माँ दुर्गा की आगमन और गमन का रहस्य

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Prem Sagar Pandey 28th Sep 2019

जानें माता दुर्गा की आगमन और गमन का रहस्य साथ ही

शुभ और अशुभ फल।*हाथी पर आएंगी माता और मुर्गा पर सवार होकर लेंगी विदा*इस साल नवरात्र की शुरुआत रविवार से हो रही है। जिससे इस नवरात्र में माता हाथी पर सवार होकर आयेँगी। हाथी की सवारी होने से इस बार देश में अतिवृष्टि की संभावना है। यानी अगले शारदीय नवरात्र तक बारीश ज्यादा होगी। बिना मौसम बारीश होने की भी संभावना है। देश के कई भागों में अच्छी वर्षा होगी।देवी भागवत के अनुसार सनातन कैलेंडर में आश्विन माह के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से नवमी तक के नौ दिन देवी पूजा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माने गए हैं। इन दिनों को शारदीय नवरात्र कहा जाता है। इस बार 29 सितंबर, रविवार से शारदीय नवरात्र की शुरुआत हो रही है और 8 अक्टूबर मंगलवार को दशहरा मनाया जाएगा।  वैसे तो मां दुर्गा का वाहन सिंह है, लेकिन हर नवरात्र पर देवी दुर्गा पृथ्वी पर अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर आती हैं। देवी के अलग-अलग वाहनों पर सवार होकर आने से इसका अलग-अलग शुभ-अशुभ फल बताया गया है।देवी भागवत के अनुसार माता दुर्गा जिस वाहन से पृथ्वी पर आती हैं, उसके अनुसार साल भर होने वाली घटनाओं का भी आकलन किया जाता है। उनके धरती पर आने का दिन कलश स्थापना के दिन से तय किया जाता है। इसके लिए एक श्लोक का उल्लेख है।दिनशशि सूर्य गजारुढा शनिभौमे तुरंगमे।गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता॥अर्थात यदि कलश स्थापना रविवार और सोमवार को हो तो भगवती का भूमि पर आगमन  (दिनशशि सूर्य गजारूढ़ा) हाथी पर होता है। यदि कलश स्थापना शनिवार और मंगलवार को हो तो माँ दुर्गा का आगमन (शनिभौमे तुरंगमे) अर्थात घोड़े पर होता है। यदि कलश स्थापना बृहस्पतिवार और शुक्रवार को हो तो जगतजननी का धरती पर आगमन (गुरौशुक्रेच दोलायां) डोला पर होता है। और अगर कलश स्थापन, बुधवार को हो तो देवी का आगमन नाव पर होना कहा गया है (बुधे नौकाप्रकीर्तिता)।किस वाहन पर आने पर क्या घटनायें घटित होंगी राष्ट्र में?देवी भागवत के इस श्लोक के अनुसार:-गजेश जलदा देवी क्षत्रभंग तुरंगमे।नौकायां कार्यसिद्धिस्यात् दोलायां मरणम् ध्रुवम्॥अर्थात(गजेश जलदा देवी) यदि देवी का आगमन हाथी पर होता है तो आने वाले समय में अच्छी वर्षा होती है, फसल अच्छी होती होती है। (क्षत्रभंग तुरंगमे) मार्कन्डेय पुराण के अनुसार देवी यदि अश्व पर आती हैं तो शासकों की नीतियों से आम जनों को कष्ट, राज्य भय, महंगाई में सतत वृद्धि और प्रजाजनों में असंतोष पैदा होता है। इससे संकेत केन्द्र या प्रदेश की सरकारों के संकटग्रस्त होने की ओर है। अगर माँ दुर्गा का धरती पर आगमन घोड़े पर होता है तो देश के राजाओं में युद्ध होता है। और सत्तासीन राजा के शासन के अंत होने की आशंका रहती है। (नौकायां कार्यसिद्धिस्यात्) और अगर माँ दुर्गा का आगमन नाव पर हो तो इससे सब कार्यों में सिद्ध मिलती है। लेकिन अगरजगत जननी का धरती पर आगमन दोला अर्थात डोली या पालकी पर होता है तो उस वर्ष में अनेक कारणों से बहुत लोगों की मृत्यु होती है, दोलायां मरणम् ध्रुवम्॥इसी तरह माता के प्रस्थान या गमन के समय की भी गणना की जाती है। देवी भागवत के अनुसार नवरात्र का आखिरी दिन अर्थात विजयादशमी का दिन तय करता है कि जाते समय माता का वाहन कौन सा होगा। यानी नवरात्र के अंतिम दिन कौन सा वार है, उसी के अनुसार देवी का वाहन भी तय होता है। और उनके वाहन के अनुसार ही वर्ष भर की सामाजिक, राजनैतिक या आर्थिक स्थिति रहती है।देवी भागवत के अनुसार:- शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा,शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला।बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा,सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥(सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा) अर्थात यदि विजयादशमी रविवार और सोमवार को हो तो भगवती का प्रस्थान महिष  (भैंसा) की सवारी पर होता है। और महिष पर देवी का जाना देश या राष्ट्र के लिए ठीक नहीं है। यह देश में रोग और शोक की वृद्धि का परिचायक है।(भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला) अगर विजया दशमी शनिवार और मंगलवार को पड़ती है अर्थात उनका प्रस्थान शनिवार या मंगलवार को होता है तो वह उस पर सवार होकर जाती हैं जो युद्धमें अपने चरणों अर्थात पैरो का उपयोग करता है अर्थात मुर्गे पर सवार होकर जाती हैं। इससे देश में भाय, परेशानी, डर और विकलता की वृद्धि होती है। हालांकि एक अन्य मत के अनुसार चरणायुध यानि करी विकला.... को देवी के बिना किसी वाहन के ही पैदल जाने का उल्लेख मिलता है। लेकिन परिणाम के रूप मे विकलता को ही स्थापित किया गया है।  (बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा) बुधवार और शुक्रवार के दिन विजयदशमी पड़ने पर भगवती हाथी पर सवार होकर जाती हैं। देवी के हाथी पर सवार होकर जाने से देश भर मे आने वाले वर्ष अच्छी वृष्टि और कृषि में वृद्धि होती है।(सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा) यदि देवी का प्रस्थान बृहस्पतिवार को होता है अर्थात विजयादशमी गुरुवार को पड़ती है तो भगवती मनुष्य की सवारी से जाती हैं। जो सुख और सौख्य की वृद्धि करती है। सभी ओर शांति और सुख का राज होता है।इस वर्ष हाथी पर आएंगी और पैदल ही जाएंगीइस वर्ष रविवार को नवरात्र का आरंभ हो रहा है। इसी दिन कलश स्थापना किया जाएगा इसलिए माता का वाहन हाथी है।और बिना किसी वाहन के नंगे पांव वापस जाएंगी।.......पुनः समझे...... देवीभाग्वत पुराण में बताया गया है कि 'शशि सूर्य दिने यदि सा विजया महिषागमने रुज शोककरा, शनि भौमदिने यदि सा विजया चरणायुध यानि करी विकला। बुधशुक्र दिने यदि सा विजया गजवाहन गा शुभ वृष्टिकरा, सुरराजगुरौ यदि सा विजया नरवाहन गा शुभ सौख्य करा॥ इस श्लोक से स्पष्ट है कि इस वर्ष माता पैदल जा रही हैं। इसकी वजह यह है कि रविजयादशमी मंगलवार को है। मंगल और शनिवार के दिन विदाई होने पर माता किसी भी वाहन पर नहीं जाती हैं।


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