दूषित राहु तथा उसके युग्म का विश्लेषण

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Yatin S Upadhyay 21st Feb 2019

*कही आपकी बाधाऔं का कारण दूषित "राहू" तो नहीं* आइये आज एक विश्लेषण करें मेरे साथ जानते है राहु के युग्म प्रभाव *यतिन एस उपाध्याय* हालांकि राहू कोई द्रष्य ग्रह नही... वल्कि ग्रहों के परिपथ का एक विषेश स्थान (बिन्दु) मात्र है... परन्तु ये कुंंडली में अन्य ग्रहो की तरह बहुत ही अहम भूमिका निभाता हैऔर जाचक के जीवन पर आत्यधिक प्रभाव भी डालता है।। वैसे शुभ राहू ऊचे पदाधिकारी, नीति निर्धारक, प्रसासक, विचारक, आदि बनाने में भी बहुत सहयोगी होता है।। *(मगर इस लेख में हम नकारात्मक राहू की स्थिती, परेशानी और सटीक निदान की चर्चा करना चाहते हैं।)* http://www.futurestudyonline.com/astro-details/89 *राहू से बनने वाले कुछ नकारात्मक योग..* 👇👇 1⃣ *चांडाल योग:-* यह राहू और गुरू के योग से निर्मित होता है तथा देव व राक्षसी प्रवर्तियों का संयोग होता है... ज्ञान का दुर्प्रयोग, क्षमता का उचित लाभ ना मिलना, निर्णय गलत, स्वप्नों में जीना, कन्फ्यूजन, और अपनी ही गल्तियों के कारण हर क्षेत्र में रुकावंटें होना ही इसके दुष्परिणाम होते हैं। http://www.futurestudyonline.com/astro-details/89 2⃣ *कालशर्प-दोष:-* यदि समस्त सूर्यादि ग्रह राहू और केतू के मध्य में स्थिति हों।। कुंंडली में प्रमुख १२ प्रकार के कालशर्प होते हैं।। आजकल ये बहुत चर्चित व विवादित योग है ..... *तो इसके वैज्ञानिक पहलू को समझते हैं।*👇👇 (प्रथ्वी पर लगभग ...एक भाग थल और दो भाग जल है... मनुष्य के शरीर में भी ....एक भाग में सभी पदार्थ और दो भाग मात्र जल है) जब मात्र सूर्य व चंद्र एक सीध में आने पर ...प्रथ्वी के गुरुत्वाकर्षण को डगमगा कर समुद्र में ज्वार-भाटा पैदा कर सकते हैं.... तो सातों ग्रहों का एक ही तरफ होना कुछ विषेश नहीं करता होगा...❓❓ *और क्या शरीर में प्रथ्वी के समान जलीय अनुपात के ... मानव जीवन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पडता होगा....*❓❓ निश्चित ही ये योग हमारे देहिक, मानसिक, और भौतिक जीवन में रुकावटें डालकर उन्नती में बाधाऐं पैदा करता है अतः हमारा मत है कि इसका वैदिक-तंत्र विधी से उपाय अवस्य करना चाहिये अथवा सही अभिमंत्रत "सिद्ध कालशर्प लोकेट" धारण करना चाहिए।। 3⃣ *पित्र-दोष:-* यदि सूर्य, लग्न, या पिता के कारक भावों पर राहू या केतू की द्रष्टियां हों तो ये दोष होता है।। पैत्रक सम्बंध खराब, पैत्रक संपत्ति में रुकावट, अनुवांशिक कष्ट, संतान बाधा, निरन्तर असफलता, कुलदेव-कुलदेवी का प्रकोप, परिवारिक कलह, निरंतर रोग तथा अति तनाव पूर्ण स्थिति का निर्माण होता है।। 4⃣ *ग्रहण-दोष:-* यदि राहू सूर्य का योग, राहू चंद्र का योग या चंद्र सूर्य का योग हो...... तब ये योग बनता है। ... और नाम के अनुसार ही जीवन को ग्रहण लगाने में कसर नहीं छोड़ता.... पग-पग पर बाधाऐं पैदा करता है एवं नकारात्मक मनोदशा बनाता है, परिवार में मनोरोग भी पैदा कर सकता है।। 