शनि की महादशा सभी के लाभदायक नही होती है।कुछ जातको के लिए शनि की महादशा भाग्य वृद्धि करक होती है और कुछ के लिए बहुत बुरी जिनमे उनके मान प्रतिष्ठा धन ऐश्वय सब खत्म होने की कगार में आ खड़ा होता है।पर एक बात का सदैव ख्याल रखे पूरी महादशा किसी भी जातक जे लिए बुरी नही होती है।अंतरदशा बहुत महत्वपूर्ण होती है।साथ में गोचर भी।अगर अंतरदशा में शनि के साथ आपका योगकारक ग्रह साथ चलता है और जिसका शनि के साथ भी मैत्री सम्बन्ध हो तोह स्थिति आपके हित में होती परंतु अगर शत्रु ग्रह साथ में ह और वो आप के कुंडली में भी बाधक है।तो समस्या बढ़ जाती है जैसे भले ही केतु आपके कुंडली में सपोर्ट करता हो परंतु शनि का मित्र ग्रह नही है केतु तो ऐसी अवस्था शनि में केतु का फल कुछ इस तरह होगा।
जातक को रक्त-पित्त सम्बन्धी पीड़ा, धन हानी, बंधन, दुस्वप्न, चिंता आदि अनेक प्रकार के कष्टों का सामना करना पड़ता है।नक्षत्र में अगर शनि शत्रु ग्रह के नक्षत्र से संयोग बना कर अष्टम या द्वारदश से संबंध बनाए तो स्थिति कष्टप्रद होगी वैसे अगर शनि की महादशा में राहू की अंतरदशा हो
जातक के शरीर में वात-पीड़ा, ज्वर, अतिसार आदि विकार उत्पन्न होते हैं. वह शत्रुओं से पराजित होता है. उसके धन का नाश होता है तथा अन्य प्रकारों से भी पतन के गड्ढे में गिरता है
पर कुंडली मे लग्न लग्नेश और ग्रहों की स्थिति के अनुसार फलित मे परिवर्तन हो सकता है।अगर ग्रहो के अनुसार सटीक दान और उपाय किये जाये तो रहत संभव है।
दीक्षा राठी