भगवन् ! परमं पुण्यं गुह्यं वेदांगमुत्तमम् ।
त्रिस्कन्धं ज्यौतिषं होरा गणितं संहितेति च ।।
एतेष्वपि त्रिषु श्रेष्ठा होरेति श्रूयते मुने ।
यहां उपरोक्त श्लोक में मैत्रेय अपने गुरु पराशर से प्रश्न करते हैं कि भगवन ! वेदांगों में श्रेष्ठ ज्योतिषशास्त्र के होरा, गणित और संहिता इस प्रकार तीन स्कन्ध हैं । उनमें भी होराशास्त्र ही श्रेष्ठ है, वह मैं आपसे सुनना चाहता हूँ ।
यहां हम समझ गए कि ज्योतिष के तीन स्कन्ध हैं ।
1. होरा
2. गणित और
3. संहिता
इसमें सर्वश्रेष्ठ होरा को बताया गया है ।
शब्दशास्त्रं मुखं ज्यौतिषं चक्षुषी
श्रोत्रमुक्तं निरुक्तं च कल्पः करौ ।
या तु शिक्षाऽस्य वेदस्य सा नासिका
पादपद्म द्वयं छन्द आद्यैर्बुधैः ।।
विद्वान महिर्षियों ने चारो वेदों में वेदपुरूष भगवान के छः अंगों को प्रकाशित करते हुए वेद का ज्ञान हम सभी के लिए प्रस्तुत किया है ।
शिक्षा, कल्प, निरूक्त, छन्द, शब्द और ज्योतिष ये वेद के विभाग कहे गए हैं इनको ही निम्नलिखित अंगों के रूप में हम सभी के लिए प्रस्तुत किया गया है ।
1. शिक्षा को वेद का नासिका कहा गया है ।
2. कल्प को वेद के कर अर्थात हथेली कहा गया है, जिसमें यज्ञों एवं संस्कारों की विधियां बतायी गयी है
3. निरूक्त को श्रोत्रमुक्त कहा गया है जिसमें वैदिक शब्दों की व्याख्या बतायी गयी है जिसे व्युत्पत्ति विज्ञान भी कहते हैं ।
4. छंद को वेद का दोनों पद अर्थात पैर कहा गया है जिसमें वैदिक मात्राओं का ज्ञान जैसे लय, स्वर, गति, विराम ह्रस्व तथा दीर्घ उच्चारण आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त होता है ।
5. शब्द को वेद का मुख कहा गया है इसको व्याकरण भी कहना उचित होगा यहां शब्द रचना, वाक्य रचना तथा उनके रूपों का प्रयोग आदि का ज्ञान होता है ।
6. ज्योतिष को वेद का चक्षु कहा गया है, ग्रह व नक्षत्रों की स्थिति व गति आदि की गणना तथा चराचर जगत पर पड़ने वाले इनके प्रभावों का ज्ञान होता है ।
ज्योतिष को वेद का छठा अंग जिसे संस्कृत में षढांग भी कहा जाता है यह ज्योति शब्द से बना है हम और आप सभी जानते हैं कि ज्योति अर्थात ज्ञान रूपी प्रकाश के बिना न तो हम सांसारिक सुखों को ही प्राप्त कर सकते हैं न ही मुक्ति ही प्राप्त कर सकते हैं ।
वेद ही ज्योतिष का उद्गम स्थान है इसकी सार्थकता में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए ।
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