यों में लिप्त होने पर ऐसे जातकों को राहुदेव अस्पताल या जेल का मुख भी दिखला सकते हैं।


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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