ज्योतिष में केमद्रुम योग की अवधारणा
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ज्योतिष में केमद्रुम योग की अवधारणा
केमद्रुम योग ज्योतिष का महत्वपूर्ण योग है। यह चन्द्रमा को केन्द्र मानते हुये बनता है। जब चन्द्रमा से द्वितीय द्वादश भाव में एवं सप्तम स्थान में कोई ग्रह न हो, तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है। यदि सप्तम स्थान में चन्द्रमा को बल देने वाला कोई ग्रह होगा, तो केमद्रुम योग आंशिक या पूर्ण रूप से भंग हो जायेगा। इस योग में जातक को जीवन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जातक का जीवन दरिद्रता और संघर्ष से भरा हुआ होता है। कुछ परिस्थितियों में जातक अशिक्षित, कम पढ़ा-लिखा, मूर्ख भी हो सकता है। कुछ ज्योतिष विद्वानों का यह भी मत है कि, केमद्रुम योग वाले व्यक्ति के जीवन में वैवाहिक सुख व सन्तान पक्ष से सम्बन्धित सुखों में कमी देखी गयी है। जातक घर से दूर रहता है, खुद भी पीड़ित रहता है, दूसरों को भी पीड़ित करता है। कभी-कभी उसके स्वभाव में नीचता और दीनता का भाव भी होता है। ऐसे लोगों की मानसिकता कमजोर होती है।
नाड़ी ज्योतिष में किसी भी ग्रह चन्द्र, मंगल, गुरू, शुक्र, शनि से द्वितीय द्वादश एवं सप्तम अर्थात् तीनों भावों में कोई ग्रह न हो, तो उस ग्रह के लिये केमद्रुम योग का निर्माण होता है अर्थात् केमद्रुम योग सभी ग्रहों का बनता है। अनुभव में यह भी पाया गया है कि, यदि राहु, केतु को दैहिक और दैविक दृष्टि से देखें, तो उनका भी केमद्रुम योग बनता है। जैसे-राहु को दादा, केतु को नाना मानकर देखें। केवल चन्द्रमा को ही केमद्रुम योग में रखना पूर्णतयाः उचित नहीं है। सत्य के धरातल पर प्रयोग की कसौटी पर देखें, तो केमद्रुम योग सभी ग्रहों का बनता है। सूर्य, बुध से 28 डिग्री से दूर नहीं जा सकता, इसलिये शुक्र का केमद्रुम योग कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में बन सकता है।
केमद्रुम योग वाला ग्रह किसी ग्रह से परिवर्तन करता है, तो केमद्रुम योग नहीं बनेगा। यदि केमदु्रम योग वाले ग्रह को अन्य मित्र ग्रह से बल मिलता है, तो केमद्रुम योग भंग हो जाता है। केमद्रुम योग वाले ग्रह को यदि किसी ग्रह से ताकत मिल रही है, तो केमद्रुम योग भंग हो जायेगा। गोचर से भी यदि ग्रह को ताकत मिल रही है, तो उस समय वह ग्रह राशि भाव के अनुसार उचित फल देने लगेगा। यदि केमद्रुम योग वाले ग्रह के पंचम, नवम में शुभ मित्र ग्रह हों, तो भी केमद्रुम योग काफी हद तक भंग हो जाता है। ग्रह के उच्च होने पर ही केमद्रुम योग का प्रभाव नगण्य देखा गया है। यदि चतुर्थ एवं दशम भाव में केमद्रुम योग वाले ग्रह के मित्र ग्रह हों, तो केन्द्रीय प्रभाव के कारण केमद्रुम योग भंग हो जाता है। जैसे-चन्द्रमा से दशम में गुरू बैठा हो, तो अमलाकीर्ति योग होता है। उसी तरह शनि, गुरू आदि अन्य ग्रहों के साथ भी इस प्रकार के योग बनें या शनि से दशम भाव में गुरू बैठा हो, तो भी यह योग भंग हो जाता है।
केमद्रुम योग का जीवन में प्रभाव
1. केमद्रुम योग वाले जातक का जीवन संघर्षमय होता है।
2. अभावग्रस्त होता है। आर्थिक समस्याएँ ज्यादा होती हैं।
3. यदि केमद्रुम योग भंग होता है, तो राजयोग की श्रेणी में आ जाता है। मान-सम्मान, यश भी देता है।
4. किसी भी योग का केवल नकारात्मक दृष्टिकोण नहीं होता है बल्कि सकारात्मक भी होता है। इस दृष्टिकोण से केमद्रुम योग भंग होने पर जीवन में सफलता भी मिलती है।
5. केमद्रुम योग जिस ग्रह का बनेगा, उस ग्रह के कारक तत्वों में सम्बन्धित सुखों में कमी लायेगा। जैसे-गुरू का केमद्रुम योग बन रहा है, तो गुरू जीव का कारक होता है, मतलब जीव का परेशानी होगी, आयु कम हो सकती है, शरीर में बीमारियाँ हो सकती हैं, उसके रहने का तरीका भी बदल सकता है व पराश्रित रह सकता है, उसकी देख-रेख करने वाले कम लोग हो सकते हैं।
केमद्रुम योग के शान्ति के उपाय
1. जिस ग्रह का केमद्रुम योग बनेगा, उस ग्रह से सम्बन्धित देवी-देवता की पूजा करने से लाभ होता है।
2. केमद्रुम योग वाला ग्रह यदि चन्द्रमा से बन रहा है, तो चन्द्रमा को बल देने का उपाय करें। चन्द्रमा जिस राशि में बैठा है, उस राशि के स्वामी को बली करने से चन्द्रमा का बल बढ़ेगा।
3. सोमवार के दिन शिवार्चन करें। शिवलिंग में गाय का कच्चा दूध चढ़ायें। भगवान शिव व माता पार्वती का पूजन करें।
4. यदि शनि का केमद्रुम योग बन रहा हो, तो शनि जिस राशि में बैठा हो, उस राशि से सम्बन्धित देवी-देवता का पूजन करें। शनि, शिव का कारक होता है, अतः शिव की आराधना से विशेष लाभ होगा।
बृजेश कुमार शास्त्री