मनुष्य का जीवन उसके कर्मों पर आधारित होता है। विभिन्न शक्तियाँ उसके जीवन को प्रभावित करती हैं। वास्तुशास्त्र एक महत्त्वपूर्ण शक्ति है। अगर व्यक्ति के सितारे बहुत अनुकूल नहीं होते तो वास्तु के सिद्धांतों के उल्लंघनजनित विपरीत प्रभाव अधिक सीमा तक महसूस नहीं होते। लेकिन आपके सितारे यदि अनुकूल नहीं हैं तो वे बुरी तरह महसूस होते हैं। वास्तु बरसात में छतरी के समान हैं अगर हमें काँटों भरी राह पर चलना है तो जूते पहनने ही पड़ेंगे। मैं पिछले दो दशकों के दौरान लोगों से विचार-विमर्श कर आधारित अकसर पूछे जानेवाले इन प्रश्नों को एकत्रित किया है। मैं इन पर्यवेक्षकों की आभारी हूँ कि उन्होंने मुझे इस वास्तु विज्ञान के अंदर अधिक-से-अधिक गहराई तक जाने के लिए प्रेरित किया। अब मैं किसी मकान का सूक्ष्मता से निरीक्षण करने के बाद आत्मविश्वास के साथ बता सकती हूं कि उसके स्वामी को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। वास्तु विज्ञान में मेरा विश्वास किस प्रकार गहरा होता जाता है, जब मेरे अनुमानों को मकान के स्वामी प्रमाणित करते हैं। अगर लोगों को मेरी सलाह से लाभ हुआ है तो इसका श्रेय मुझे नहीं, वास्तुशास्त्र के सिद्धांतों को दिया जाना चाहिए। वर्तमान युग में वास्तु को मिली प्रसिद्ध स्वयं उसकी प्रासंगिकता का प्रमाण है। इससे पहले कि हम वास्तु के विभिन्न पहलुओं और हमारे मानसिक व शारीरिक हितों पर उनके प्रभाव की बात करें, यह उचित होगा कि इस प्राचीन विज्ञान के कुछ मौलिक तथ्यों के बारे में पाठकों को परिचित करा दिया जाए। इस अध्याय में वास्तु के धार्मिक व आध्यात्मिक पक्षों, उसके मूल सिद्धांतों और दिशाओं के महत्त्व के बारे में बताने का प्रयास किया गया है। प्र.1. ‘वास्तु’ से आप क्या समझते हैं ? उ. ‘वास्तु’ शब्द संस्कृत ‘वास’ शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है—निवास करना। यह ‘वास्तु’ और ‘वासना’ शब्दों से भी संबंध रखता है। इसका अभिप्राय है—जीवन को इच्छाओं और वास्तविकता के अनुरूप जीना। प्र.2. क्या आप साधारण शब्दों में बता सकते हैं कि वास्तुशास्त्र क्या है ? उ. यह प्रकृति के सिद्धांतों के अनुरूप जीने का प्राचीन विज्ञान है। प्र.3. यह किस हद तक सही है कि वास्तु सिर्फ एक अंधविश्वास है ? उ. वास्तु ठोस सिद्धांतो पर आधारित है, जिनका वैज्ञानिक आधार मौजूद है। प्र.4. वास्तु का मूल सिद्धांत क्या है उ. हमारा शरीर और यह पूरा ब्रह्मांड पाँच तत्त्वों—वायु, जल, अग्नि, पृथ्वी और आकाश से बना है। इन सभी तत्त्वों का सही दिशाओं में संतुलन बनाए रखना ही वास्तु का सिद्धांत है। प्र.5. क्या वास्तु एक धार्मिक पद्धति है, जो सिर्फ हिंदुओं को प्रभावित करता है ? उ. जिस प्रकार सूर्य की ऊर्जा प्रत्येक को लाभ पहुँचाती है उसी प्रकार वास्तु के सिद्धांत सभी मतों के लोगों को प्रभावित करते हैं। प्र.6. क्या इसका धर्म से कोई संबंध है ? उ. धर्म जीने की एक राह है और वह हमारे जीने के तरीके के अनुरूप होता है। इस ब्रह्मांड में बहुत सी शक्तियां मौजूद हैं और वे सकारात्मक व नकारात्मक ऊर्जा छोड़ती हैं। वास्तु नकारात्मक शक्तियों का मुकाबला करने और सकारात्मक शक्तियों को ग्रहण करने में मदद करता है। प्र.7. क्या वास्तु का कोई आध्यात्मकि पक्ष भी है ? उ. बिलकुल। वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप जीने से शांति प्राप्त होती है, जो हमारी आत्मा और जैव विद्युत क्षेत्र को शक्ति देता है। प्र8. वास्तु में कितनी दिशाएँ हैं ? उ. दिशाएँ सिर्फ वास्तु में नहीं हैं बल्कि वे सूर्य से संबद्ध हैं। ये दिशाएँ हैं—पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, दक्षिण-पूर्व, उत्तर-पश्चिम, उत्तर-पूर्व और दक्षिण-पश्चिम। 2. वास्तुशास्त्र की उत्पत्ति सारतत्त्व वास्तुशास्त्र की उत्पत्ति संभवतः वैदिक काल में हुई। महाभारत, रामायण, मत्स्यपुराण आदि महाकाव्यों में वास्तु का वर्णन मिलता है। इंद्रप्रस्थ का निर्माण वास्तु के नियमों के अनुसार किया गया था; लेकिन एक बड़ी गलती के कारण यह कौरवों के विनाश का साक्षी बना। द्वारका का प्राचीन नगर, जो बाद में डूब गया, वास्तु-आधारित था। प्र.9. क्या वेदों में वास्तुशास्त्र का कोई उल्लेख मिलता है ? उ. ‘ऋग्वेद’ में इस बात का उल्लेख है कि किसी घर के निर्माण के पहले ‘वास्तु स्पतिदेव’ की पूजा कराई जानी चाहिए। इसमें वास्तु शांति मंत्र भी दिया गया है। प्र.10 वास्तुशास्त्र से संबंधित प्राचीन संबंधित ग्रंथ कौन से हैं ? उ. संस्कृत में वास्तुशास्त्र के कई ग्रंथ हैं। इनमें दो प्रमुख हैं—विश्वकर्मा प्रकाश’ और ‘समरंगन सूत्रधार’। प्र.11. क्या किसी वास्तु—आधारित प्राचीन नगर का कोई प्रमाण मिला है ? उ. द्वारका का प्राचीन नगर वास्तु के नियमों के अनुरूप बनाया गया था। प्र.12. क्या हमारे धार्मिक ग्रंथों में वास्तु का कोई उल्लेख है ? उ. हाँ, मत्स्यपुराण, रामायण और महाभारत में वास्तु का उल्लेख किया गया है। प्र.13 कौरवों के विनाश में वास्तु का क्या योगदान था ? उ. इंद्रप्रस्थ के बीचोबीच एक कुआँ खुदवाया गया था, जो वास्तु के सिद्धांतों के बिलकुल विपरीत था।