"""कर्क लग्न.....आशीर्वाद या अभिशाप''' ------------//////---------- भ्रमण चक्र का चतुर्थ लग्न कर्क, विप्र वर्ण, स्त्री लिंगी ,जल तत्वीय एक शुभ लग्न है.ज्योतिष शास्त्र में इसे राजयोग लग्न माना गया है.हो भी क्यों नहीं चारों केंद्र स्थानों में किसी न किसी ग्रह की उच्च राशि है.और सबसे बड़ी बात ये की ये मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का जन्म लग्न है....धरती के सर्वाधिक निकट व सर्वाधिक प्रभावित करने वाले चंद्रमा के आधिपत्य का लग्न है ये.... अधिकतर राजनीति में उच्च स्थानों पर सुशोभित नेताओं का भी यही लग्न देखा गया है .....उदाहरण के लिए इंदिरा जी,जवाहर जी ,वर्तमान में सोनिया जी आदि कई नेता हैं. कर्क लग्न का सारा हिसाब किताब लगभग चंद्रमा व भूमि पुत्र मंगल के इर्द गिर्द घूमता है.....कैसी विडंबना है की इस लग्न में राजयोग बनाने वाले मंगल की ही ये नीच राशि मानी गयी है....तमाम सिद्धांतों के बाद भी लग्न में मंगल नीच ही तो माना जाता है ,,,वो भी मित्र होकर,,,,,इससे नजर फेरना संभव नहीं...अपने दैनिक जीवन में राम की ही भांति कर्क लग्न के जातकों को मैंने 90% बार वनवास काटते देखा है....अब आप ये न कहें कि पंडित जी अब तो वन ही नहीं रहे...वनवास का भावार्थ कई रूपों में देखा जा सकता है मित्रों.... यदि कर्क पर राम का प्रभाव मान लिया जाय तो ये भी मानना होगा की बिना हनुमान के कैसे राम.राम के जीवन में हनुमान ही संकटमोचन थे,स्वाभाविक रूप से कर्क में मंगल ही योगकारक होता है.किन्तु हनुमान तो शापित थे,बिना गुरु (जामवंत)के उन्हें अपनी शक्तियों का ध्यान कहाँ??....?ठीक अंदाजा लगाया आपने...जिस लग्न में मंगल नीच,,,देवगुरु वहां उच्च.....लग्न का गुरु उच्च होकर हँसक योग व केंद्र त्रिकोण योग बनाता है... सामान्यतः मंगल की दशा का इन्तजार तो इस लग्न को करना ही होता है.इस बीच जो अपने हनुमान को पहले ही ढून्ढ पाए ,वो पहले सीता(सफलता) को ढूँढ लेते हैं.हनुमान अर्थात हनु+मान,जिसने अपने मान का हनन करना सीखा....हाँ जी,.....आम जनों के मुकाबले इन जातकों में एटिटीयूड कुछ अधिक होता है.....खुद को अधिक श्रेष्ठ मानने का गुण.......साथ ही भावनाओं की अधिकता.....तभी तो मंगल मित्र होकर भी कर्क में नीच है.....भला भावनाओं में भरा हुआ जोश शुभ रिसल्ट कैसे दे सकता है....भावनाओं को तो विवेक चाहिए,,,,,जो सोच समझ कर उचित निर्णय कर सके......तभी तो गुरु उच्च हैं यहाँ पर... योगकारक मंगल यदि उच्च होता है तो दाम्पत्य पर दोष करता है।रुचक योग बनाता है तो पंचम शिक्षा से षडास्टक बनाता है.शिक्षा का किसी अन्य विषय में और जीवन में रोजगार का प्रयास अन्य क्षेत्र में.संघर्ष बढता ही जाता है..इसीलिए तो शापित लग्न मानता हूँ इसे.इस लग्न में कार्य भाव का अधिपति भौम ,आय का शुक्र ,धन का सूर्य व भाग्य का अधिपति देव गुरु होते हैं। यहाँ शुक्र को छोड़कर बाकी तीनो ग्रह आपस में मित्र हैं तो ऐसे में जो भी ग्रह अधिक शक्तिशाली हो ,उससे सम्बंधित कार्य व्यवसाय उचित फल प्रदान करता है। मंगल का प्रभाव दशम भाव पर जातक को पावर देता है,, ,इसी समीकरण में यदि सूर्य व गुरु भी दशम को बल दे रहे हों तो जातक सरकारी क्षेत्र में उच्च पदस्थ हो सकता है....