चंद्रमा और उनसे निर्मित योग
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ज्योतिष में चंद्रमा को मन कहते है ( चंद्रमा मनसो जायता ) मन ही बंधन का कारण है वा मन ही मुक्ति का कारण है । मूल रूप से मनुष्य अकेला पैदा होता है व अकेला ही मरता है । यह मन ही है जो मानता है यह मेरा मित्र है वह मेरा शत्रु है या मै अकेला हूँ घर परिवार व समाज मे मेरा कोई नहीं है । मेरे को किसी का साथ नहीं मिलता है । जिस व्यक्ति के मन में अकेलापन घर कर जाता है तनाव, चिड़चिड़ापन उसके व्यक्तित्वमे समां जाता है अन्तो गत्वा सब उससे दूर होते जाते है व वह अवसाद का शिकार हो जाता है ।
चन्द्रमा व उसके आगे पीछे स्थित होने वाले गृहो की युतिके आधार पर बनने वाले योगों के बारे में जानकारी प्राप्त करे जो निम्न अनुसार है :-
सुनफा योग :
चंद्रमा से दुसरे भाव में सूर्य को छोड़ कर कोई गृह हो तो सुनफा योग बनता है । ऐसे योग में जातक स्वयं के प्रयास से धनि , उत्तम बुद्धि से युक्त तथा यसस्वी होता है ।
योग कारक मंगल हो तो जातक उत्साही,साहसी, धनवान एवं उग्र पृकृति ।
योग कारक बुध हो तो तो चतुर, वाक कला में निपुर्ण ।
योग कारक गुरु हो तो विद्या वान , राज पूजित , धनि ।
योग कारक शुक्र हो तो कामी, विषय भोगी ।
योग कारक शनि हो तो अपने श्रम से अपनी स्थिति मजबूत करता है ।
अनफा योग :
चंद्रमा से द्वादस भाव में सूर्य को छोड़कर कोई गृह हो तो अनफा योग बनता है । अनफा योग से युक्त जातक भोग युक्त जीवन व मानसिक चिंताओ से मुक्त रहता है । योग कारक गृहो का वर्णन निम्न अनुसार है :
योग कारक मंगल हो तो मानी, क्रोधी,साहसी।
योग करक बुध हो तो शिल्पी,लेखक, कवी, वक्ता ।
योग कारक गुरु हो तो राज पूजित, धार्मिक, गम्भीर, सतोगुणी होता है ।
योगकारक शुक्र हो तो विलाशी,बुद्धिमान, धन युक्त होता है ।
योग करक शनि हो तो वचन निभाने वाला दलितो का नेता होता है ।
दुरुधरा योग
:
चंद्रमा के आगे व पीछे सूर्य को छोड़ कर कोई गृह हो तो दुरुधरा योग बनता है । ऐसा जातक धनि, मानी, सफल, सुखी जीवन जीता है । हमेशा लोगो से घिरा रहता है । कभी अकेला नहीं रहता है । हमेसा लोगो की चाहत व आकर्षण का केंद्र बना रहता है । योग कारक गृहो के अनुसार फल में परिवर्त्तन निम्न अनुसार होता है :
योग कारक मंगल व बुध हो तो असत्य बोलने वाला व लोभी होता है ।
योग कारक मंगल व गुरु हो तो ज्ञानी, बलवान, धर्म की रक्षा करने वाला होता है ।
योग करक गृह मंगल व शुक्र हो तो बहादुर, भोगी , विषय व कामना पर ज्यादा ध्यान ।
योग कारक मंगल व शनि हो तो क्रोधी व चुगलखोर होता है ।
योग कारक बुध व गुरु हो तो शास्त्रज्ञ , सज्जन व्यक्तियो का संग व धर्म प्रेमी होता है ।
योग कारक बुध शुक्र हो तो गीत संगीत, कला में अभिरुचि , वाक पटु, श्रृंगार रस का कवी ।
योग कारक बुध व शनि हो तो अल्प ज्ञानी , बंधुओ से बेर ।
गुरु शुक्र से योग बने तो राज पूजित , यश, ऐश्वर्य, धर्म पूर्ण जीवन ।
गुरु व शनि योग कारक हो तो सेवा भाव, शान्ति पूर्ण जीवन, त्याग व तपस्या की तरफ आकर्षण ।
शुक्र व शनि होने पर कुलीन स्त्रियो में रूचि रखने वाला उनसे प्रेम की चाहत बनी रहती है ।
केमद्रुम योग :
चंद्रमा जिस भाव में बेठा हो उसके आगे पीछे कोई गृह नहीं हो तो ऐसे योग को केमद्रुम योग कहते है ।
चंद्रमा हमारे मन का कारक होता है ऐसे में उसके आगे पीछे कोई गृह स्थित नहीं हो तो मन में एक भाव उत्पन्न होता है की परिवार व समाज में मेरा कोई नहीं है मै अकेला हूँ । धीरे धीरे उसका वेवहार भी अकेलेपन का बनने लगता है । वह परिवार व समाज के हर आदमी में दुर्गुण ढूंढ़ने लगता है ।
परिणाम सब उससे दूरी बनाने लगते है , मानव चिड़चिड़ापन का शिकार हो जाता है । तनाव में रहने लग जाता है । अंततोगत्वा अवसाद का शिकार हो जाता है अपना शत्रु स्वयं बन जाता है ।
ऐसा जातक किसी भी परिवार में जन्मे दरिद्र हो जाता है, अपमानित जीवन जीने के सारे रास्ते स्वयं बना लेता है ।
केमद्रुम योग के अपवाद :
निम्न स्थितियों में केमद्रुम योग निस्प्रभावी होगा यथा ।
- चंद्रमा की आगे पीछे कोई गृह नहीं है पर चंद्रमा के साथ सूर्य को छोडकर कोई गृह स्थित है तो केमद्रुम योग भंग ।
-चंद्रमा से केंद्र में कोई गृह है तो केमद्रुम योग भंग ।
-लग्न से केंद्र में कोई गृह है तो केमद्रुम योग भंग ।
उपरोक्त तथ्यो से इस निष्कर्ष पर पहुचते है कुंडली का फलित जान्ने के लिए धैर्य , एकागर्ता , कुंडली सब योगो के बारे गहरी समझ होनी चाहिय तभी फलित का सही निर्णय सम्भव है ।
इस प्रकार कुंडली में कोई दुर्योग है और उसके दुष्परिणाम सामने आ रहे है तो अच्छे ज्योतिषी को पत्रिका दिखा कर उचित उपाय के प्रयोग से जीवन को सफल बनाया जा सकता है ।
मनो दशा पर विपरीत प्रभाव की स्थिति में :
ॐ ह्रीम नमः
का निरंतर जप हर समस्या को दूर कर सकता है ।
मोती धारण करना काफी लाभदायक रहेगा