राशि का वर्णात्मक विभाजन से आसान हो जाता है जातक के गुणों के साथ-साथ कर्मों का निर्धारण । वर्ण को कभी जाति न समझने का भुल कदापि न करें - जाति की रचना हम मानव अपनी सुविधा के आधार पर कर आज शायद पश्चाताप कर रहे हैं और इससे निजात नहीं मिल पा रहा । हमारे धर्म एवं धार्मिक ग्रथों में कहीं वर्ण को जाति के रूप में विभक्त नहीं किया है । गीता में स्पष्ट श्री कृष्ण कहते हैं कर्मों के आधार पर 4 वर्णों में विभाजित मानव समुदाय को समझना चाहिए । किसी भी जाति में किसी भी वर्ण के लोग हो सकते हैं ।