शनि या राहु दशम भाव या दशमेश को प्रभावित कर दें तो नौकरी आदि का स्तर कुछ हल्का हो जाता है दक्षिण की यात्राएँ यहाँ सहायक होती हैं.....दक्षिण बार बार संकेत करता है.जो समझ गया वो आगे बढ़ता जाता है.....राम को दक्षिण की यात्राओं ने ही राम बनाया,,अन्यथा वे मात्र अवध के नायक थे.....जरा से योग अन्य भी सहायक हों तो विदेश यात्राओं के सर्वाधिक योग इसी लग्न में बनते देखे गए हैं..... धन की बात करें तो धनेश उच्च होगा तो अपने भाग्य भाव में होगा,आयेश उच्च होगा तो अपने से आय भाव में होगा..यानि दोनों ओर से मजबूत.तभी तो राजाओं का लग्न कहा गया है......बुध द्वादश व पराक्रम भाव का अधिपति है.....सूत्र कहता है की ऐसे में बुध जरा भी मजबूत हो तो जातक के पराक्रम का लाभ बाहरी लोग लेते हैं.. वहीँ भाग्येश उच्च होगा तो अपनी मूलत्रिकोण राशि से अष्टम में होगा..स्वाभाविक रूप से अपना भला न सोच कर दूसरों के हित में अपना सर्वस्व होम करना.. इन्ही गुणों ने राम को पूज्य बनाया,किन्तु आज के परिवेश में यही गुण दुःख का कारण बनते हैं.....सोच के देखें....बड़ा रोचक लग्न है व मुझे स्वयं विश्लेषण हेतु कर्क सर्वाधिक प्रिय लग्न है....एक बात और बताऊँ?????...मानेंगे आप....? खूब आजमाया है मैंने.....कहूँ?....90% मामलों में जातकों के वैवाहिक जीवन में कहीं न कहीं कोई टीस अवश्य रहती है,,, 10% को अपवाद स्वरुप छोड़ देता हूँ किन्तु पाठक खुद सोचें की 90%आंकड़ा बहुत अधिक होता है....शनि यदि किसी भी प्रकार से दशम भाव को प्रभावित कर रहे हों तो सामान्यतः स्थिति संसार की दृष्टि में तो आदर्श रहती है किन्तु भीतर ही भीतर जातक दुखी रहता है...स्त्री स्वभाव की थोड़ा तेज हो सकती है किन्तु जातक उसके भाग्य से बहुत कुछ प्राप्त करता है इसमें कोई संशय नही... शनि के साथ मंगल अथवा गुरु की युति इस मामले में थोड़ा राहत देती है......अकेले देव गुरु यदि सप्तम में हो जाएँ तो दाम्पत्य भाव बिखरने लगता है......शनि के साथ बुध की युति शारीरिक दुर्बलता उत्पन्न करती है और अगर ये युति अष्टम भाव में हो तो हालात अधिक चिंता जनक होते हैं....ये लग्न वैसे भी अल्प संतान का कारक है अतः ऐसे में कुंडली मिलान के समय संतान भाव पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है.... स्त्री की कुंडली में यदि शनि पंचम भाव में हो तो उसका जीवनसाथी अध्यात्म व दर्शन की और अधिक ध्यान देता है जिस कारण परिवार के लिए समय काम देता है. अकेला शनि अष्टम भाव में पति को दीर्घायु किन्तु रोगी शरीर का स्वामी कर सकता है। सप्तम भाव में अकेला गुरु दाम्पत्य भाव के लिए उलझने बढ़ाता है.... कुछ सामान्य से उपाय इस लग्न में काफी असरदार सिद्ध होते हैं.भविष्य में उन पर भी चर्चा करेंगे.लेख के प्रति आपकी अमूल्य राय की प्रतीक्षा में .....