! कुंडली में धन का योग !

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Seema Gupta 29th Apr 2018

अधो अध् : पश्यत :कस्य महिमा न उपचीयते  ऊपरि ऊपरि पश्यंत : सर्वे एव दरिद्रति !! अगर हम अपने से कम धनवान को देखते है, उसके मुकावले अपने आप को खुश पाते है , और अगर हम खुद से अधिक धनवान को देखते है , तब खुदको करीब मान कर दुखी होते है ! धन जीवन के लिए बेहद जरुरी है ! धन की जीवन में जरुरत के बारे में महाभारत में अर्जुन ने युधिष्टिर को और रामायण में लक्ष्मन ने राम को क्या कहा था - यस्य अर्था : तस्य मित्राणि , यस्य अर्था : तस्य बान्धवा : !! यस्यार्था स पुमान लोके , यास्यार्थ : स च पंडित !! अर्थात जिसके पास धन है , उसी के पास दोस्त और रिश्तेदार है , उसी को पंडित कहा गया है ! कुंडली में 2nd घर रोज मर्रा की इनकम का होता है , कुंडली में २,६,१०,११ घर अगर मजबूत है तो धन का आगमन होता रहता है ! २,६,१०,११ घर के स्वामी अगर अच्छी स्थिति में है और उन् पर अच्छे ग्रहो की दृस्टि पड़ रही है टू धन के लिए अच्छा माना गया है ! जब भी २,६,१०,११ की दशा, अंतर दशा प्रयंतर दशा आएँगी तब धन का आगमन होगा ! धन के बारे में बताते हुए १, २ , ३ , ६ ,१० ,११ इन सभी भावो का विचार किया जाता है ! इन छह भावो में से षष्ठ और लाभ स्थान यह वेहद अच्छे धन स्थान है ! उसके बाद और दसम स्थान तथा उसके बाद लगन और द्रितीय यह स्थान अहम् है !  लेकिन क्या जातक काम ही नहीं करेगा तो क्या पैसे का आगमन होगा ? हाँ होगा , कुंडली मे में जो घर मजबूत होगा उसी तरह से पैसा आएगा ! उदहारण :-अगर पत्नी काम करती है और पत्नी का घर मजबूत है तो उसके द्वरा पैसा आएगा ! कुंडली में कौन सा घर मजबूत है वह देखना चाहिए ! दशा चढ़ती हुई है या उतरती हुई यह देखना बहोत जरुरी है ! लगन मजबूत है टू जातक खुद के वल पर धन कमाता है और अगर उसके साथ दसमेश की दशा भी साथ में चल रही हो तो  जातक कामयाबी पर कामयाबी चढ़ता जाता है ! धन स्थान का उपनक्षत्र का स्वामी द्रितीय और चथुर्ठ भाव का स्वामी हो तो जमीन , घर , बगीचे , वाहन , शिक्षा संस्था से धन आता है !  द्रितीय और पंचम का कार्येश हो , तो नाटक , सिनेमा , खेल ,रेस , जुआ , कला मंत्र और पुरोहित द्वारा धन आता है ! द्रितीय और सष्ट भाव का कार्येश हो तो ऋण , साहूकारी , पालतू जानवर , दवाये , होटल नोकरी द्वारा धन आता है ! द्रितीय और अष्टम का कार्येश हो , तो जीवन बिमा , हर्जाना , पुश्तैनी जायदाद का हक़ , मृत्युपत्र बोनस ,फंड  से धन आता है ! द्रितीय और नवम स्थान का कार्येश हो तो इम्पोर्ट - एक्सपोर्ट , ग्रन्थ प्रकासन , विदेश यात्रा संस्था , विदेशी लोगो के संसोधन से ,धार्मिक संस्थाए , मंदिर आदि से धन आता है ! द्रितीय और दसम का कार्येश हो तो सरकर , सरकारी नोकरी , अच्छे कारोवार , नेता , नेतागिरी द्वारा धन आता है ! द्रितीय और लाभ का कार्येश हो तो धन की चिंता नहीं रहती है , पैसा कमाने के लिया अधिक कष्ट नहीं करना पड़ता है , दोस्त सहायता करते है , रेस , लाटरी , के जरिये अचानक धन का लाभ होता है ! द्रितीय और व्यय स्थान का कार्येश हो तो होस्टल , जेल , अस्तपताल ,शमशान , गूढ़ विधा आदि के जरिये धन कमाते है ! धन के लिए जातक को किसी विद्वान ज्योतिषी से कुण्डली का आकलन करवाना चाहिए की जातक किस कारोवार से धन बना सकता है ! Astrologer Seema Guptaa 

http://www.futurestudyonline.com/astro-details/251


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।