भविष्य पुराण में कहा गया है कि गृहस्थ जीवन में रहने वाले लोगों के लिए एक गृह का होना अनिवार्य है क्यूँकि गृहस्थों का कोई भी कार्य गृह के बिना संभव नहीं होता है ।
।। गृहस्थस्य क्रियास्सर्वा न सिद्धयन्ति गृहं बिना ।।
गृह का होना उतना अहम नहीं है जितना अहम है उसका वास्तु सम्मत होना
वास्तु के सभी नियम हमारे ऋषि-मुनियों ने हमारे समृद्धि एवं स्वाथ्य को ध्यान में रखकर प्रतिपादित किये हैं । उदाहरण स्वरूप आम जनमानस को समझने के लिए इतना काफी है कि झुग्गी-झोपड़ी, गंदी वस्ती तथा वास्तु के विपरित घर में रहने वाले लोग विशेषतः स्वास्थ्य से पीड़ित रहते हैं और सुख समृद्धि से हीन होते हैं । इसलिए हमसबों का प्रयास होना चाहिए कि हम जहां भी रहें उसे वास्तु सम्मत बनाने का प्रयास करें और स्वाच्छता का भी विशेष ध्यान रखें ।
़ऋषि-मुनियों ने भूमि चयन, भूमि परीक्षण, शिलान्यास गृह निर्माण से लेकर गृह प्रवेश के उपरान्त आन्तरिक सज्जा तक के लिए वास्तुशास्त्र में सिद्धान्त बताए गए हैं ताकि स्वस्थ्य, सुखद एवं समृद्ध जीवन की परिकल्पना को साकार किया जा सके। वास्तुशास्त्र में समुचित जीवन शैली को भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में बताया गया है। इस जीवन शैली को अपनाकर स्वस्थ जीवनयापन करने के साथ ही सकारात्मक ऊर्जा के स्रोत को सरलता से प्राप्त कर सकते हैं।
आज की भागदौड़ भरी जीवन शैली में हमें स्वस्थ्य रहने के लिए कुछ अतिरिक्त सावधानियां बरतने की विशेष आवश्यकता है। कैसा हो हमारा वास्तु एवं उसके आंतरिक सज्जा इस बारे में वास्तु शास्त्र में विस्तार से दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यहां हम और हमारा वास्तु से संबंधित वास्तु के उन अनुपम सूत्रों का वर्णन किया गया है, जिन्हें अपनाकर जनसामान्य भी अपने स्वास्थ्य और समृद्धि को सुनिश्चित कर सकते हैं ।
वास्तुशास्त्र दिशा पर आधारित शास्त्र है साथ ही वेदानुसार शिलान्यास, द्वारा निर्माण एवं गृह निर्माण से लेकर गृह प्रवेश तक मुहुर्त का चयन कर भूमि पूजन, द्वार पूजन, वास्तु पूजन आदि करने पर आप स्वस्थ्य एवं समृद्ध रहेंगे ।