धन (द्वितीय भाव मे) राहु का फल
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ज्योतिष चर्चा
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राहु का भावफल
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धन (द्वितीय भाव मे) राहु का फल
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पिछले लेख में हमने राहु के प्रथम भाव मे हिने पर मिलने वाले फलों के विषय मे चर्चा की थी आज के लेख में हम राहु के दूसरे धन भाव मे होने पर मिलने वाले फलों के विषय मे चर्चा करेंगे कुण्डली का दूसरा भाव धन भाव होने के साथ-साथ
विवेक, दाहिना नेत्र, परिवार, (कुटुंब का सुख), स्वर विचार गुणज्ञता, वचन-वाणी, विद्या, भोजन, सौंदर्य, यात्रा, सुवर्ण रत्नादि कोष, लाक्षाधिपति तथा विपुल धन संपदा आदि का भी न्यूनाधिक रूप से विचार किया जाता है राहु के यहां बैठने पर जातक को उस भाव के अनुसार क्या फल मिलेंगे इसके बारे में इस लेख में संक्षिप रूप से वर्णन किया जा रहा है।
कुण्डली के द्वितीय (दूसरे) भाव ने राहु के होने पर जातक भाग्यशाली होता है। उसे मांस, मछली, अंडे, खाल, चमड़ा अथवा जूट के व्यापार से लाभ होने की सम्भवना बढ़ती है। ऐसे कई जातक महिलाओं के शोषण, डकैती, ठगी आदि से भी धन पाते है।
इस भाव मे मेष, वृष या कर्क राशि का राहु मुस्लिम या ईसाई की सेवा-सहायता
से धन दिलाता है। सिंह या कन्या राशि का राहु पाप की कमाई का संकेत देता है।, मिथुन राशि का राहु यदि पाप दृष्ट हो तो हीन महिला पर आश्रित बनाता है।
कुम्भस्थ राहु किसी धार्मिक तीर्थस्थान पर धर्म की आड़ में ठगी द्वारा धन दिलाता है।
इस भाव मे राहु के होने पर कभी-कभी ऐसा जातक दूसरे के धन का अपहरण करने वाला चोर या ठग होता है। अनीतिपूर्ण कार्यों से धन पाने में वह कुशल होता है। कभी मांस, मछली या हीन लोगों के सहयोग से भी धन पाता है।
द्वितीयस्थ राहु जातक को मिथ्याभाषी भी बनाता है। वह कपट कुशल व धूर्त होता है तथा वाणी से लोगों को संताप देता है। धन, वाणी व कुटुम्ब जातक के जीवन में महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शुभ व बली राहु जातक को की प्रगतिशील व यशस्वी बनाता है। निर्बल या पापयुक्त/दृष्ट राहु जातक को पीड़ा व अपयश देता है।
कुछ विद्वानों ने (मतान्तर से) द्वितीय भाव को चेहरा माना है, इसमें राहु की स्थिति जातक को कुरूप बना सकती है। कोई जातक संवेदनशील व सहानुभूतिपूर्ण
व्यवहार के कारण सरकार से धन व मान पाता है। ध्यान रहे दशम भाव, द्वितीय " से नवमस्थ होने के कारण, राहु से त्रिकोण सम्बन्ध बनाएगा।
ऐसा जातक तामस प्रकृति, कटुभाषी, मांस-मदिरा का सेवन करने वाला, कुटुम्ब-सुख से वंचित, निर्धन व्यक्ति होता है। जातक परदेश में अच्छा लाभ पाता है। समराशि का द्वितीयस्थ राहु पैतृक सम्पदा या अनार्जित धन दिलाता है। यदि कोई अशुभ प्रभाव न हो तो मिथुन, कन्या व कुम्भ राशि का राहु प्रायः कल्याणकारी व शुभ होता है
आधुनिक विद्वानों ने द्वितीयस्थ राहु को वसीयत, पुरस्कार या उपहार द्वारा धन प्राप्ति का कारक माना है। जातक के अभाव मिट जाते हैं तथा वह अनायास धन-सम्पदा प्राप्त कर धन-वैभव सम्पन्न हो जाता है। कभी मिथ्या भाषण, सत्यनिष्ठा की कमी या शत्रु भय से परेशानी बढ़ती है। शुभ युक्त/दृष्ट व बली राहु धन, मान, कुटुम्ब सुख तथा प्रतिष्ठा देता है। हीन बली व पापयुक्त राहु दुख, क्लेश, कलंक व निर्धनता देता है।
कन्या व कुम्भ राशि या सम राशि का राहु अप्रत्याशित ढंग से धन दे सकता है। बड़े कार्य व योजना से धन मिलता है। कभी विषम राशिस्थ राहु द्वितीय भाव में होने पर धन प्राप्ति में बाधा, विवाद, शत्रुता व अपयश देकर दुखी बना सकता है।
द्वितीयस्थ राहु जातक को तामसिक खान-पान, दन्त रोग भी देता है। व्यक्ति की अपनी कमाई हुई सम्पत्ति एक बार खत्म हो जाती है लेकिन ये अपनी मेहनत से उसे फिर अर्जित कर लेते हैं। कभी अन्याय या गलत कार्यों से प्राप्त सम्पत्ति स्थिर रहती है। कई जातको को धन से ज्यादा अपने यश की चिन्ता रहती है।
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