विज्ञान व पराविज्ञान ( ज्योतिष) पुरातन काल से ही संघर्ष चला आ रहा है ।कुछ वैज्ञानिक 'ज्योतिष' को कपोल कल्पना तथा कुछ इसे छलावा कहते हैं ।वहीं कुछ ज्योतिष 'विज्ञान' को अपूर्ण भी मानते हैं ।दोनों के ही अपने-अपने तर्क हैं ।आइए देखें क्यों है ज्योतिष एक 'विज्ञान'।
वस्तुतः ज्योतिष काल (समय) को मापने, उसकी गति बांधने, परखने और प्रतिफल जानने का कार्य को जो शास्त्र करता है, उसी शास्त्र का नाम ज्योतिष शास्त्र है। आकाशीय घटनाओ वह हलचलों के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को बतलाता है एस्ट्रोलॉजी अर्थात ज्योतिष जबकि एस्ट्रोनॉमी अर्थात खगोल- आकाश की घटनाओं व हलचलों के अध्ययन का नाम है।
विज्ञान को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि "विशिष्ट ज्ञान इति विज्ञानम्" । क्रमबद्ध विशिष्ट ज्ञान को विज्ञान कहा जाता है। दूसरी परिभाषा है -"विशेषज्ञानं इति विज्ञानम्" । विशेष ज्ञान को विज्ञान कहा गया है। इन दोनों का कसौटियों पर कसने पर ज्योतिष की वैज्ञानिकता प्रमाणित होती है। इसके अतिरिक्त एक तीसरी कसौटी और आती है - *कार्य कारण संबंधत इति विज्ञानम्* । जिसमें कार्य व कारण का संबंध स्थापित हो, वह विज्ञान है। जैसे- हाइड्रोजन और ऑक्सीजन निश्चित मात्रा में मिलाने पर पानी बनेगा। यही है कार्य व कारण का सिद्धांत। ज्योतिष भी सिद्धांत को मानता है ।शास्त्र कहता है-
"व्यय भावगते चंद्र वाम चक्षु विनाश्यती।"
यदि चंद्रमा नीच का बारहवें भाव में हो तो व्यक्ति काना होगा, नीच का मंगल लग्न में है तो उच्च रक्तचाप होगा, रक्त विकार या मस्से की बीमारी होगी। इस प्रकार ज्योतिष में कार्य का कारण संबंध है.......