मारकेश और उसपर विचार

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Yatin S Upadhyay 14th Mar 2017

जीवन और मृत्यु मनुष्य के दो पक्ष है। जीवन के पक्ष में संघर्ष, निराशा, आशा, सफलता और अल्पकालिक सुख है तो मृत्यु एक सार्वभौमिक सत्य है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु होनी है सिर्फ यही एक प्रत्यक्ष सत्य है। जीवन सिखाता है, रूलाता है, दिखाता है और समझाता भी है किन्तु मृत्यु में रीटेक नहीं होता। जीवन भाग्य से मिलता है लेकिन मृत्यु की प्रकृति कर्मो पर आधारित है। इसलिए ऐसे कर्म करने चाहिए जिससे मरने के बाद भी लोगों के जेहन में बने रहें।www.futurestudyonline.com
जन्मकुण्डली का सामयिक विशलेषण करने के पश्चात ही यह ज्ञात हो सकता है कि व्यक्ति विशेष की जीवन अवधि अल्प, मध्यम अथवा दीर्घ है। जन्मांग में अष्टम भाव, जीवन-अवधि के साथ-साथ जीवन के अन्त के कारण को भी प्रदर्शित करता है। अष्टम भाव एंव लग्न का बली होना अथवा लग्न या अष्टम भाव में प्रबल ग्रहों की स्थिति अथवा शुभ या योगकारक ग्रहों की दृष्टि अथवा लग्नेश का लग्नगत होना या अष्टमेश का अष्टम भावगत होना दीर्घायु का द्योतक है
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तृतीय भाव अष्टम से अष्टम होता है तथा जन्मांग में तृतीय भाव मृत्यु को प्रदर्शित करता है। जिस कारण अष्टम भाव मृत्यु को प्रदर्शित करता है। अष्टम एंव तृतीय भाव में स्थित ग्रहों में मारकत्व समाहित होता है। यदि लग्न जीवन का प्रारम्भ है तो जीवन के अन्त का ज्ञान द्वादश भाव से जानना चाहिए। तृतीय भाव तथा अष्टम भाव से द्वादश भाव सप्तम और द्वितीय भाव मारकेश कहलाते है।
मारकेश का अर्थ है मृत्यु तुल्य कष्ट अर्थात जन्मकुण्डली में जो ग्रह मृत्यु या मृत्यु के समान कष्ट दें उन्हें मारकेश कहा जाता है। आप-अपनी जन्मपत्री देखकर स्वयं जान सकते है कि मेरे कौन से ग्रह अपनी दशा में मारकेश का रूप लेंगे।
राशियों के हिसाब से जानें अपना मारकेश..
मेष लग्न- मेष लग्न के लिए शुक्र दूसरे एंव सातवें भाव का मालिक है, किन्तु फिर भी जातक के जीवन को समाप्त नहीं करेगा। यह गम्भीर व्याधियों को जन्म दे सकता है। मेष लग्न में शनि दशवें और ग्यारहवें भाव का अधिपति होकर भी अपनी दशा में मृत्यु तुल्य कष्ट देगा।
वृष-वृष लग्न के लिए मंगल सातवें एंव बारहवें भाव का मालिक होता है जबकि बुध दूसरे एंव पांचवें भाव का अधिपति होता है। वृष लग्न में शुक्र, गुरू व चन्द्र मारक ग्रह माने जाते है।
मिथुन-इस लग्न में चन्द्र व गुरू दूसरे एंव सातवें भाव के अधिपति है। चन्द्रमा प्रतिकूल स्थिति में होने पर भी जातक का जीवन नष्ट नहीं करता है। मिथुन लग्न में बृहस्पति और सूर्य मारक बन जाते है।
कर्क-शनि सातवें भाव का मालिक होकर भी कर्क के लिए कष्टकारी नहीं होता है। सूर्य भी दूसरे भाव का होकर जीवन समाप्त नहीं करता है। लेकिन कर्क लग्न में शुक्र ग्रह मारकेश होता है।
सिंह-इस लग्न में शनि सप्तमाधिपति होकर भी मारकेश नहीं होता है जबकि बुध दूसरे एंव ग्यारहवें भाव अधिपति होकर जीवन समाप्त करने की क्षमता रखता है।
कन्या-कन्या लग्न के लिए सूर्य बारहवें भाव का मालिक होकर भी मृत्यु नहीं देता है। यदि द्वितीयेश शुक्र , सप्तमाधिपति गुरू तथा एकादश भाव का स्वामी पापक्रान्त हो तो मारक बनते है किन्तु इन तीनों में कौन सा ग्रह मृत्यु दे सकता है। इसका स्क्षूम विश्लेषण करना होगा।
तुला-दूसरे और सातवें भाव का मालिक मंगल मारकेश नहीं होता है, परन्तु कष्टकारी पीड़ा जरूर देता है। इस लग्न में शुक्र और गुरू यदि पीडि़त हो तो मारकेश बन जाते है।
वृश्चिक-गुरू दूसरे भाव का मालिक होकर भी मारकेश नहीं होता है। यदि बुध निर्बल, पापक्रान्त हो अथवा अष्टम, द्वादश, या तृतीय भावगत होकर पापग्रहों से युक्त हो जाये तो मारकेश का रूप ले लेगा।
धनु-शनि द्वितीयेश होने के उपरान्त भी मारकेश नहीं होता है। बुध भी सप्तमेश होकर भी मारकेश नहीं होता है। शुक्र निर्बल, पापक्रान्त एंव क्रूर ग्रहों के साथ स्थिति हो तो वह मारकेश अवश्य बन जायेगा।
मकर-मकर लग्न में शनि द्वितीयेश होकर भी मारकेश नहीं होता है क्योंकि शनि लग्नेश भी है। सप्तमेश चन्द्रमा भी मारकेश नहीं होता है। मंगल एंव गुरू यदि पापी या अशुभ स्थिति में है तो मारकेश का फल देंगे।
कुम्भ-बृहस्पति द्वितीयेश होकर मारकेश है किन्तु शनि द्वादशेश होकर भी मारकेश नहीं है। मंगल और चन्द्रमा भी यदि पीडि़त है तो मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकते है।
मीन-मंगल द्वितीयेश होकर भी मारकेश नहीं होता है। मीन लग्न में शनि और बुध दोनों मारकेश सिद्ध होंगे। अष्टमेश सूर्य एंव षष्ठेश शुक्र यदि पापी है और अशुभ है तो मृत्यु तुल्य कष्ट दे सकते है।
यतिन एस उपाध्याय
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