शासक ग्रह (RULING PLANETS) किसी समय जो ग्रह शासन करते हैं, वह ग्रह उस समय के शासक ग्रह कहलाते हैं। यह निम्नानुसार पांच होते हैं… 1-वारेश:सोमवार का चंद्र, मंगलवार का मंगल, बुधवार का बुध, गुरूवार का गुरु, शुक्रवार का शुक्र, शनिवार का शनि, रविवार का रवि (सूर्य)। 2-चन्द्र राशीश:चंद्र जिस राशि में हो, उस राशि का स्वामी। 3-चंद्र नक्षत्रेश:चन्द्र जिस नक्षत्र में हो, उस नक्षत्र का स्वामी। 4-लग्नेश: उस समय उदित हो रही लग्न का स्वामी जैसे: मेष का स्वामी मंगल, वृष का स्वामी शुक्र, मिथुन का स्वामी बुध, कर्क का स्वामी चन्द्र इत्यादि। 5-लग्न नक्षत्रेश: उदित लग्न जिस नक्षत्र में हो, उस नक्षत्र का स्वामी लग्न नक्षत्रेश होता है। उपरोक्त क्रम में शासक ग्रह उत्तरोत्तर बलवान होते हैं। राहू और केतू छाया ग्रह हैं। यह प्रथम तो जिन ग्रहों के साथ बैठे होते हैं, उनका रूप बन जाते हैं, फिर उन ग्रहों का रूप रखते हैं, जो ग्रह उन्हें देखते हैं और अंततः जिस राशि में बैठे होते हैं, उस राशि के स्वामी का रूप धर लेते हैं। विशेष: जिन राशियों में राहू और केतू चल रहे हों, उन राशियों के स्वामी यदि शासक ग्रह हों तो राहु और केतू को भी शामिल कर लेते हैं। जैसे यदि राहु कर्क राशि में चल रहे हों और कर्क का स्वामी चंद्र शासक ग्रहों में हो तो राहु को भी शासक ग्रहों में शामिल कर लेते हैं। यदि सोमवार हो, जिसका स्वामी चंद्र है तो भी राहु को शासक ग्रहों में शामिल कर लेंगे। इसी प्रकार यदि केतू मकर राशि में हो और शासक ग्रहों में शनि हो तो केतू को भी शामिल कर लेते हैं। यदि शासक ग्रह के साथ कोई अन्य ग्रह बैठा हो तो उस ग्रह को भी शासक ग्रहों में शामिल कर लेते हैं। शासक ग्रहों में यदि कोई ग्रह वक्रीय हो तो वह जब तक मार्गी होकर जिस अंश से वक्रीय हुआ हो, उसी अंश पर न आ जाये तब तक फल नहीं देता है। यदि कोई ग्रह वक्रीय ग्रह के नक्षत्र या उप नक्षत्र में हो तो उस ग्रह को शासक ग्रहों से निकाल देते हैं। वह ग्रह फल नहीं देता है। यदि लग्न का उप नक्षत्र शीघ्र गामी ग्रह होता है तो कार्य शीघ्र होता है और यदि मन्द गति वाला होता है तो कार्य विलंब से होता है। वह शासक ग्रह जो ऐसे नक्षत्र में हो, जिसका स्वामी ऐसे भावों में बैठा हो या ऐसे भावों का स्वामी हो, जो कार्य से सम्बंधित नहीं होते हैं, वह फल देने वाले नहीं होते हैं। उन्हें शासक ग्रहों से निकाल देना चाहिए। जातक से कोई एक गिनती 1 से लेकर 249 के बीच से पूंछते हैं। यदि उस नंबर का उप नक्षत्र लग्न या चन्द्र नक्षत्रेश होता है तो वह कार्य होता है। यदि नंबर का उप नक्षत्र लग्नेश या चन्द्र राशीश हो तो उस कार्य के होने में संशय होता है। इस हालत में उससे दूसरा नंबर पूंछते हैं। फिर देखते हैं कि कार्य होगा कि नहीं। यदि नंबर का उप नक्षत्र शासक ग्रहों में नहीं होता है तो वह कार्य नहीं होता है। यदि कोई कार्य 24 घंटों के अन्दर होना होता है तो लग्न को आगे बढ़ाते हुए शासक ग्रहों पर ले जाते हैं। लग्न जिन अंशों पर शासक ग्रहों पर आती है, तब वह कार्य होता है। इसी प्रकार एक माह में जो कार्य होना होता है तो चन्द्र को आगे बढ़ाते हुए शासक ग्रहों पर ले जाते हैं। जिन अंशों पर चन्द्र शासक ग्रहों पर आता है, तब वह कार्य होता है। इसी प्रकार एक वर्ष में होने वाले कार्य में सूर्य को आगे शासक ग्रहों पर बढ़ाते हैं,जिन अंशों पर सूर्य शासक ग्रहों पर आता है, तब वह कार्य होता है और एक साल से ज्यादा की अवधि में होने वाले कार्यों के लिए गुरु को शासक ग्रहों पर आगे चलाते हैं, जब और जिन अंशों पर वह शासक ग्रहों पर आता है, उस समय कार्य होता है।
very nice article by Astro Ravi ji
ये लेख काफ़ी प्रभावी एवं भविष्य को सटीक जानने में सहायक और लाभप्रद हैं