5⃣ *अंगारक-दोष* राहू-मंगल का साथ होने से यह योग बनता है... तथा जाचक को अग्नि तत्व की अधिकता प्रदान करता है.... अगर इसके साथ कुंंडली मांगलिक भी है तो इसका .... वैवाहिक जीवन, पार्टनर शिप, भाइयों से सम्बंधित, निजी व्यवहार, प्रेम सम्बंध, और जीविका के साधनों पर बहुत विपरीत प्रभाव पड सकता है... उज्जैन जबलपुर ग्वारीघाट में "अंगारक शांती और भात पूजा अवस्य करवानी चाहिऐ"।। http://www.futurestudyonline.com/astro-details/89 6⃣ *राहू-शनी योग:-* किसी भी भाव मे राहू, शनी एक साथ हों तो ये *श्रापित-दोष* बनता है... ऐसी कुंंडली श्रापित मानी जा सकती है ऐसा जाचक दैविक-प्रकोप, जादू-टोंना, तंत्र-मंत्र, या ऐसे लोगों के अभिचारिक कार्यो से जीवन में आत्यधिक मजबूर पाता है.... और असहाय सा होने लगता है बीमारियाँ भी समझ में नहीं आती।। दवाऐं भी सही से काम नहीं करतीं।। किऐ गये पुण्य कार्य भी निश्फल नजर आते हैं।। "विधिवत महाम्रत्युंजय अनुषठान.... करवाने या रुद्राभिषेक करवाने से इस दोष का समन होता है।।" अभिमंत्रत रुद्राक्ष-माला में सही सिद्ध किया हुआ.. पंच धातु में निर्मिति "सुलेमानी हकीक" का लौकेट पहनने से भी काफी लाभ मिलता है।। *(कुंंडली में इन योगों के अलावा भी राहू कई स्थितियों में नकारात्मक हो सकता है.... इन सभी प्रभावों का योग्य विद्वान से कुंंडली परीक्षण अवस्य करा लेना चाहिऐ।।)* ************************* *अशुभ राहु के कुछ और लक्षण भी है... कुंंडली के बिना भी देख सकते हैं।।*👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇👇 http://www.futurestudyonline.com/astro-details/89 👉आसमान के सपने देखना और सही प्रयास ना करना।। 👉अच्छी सलाह व अच्छे मित्रो की जगह चालबाजों की संगती, और बात मानना । 👉शराब- शबाब या अन्य लतों के चक्कर में अपने को बरबाद कर लेना। 👉लगातार टीवी और मनोरंजन के साधनों में अपना मन लगाकर बैठना, होरर शो या गंदे चलचित्र देखने की आदत होना।। 👉 भूत प्रेत और रूहानी ताकतों के लिये जादू या शमशानी काम करना या ऐंसे लोगो के चक्कर में आना। 👉नेट पर बैठ कर बेकार की स्त्रियों और पुरुषों के साथ चैटिंग करना और दिमाग खराब करते रहना। 👉पेट के रोग, दिमागी रोग, पागलपन, खाज खुजली , या गंदगी से उत्पन्न रोग होना।। 👉भूत -चुडैल का शरीर में प्रवेश, बिना बात के ही झूमना, नशे की आदत लगना।। 👉गलत स्त्रियों या पुरुषों की संगती होना। शरीर के अन्दर अति कामुकता के विचार आना। 👉सडक पर गाडी आदि चलाते वक्त फालतू पौरुष दिखाना या कलाबाजी दिखाने के चक्कर में शरीर को तोड लेना। 👉बाजी नामक रोग लगा लेना, जैसे गाडीबाजी, रंडीबाजी, यानि गलत शौक, ड्र्ग लेने की आदत डाल लेना ।। 👉नींद नही आना, शरीर में चींटियों के रेंगने का या सुन्न जैसा अहसास होना ।। 👉बेबजह गाली-गलौज या अस्लील भाषा प्रयोग करने की आदत पड जाना।। (अगर इस तरह के लक्षण मिलते है, तो समझना चाहिये कि किसी न किसी रूप में राहु का प्रकोप शरीर पर है, अथवादशा- गोचर से राहु अपनी नकारात्मक शक्ति देकर मनुष्य जीवन को दुर्गती प्रदान कर रहा है। या फिर प्रारब्ध के पाप-कर्म अथवा पूर्वजों की गल्तियों के कारण जातक को इस प्रकार से उनके पाप भुगतने के लिये राहु प्रयोग कर रहा है।।) *http://www.futurestudyonline.com/astro-details/89* *इस तरह की किसी भी समस्या में... किसी योग्य ज्योतिषाचार्य से परामर्श लेकर सही वैदिक- तंत्र विधी से उचित निदान अवस्य करवा लेना चाहिये क्यों कि उन्नति की राहों में हर दिन बहुमूल्य होता है, एक दिन भी व्यर्थ ना चला जाऐ।।*यतिन एस उपाध्याय*


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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