रोग और बीमारी में वाघा करता है राहु
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रोग और बीमारी में वाघा करता है राहु ------
: राहु एक छाया ग्रह है,जिसे चन्द्रमा का उत्तरी ध्रुव भी कहा जाता है,इस छाया ग्रह के कारण अन्य ग्रहों से आने वाली रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती है,और जिस ग्रह की रश्मियां पृथ्वी पर नही आ पाती हैं,उनके अभाव में पृथ्वी पर तरह के उत्पात होने चालू हो जाते है,यह छाया ग्रह चिंता का कारक ग्रह कहा जाता है इस तरह राहु रोग निर्धारण मे वाघ खड़ी करता हैयह अदृश्य ग्रह है इस के कारण ही इसे ‘मूत-पिशाच, गुप्त भेद, गुप्त मन्त्रणा, धोखेबाजी आदि का कारक माना जात्ता है I यह पेट के कीडों का भी कारक है विद्युत तरंगें तथा वायुमण्डल की अन्य तरंगें दृष्टिगोचर नहीं होती तथापि उनका प्रभाव सर्वविदित है अदृश्य तरंगो द्वारा किसी भी व्यथित के शरीर के भीतर विद्यमान रोग का पता चलाना आज आम वात हो गयी है यदि हम सूर्य किरणों की ओर ध्यान दे, तो दो किरणे, जो दृष्टिगोचर नहीं ढोती, उनका प्रभाव काफी समय से सिद्ध किया जा चुका है सूर्या की साक्ष किरणों और आकाशीय ग्रहों का परस्पर क्यद्ध सम्बन्थ है और इस रहस्यमय ज्ञान से कैसे लाभ उठाया जा सकता है
हिंन्दू धर्म के अनुसार सूर्य के रथ में सात घोड़े हैं इन्हीं सात घोडों पर अन्वेषण न्यूटन ने अपनी पुस्तक में किया और नोवल पुरस्कार प्राप्त किया न्यूटन के अनुसार यदि हम सूर्य प्रकाश के स्पैवट्रम की और ध्यान दें, तो दो रंग, अवरक्त तथा पराबैगनी, अदृश्य होने के कारण नहीं देखे जा सकते किन्तु अवरक्त फोटोग्राफी तथा अदृश्य किरणों द्वारा व्यक्ति के शरीर के भीतरी मार्गों का फोटो लेना इन्हीं किरणो द्वारा सम्भव हे सूर्य-किरण पद्धति के अनुसार, जो भी वस्तु जिस रंग की होती है; वह अन्य रंगों को अपने मे सोख लेती है, लेकिन उस रंग क्रो वापस करती है, जिस रंग की वह होती हैं। वह रंग हमारी ओर जाता है और हम उसवस्तु का वही रंग मानते हैं। इस प्रणग्लो का ध्यान रखने हुए,किरणो का अध्ययन करे तो जब व्यक्ति की राहु की कैतु की दशा,अन्तर दशा -प्रयन्तरदशा चल रही हो तो उस समय उनके शरीर में राहु या कैतु की अट्टश्य किरणे पेहले सै ही विद्यमान होती हैं, तथा क्षरश्मि (X-I'ays) की अट्टश्य किरणों की वापिस कर देती हैं I अता क्षरशि्म द्वारा खींचा क्या फोटो शरीर कै अन्दर‘की ठीक वस्तुस्थिति क्रो नहीं बता पाता और हमारी चिकित्सा प्रणाली कहती है कि क्षरिश्म द्वारा प्राप्त फोटो में सभी कुछ ठीक है I लेकिन यदि सभी कुछ सामान्य है, तो फिर… व्यक्ति रुग्ग क्यों? यही स्थिति अन्य परीक्षणों की भी होती है I अत यदि राहु कैतु की अन्तर्दशा प्रत्यन्तर्दशा चल रही हो, तो उस समय सभी परीक्षण सही वस्तुस्थिति नहीं दर्शाते, और व्यक्ति कै रोग का निदान नहीं हो पाता ऐसी अवस्था में
ऐसै समय में न तो मन्त्र ही प्रभाक्शाली होते हैं, और न किसी भी दिव्यात्मा कै द्वारा दिया क्या आशीर्वाद ही काम करता है यदि वह व्यक्ति स्वयं ही दिव्यात्मा हो, तो उसका दिया हुआ शाप भी काम नहीं करता है राहु की दशा में मंत्र जप भी निष्कलं अनुभव होता है । ऐसा क्यो होता है ? ऐसा इसलिए होता हैं, कि जब मन्त्र का जप करते है, तो उस समय मन्त्र ध्वनि से विशेष किरणे बनती हैं, और वे कार्य सिद्धि के लिए
आगे बढती हैं, लेकिन वे किरणे राहु की किरणों से टकराती हैं ओंर
निष्किथ ही जाती हैं राहु की अन्तर्दशा में यह होता रहता है, और उस
समय उपाय का लाभ इसीलिए प्रतीत नहीं होता है वास्तव में मन्त्र तो .
