*जिंदगी को जहर बना देता है जन्म कुंडली में मौजूद 'विष योग'* *ज्योतिष शास्त्र में अनेक योगों का वर्णन मिलता है। ये योग दो या दो से अधिक ग्रहों के आपस में संबंध से बनते हैं। यदि शुभ ग्रहों की युति हो तो शुभ योग का निर्माण होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति का जीवन सुखों से भर जाता है। लेकिन यदि अशुभ ग्रहों के कारण योग बन रहा है, तो व्यक्ति का जीवन नर्क के समान हो जाता है। ऐसा ही एक अशुभ योग है 'विष योग"। जन्म कुंडली में विष योग का निर्माण शनि और चंद्रमा की युति से होता है। यह योग जातक के लिए बेहद कष्टकारी माना जाता है। नवग्रहों में शनि को सबसे मंद गति के लिए जाना जाता है और चंद्र अपनी तीव्रता के लिए प्रसिद्ध है, लेकिन शनि अधिक पॉवरफुल होने के कारण चंद्र को दबाता है। इस तरह यदि किसी व्यक्ति की जन्म कुंडली के किसी स्थान में शनि और चंद्र साथ में आ जाए तो विष योग बन जाता है। इसका दुष्प्रभाव तब अधिक होता है जब आपस में इन ग्रहों की दशा-अंतर्दशा चल रही हो। विष योग के प्रभाव से व्यक्ति जीवनभर अशक्तता में रहता है। मानसिक रोगों, भ्रम, भय, अनेक प्रकार के रोगों और दुखी दांपत्य जीवन से जूझता रहता है। यह योग कुंडली के जिस भाव में होता है उसके अनुसार अशुभ फल जातक को मिलते हैं।* *किस भाव में विष योग का क्या प्रभाव-* *यदि किसी जातक के लग्न स्थान में शनि-चंद्र का विष योग बन रहा हो, तो ऐसा व्यक्ति शारीरिक तौर पर बेहद अक्षम रहता है। उसे पूरा जीवन तंगहाली में गुजारना पड़ता है। लग्न में शनि-चंद्र होने पर उसका प्रभाव सीधे तौर पर सप्तम भाव पर भी होता है। इससे दांपत्य जीवन दुखपूर्ण हो जाता है।लग्न स्थान शरीर का भी प्रतिनिधित्व करता है इसलिए व्यक्ति शारीरिक रूप से कमजोर और रोगों से घिरा रहता है।* *दूसरे भाव में शनि-चंद्र की युति होने पर जातक जीवनभर धन के अभाव से जूझता रहता है।* *तीसरे भाव में बना विष योग व्यक्ति का पराक्रम कमजोर कर देता है और वह अपने भाई-बहनों से कष्ट पाता है।* *चौथे भाव सुख स्थान में शनि-चंद्र की युति होने पर सुखों में कमी आती है और मातृ सुख नहीं मिल पाता है।* *पांचवें भाव में यह दुर्योग होने पर संतान सुख नहीं मिलता और व्यक्ति की विवेकशीलता समाप्त होती है।* *छठे भाव में विष योग बना हुआ है तो व्यक्ति के अनेक शत्रु होते हैं और जीवनभर कर्ज में डूबा रहता है।* *सातवें स्थान में होने पर पति-पत्नी में तलाक होने की नौबत तक आ जाती है।* *आठवें भाव में बना विष योग व्यक्ति को मृत्यु तुल्य कष्ट देता है। दुर्घटनाएं बहुत होती हैं।* *नौवें भाव में विष योग व्यक्ति को भाग्यहीन बनाता है। ऐसा व्यक्ति नास्तिक होता है।* *दसवें स्थान में शनि-चंद्र की युति होने पर व्यक्ति के पद-प्रतिष्ठा में कमी आती है। पिता से विवाद रहता है।* *ग्यारहवें भाव में विष योग व्यक्ति के बार-बार एक्सीडेंट करवाता है। आय के साधन न्यूनतम होते हैं।* *बारहवें भाव में यह योग है तो आय से अधिक खर्च होता है।* *गोचर चक्र में हर महीने कम से कम एक बार विष योग जरूर बनता है। क्योंकि चंद्रमा गोचर करते हुए महीने में एक बार शनि के साथ जरूर आता है। उस समय वह जिस स्थान में शनि के साथ युति करता है, उसके अनुसार व्यक्ति को कष्ट मिलता है।*