राहु से निर्मित कुछ योग कपट योग- जब कुंडली के चौथे घर में शनि हो और राहु बारहवें घर में हो तो कपट योग होता है इस योग के कारण कथनी और करनी में अंतर होता हैं । क्रोध योग- सूर्य बुध या शुक्र के साथ राहु लग्न में हो तो क्रोध योग होता है इस कारण जातक को लडाई झगड़ा, वाद विवाद के परिणामस्वरूप हानि और दुःख उठाना पड़ता है । अष्ट लक्ष्मी योग- जब राहु षष्ठम में और गुरु केंद्र(दशम) में हो तो अष्ट लक्ष्मी योग होता है इस योग के कारण व्यक्ति शांति के साथ यशस्वी जीवन जीता है । पिशाच बाधा योग- चंद्र के साथ राहु लग्न में हो तो पिशाच बाधा योग होता है इस योग के कारण पिशाच बाधा की तकलीफ सहना पड़ता है ।और व्यक्ति निराशा वादी अपने को घात पहुंचाने वाला होता है ।चर लग्न में अगर चंद्रमा राहु की युति केंद्र में हो तो शुभ फलदायक भी होती है ।अगर त्रिकोण (5,9)का स्वामी चंद्र हो और 5,9 भाव में चंद्र राहु की युति हो तो भी शुभ फलदायक होता है ।अन्य भावो में चंद्र राहु की युति होने से भयंकर आरोपों द्वारा उत्पन्न मुकदमेबाज़ी का सामना करना पड़ता है तथा नाना प्रकार का दुःख भोगना पड़ता हैं । चाण्डाल योग- गुरु के साथ राहु की युति होने से चाण्डाल योग होता है इस योग के प्रभाव से व्यक्ति नास्तिक और पाखंडी होता हैं। गुरु के साथ केतु होने से उपासना योग होता है इस योग में व्यक्ति पुजा पाठ करने वाला होता है ग्रहण योग- जब कुंडली में सूर्य राहु की युति हो तो ग्रहण योग होता है अगर यह युति लग्न में हो तो व्यक्ति क्रोधी होता हैं सेहत भी अच्छा नहीं होता है । स्थिर लग्न में त्रिकोण में सूर्य राहु की युति हो तो वह शुभ फलदायक होता है सर्प शाप योग- मेष या वृश्चिक राशि का राहु पंचम स्थान मे हो, पंचम या लग्न में मंगल गुरु हो या पंचम में मंगल राहु से युक्त हो सर्प शाप योग होता है इस योग में व्यक्ति की संतति संकटों में फसती है या दुर्घटनाग्रस्त होती है अनिष्टहर योग -लग्न से 3,6,11 में से किसी भी स्थान मे राहु हो तो यह योग होता है इस राहु पर शुभ ग्रह की दृष्टि होने से शुभ फलदायक होता हैं मेष, वृषभ ,कर्क ,इन तीन राशियों में से कोई लग्न हो और राहु 9,10,11 में हो तो भी अरिष्टहर योग होता है यह शुभ फलदायक होता हैं । श्रापित योग- शनि राहु की युति से निर्मित होता है यदि लग्न में हो तो सेहत ठीक नहीं रहती है व्यक्ति हमेशा बीमार रहता है चतुर्थ स्थान में होने से माता को कष्ट होता है ।पंचम में होने पर संतति के लिए कष्ट दायक होता है सप्तम में पति-पत्नी के लिये कष्ट दायक होता है नवम में पिता के लिए कष्ट दायक होता है दशम में व्यापार एवं प्रतिष्ठा को हानि होता हैं परन्तु यदि गुरु की दृष्टि हो तो दुष्प्रभाव मे कमी आती है ।