राजयोग का मतलब होता ही सफलता, उन्नति, सुखद फल आदि होता ही है।एक होता है आर्थिक राजयोग, जिसका मतलब है आर्थिक मतलब धन, राजयोग मतलब जिसकी कभी कमी न रहेगा जिसका सुख भी मिले और वृद्धि होती रहे।आर्थिक राजयोग रुपये-पैसे से जुड़ा हुआ राजयोग है इस आर्थिक राजयोग के कुंडली मे बनने से इंसान करोड़पति, अरबपति तक बनता है यदि अन्य राजयोग या शुभ तोग कुंडली में हो तो।लेकिन यदि आर्थिक राजयोग कुंडली मे है तो जातक लाखो में जरूर खेलता है और धन की देवी लक्ष्मी ऐसे जातक के सदैव साथ रहती है। अब यह आर्थिक राजयोग बनता कैसे है? इस पर बात करते है, कुंडली के दूसरे और ग्यारहवे भाव के स्वामी का युति संबंध(दूसरे ग्यारहवे भाव के स्वामी का एक साथ किसी शुभ भाव मे बैठना) , दृष्टि संबंध होना या दोनो ग्रहो का एक दूसरे के भावों में बैठकर राशि परिवर्तन करना जैसे दूसरे भाव का स्वामी ग्यारहवे भाव मे हो और ग्यारहवे भाव का स्वामी दूसरे भाव मे हो तब आर्थिक राजयोग बनता है अब क्योंकि दूसरा भाव धन का है और ग्यारहवा भाव लाभ/वृद्धि/आय का है जब धन और लाभ/वृद्धि/आय के स्वामी ग्रह एक साथ संबंध बनाते है तब जातक को आर्थिक रूप से बहुत उन्नति देते है पैसे की कभी कमी नही रहती जो भी काम जातक करता है उसमें बहुत अच्छी स्थिति आर्थिक रूप से रहती है।लेकिन यह आर्थिक राजयोग कुंडली के 6, 8,12वे भाव मे नही होना चाहिए इन भावो में यह राजयोग बनने पर कोई खास लाभ नही देता क्योंकि 6, 8,12 भाव रुपये-पैसे के लिए अशुभ और नुकसान देने वाले भाव है।इसके साथ ही यदि कुंडली मे केंद्र त्रिकोण संबंध से बनने वाले राजयोग भी बन रहे हो या बनते हो तो ऐसे जातक से धनी और सफल कोई नही हो सकता।साक्षात कुबेर और लक्ष्मी ऐसे इंसान के दोनों हाथों में रहते है।ऐसा इंसान खुद तो आर्थिक रूप से भाग्यशाली आर्थिक राजयोग के प्रभाव से होता है कभी खराब समय भी ऐसे इंसान को आर्थिक रूप से कोई खास दिक्कत नहीं दे सकता। उदाहरण:- धनु लग्न की कुंडली मे दूसरे भाव का स्वामी शनि बनता है और ग्यारहवे भाव का स्वामी शुक्र बनता है और यह दोनों ग्रह आपस मे परम् मित्र हैं।अब यदि शनि-शुक्र का संबंध बना हो तब यह ऐसे धनु लग्न के जातक को बहुत बढ़िया आर्थिक स्थिति देगा, और यदि दशमेश नवमेश भी साथ दे रहे हो मतलब अच्छी स्थिति में हो इस कोई राजयोग बना रहे हो तब फिर सोने पर परम सुहागा होगा किस्मत ऐसे जातक की दासी होगी।सिंह में बुध और कुम्भ में गुरु यह दोनों एक ही ग्रह दूसरे और ग्यारहवे भाव के स्वामी होते है ऐसी स्थिति में सिंह में बुध और कुम्भ लग्न में गुरु की जितनी ज्यादा भाव में बैठने की स्थिति शुभ और बलवान स्थिति होगी या केंद्र त्रिकोण के स्वामी से संबंध केंद्र त्रिकोण में बनेगा उतना ही अच्छा फल होगा। नोट:- आर्थिक राजयोग में दूसरे/ग्यारहवे भाव के स्वामी अस्त, या दोनो में से कोई एक अस्त, नीच, पीड़ित या अशुभ भावो में नही होना चाहिए।। ऐसे आर्थिक राजयोग के फल धन-धान्य के लिए बहुत उत्तम होता है।।
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