राहु एवं रोग निर्धारण में त्रुटि अपना कार्य कर ही रहा होता है मन्त्र जप न करने क्री स्थिति मे जो और भी हानि होती, उसका सही अनुमान लगाना सम्भव नहीं हो पाता 1968 मेँ गैस्टन और मेनाकर ने एक निबन्ध प्रकाशित किया, जिसमे उन्होंने पीनियल ग्रंथि को फोटोरिसेप्टर (प्रकाश संवेदी केन्द्र) के रूप में सिद्ध किया यह खोज मानवीय मस्तिष्क में पीनियल नामक महत्त्वपूर्ण ग्रंथि के बिषय में थी पीनियल ग्रंथि का प्रकाश से सम्बन्ध हैं बिकान्सिन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एचएस. स्सीडर ने अपने अनुसंधान के द्वारा बताया, कि रोशनी का पीनियल पर प्रभाव पड़ता है पीनियल ग्रंथि से एक हॉर्मोन निकलता है, जो सिरोटोनिन कहलाता हे मन्द और शीतल प्रकाश में खाव की मात्रा अधिक होती हे इसी कारण गीता में कहा गया हैं -या निशा सर्वभूतानामू त्तस्याम जाग्रति संयमी' -अर्थात् जिस समय संसार सो रखा होगा उस रात्रि के समय में योगी पुरुष जागते रहते है और साधना में संलग्न रहते हैं I क्योकि रात्रि मे की गई उपासना मे सिंरोटोनिन का स्राव अथिक होता है, और योगी पुरुष रात्रि क्रो ही उपासना करतेहै तीत्मा प्रकाश में इस रस का स्राव कम हो जाता है . जिस प्रकार माचिस की तीली में अग्नि रहती है, लेकिन रगढ़ने पर ही वह प्राप्त होती हे इस्री प्रकार पीनियल ग्रंथि में दिव्य शक्तियां हैं, लेकिन अंधकार में अभ्यास से ही वे प्राप्त हो सकती हैं ।
परोक्ष दर्शन क्री यह प्रक्रिया एक्स और गामा किरणों की तरह होती है I 'एक्स-किरण जिस प्रकार शरीर की भीतरी संरचना तथा गामा किरण इस्पप्ल जेसी कठोर वस्तु की आन्तरिक बनावट का भी भेद खोल देती हैं, इसी प्रकार पीनियल ग्रथि को रश्मियों के माध्यम से सामने बैठे व्यक्ति के बिषय मे कुछ भी बताया जा सकता है I वृक्षों में भी सिरोटोनिन से मिलतान्तुलता एक स्राव 'मिलटोनिन' पाया जाता हैं यह हार्मोन क्ले, पीपल तथा बरगद जैसे पेडों मे स्वाभाविक मात्रा मे माया जाता है ।इस लिए धार्मिक कार्यो तथा विवाह के समय क्ले के तने और पत्तों का प्राय: प्रयोग किया जाता था पीपल के वृक्ष को मी इसीलिए पवित्र मानते हैं गीता में श्रीकृष्ण ने पैडो मे स्वयं क्रो अश्वत्थ्व(पीफ्त) बताया है I स्मरण रहे, कि पीनियल ग्रंथि आज्ञा चक्र के घास होती है I आज इतना ही वाकी अगले लेख में आचार्य राजेश
आचार्य राजेश