देवगुरु बृहस्पति की ज्योतिष शास्त्र में महत्वपूर्ण भूमिका
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नवग्रहों में देवगुरु बृहस्पति का दिन गुरुवार माना गया है।धनु और मीन दो राशियां बृहस्पति देव की ही है।चंद्रमा की राशि कर्क देवगुरू बृहस्पति की उच्च राशि है।मकर राशि इनकी नीच राशि मानी गई हैं।एक राशि में बृहस्पति देव का गोचर लगभग 13 माह रहता है। धन,शिक्षा, संतान,सुख,स्त्री जातको के लिए पति के कारक,गुरू के कारक, भाग्य, कर्म व आय के भी कारक माने जाते हैं।कानून,शिक्षा व शिक्षण,स्कूल, कांलेज, यूनिवर्सिटी, न्याय, दर्शनशास्त्र,वेद,पुराण, साहित्यिक कलाओं से भी इनका संबंध बताया गया है।स्वास्थ्य, चिकित्सा व चिकित्सको, गहन अध्ययन व शोध कार्य, जज,वकील, राजनीति दल से जुडे लोग, उच्च पदस्थ अधिकारियों के साथ जनता द्वारा चुने गये जनप्रतिनिधि, वित्त,से भी इनका संबंध जोडा जाता है।धनु राशि इनकी मूल त्रिकोण राशि है।चर्मरोग, मोटापा-स्थूल शरीर, गुर्दा, तिल्ली, पेट से संबंधित रोग,का विचार भी बृहस्पति से किया जाता है।अनुशासन, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठता जैसे गुण है देवगुरु में।बृहस्पति के इष्टदेव परब्रह्म परमात्मा स्वयं है।बृहस्पति के कष्ट निवारण स्वरुप पीतल की पूजा, केले की पूजा, ब्रम्हा जी की पूजा करनी चाहिए।पीपल पर जल चढावें।गुरूवार के दिन दूध चढावें।घी का दीपक जलावें।पीली वस्तु का भोग लगावे।दान स्वरूप बृहस्पति की सामग्री पीतवस्त्र, चने की दाल,घी,धार्मिक पुस्तक, पीली सरसों, हल्दी की गांठ,केला,पपीता, पीले फल,बेसन,बेसन या बूंदी के लड्डू, पीला पुखराज, अश्व,स्वर्ण, पीले पुष्प दान देना उत्तम रहेगा।केला,पपीता, पीपल वृक्ष गुरुवार को लगाना चाहिए।ब्रम्हा जी की पूजा करें।बृहस्पति के मंत्रों के साथ साथ बृहस्पति स्त्रोत्र का भी पाठ स्वयं करना या कराना चाहिए कर्मकाण्डी पंडित जी से।पंचमुखी रुद्राक्ष का संबंध भी देवगुरु बृहस्पति देव जी से ही बताया गया है।पंचमुखी रूद्राक्ष, पंचमुखी रूद्राक्ष की माला धारण करना चाहिए।ब्राम्हण,शिक्षक,वरिष्ठ गुरू जन,दादा, पिता से भी संबंधित है देवगुरू बृहस्पति।मंदिर, तीर्थ क्षेत्रों, पवित्र ग्रंथों, आश्रमों, मठों, मठाधीशों, धर्मगुरुओं से,धार्मिक कार्य आदि का संबंध भी गुरू से ही है।
समय समय पर दशा व गोचर परिवर्तन होता रहता है।बदली हुई परिस्थितियों के विषय पर, उनके पडने वाले प्रभाव को समझने के हिसाब से ज्योतिष की जानकारी प्राप्त करने के लिए संपर्क करें।
मनीष दुबे, ज्योतिष पारंगत, ज्योतिष गौरव सम्मान, श्रेष्ठ कुंडली निर्माण व फलित ज्योतिष में मानद उपाधि प्राप्त.