बार बार स्वास्थ में उतार चढाव के पीछे होते हैं ये ग्रहयोग

Share

Deepika Maheshwari 07th Feb 2020

ज्योतिष शास्त्र हमारे ऋषियों द्वारा प्रदान की गयी ऐसी गूढ़ विद्या है जो जीवन के प्रत्येक पक्ष में हमारा मार्गदर्शन करती है, किसी भी जातक के जन्म के समय उस समय ब्रह्माण्ड में फैली प्राकृतिक ऊर्जायें जातक को पूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं किसी भी बालक के जन्म समय में ग्रहों की स्थिति से सौरमंडल में जिस प्रकार की ऊर्जाएं स्पंदित हो रही होती हैं उन्ही ऊर्जाओं के अनूरूप बालक के जीवन का स्तर तय होजाता है स्वस्थ शरीर ही जीवन निर्वाह के लिए सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है स्वस्थ शरीर के द्वारा ही व्यक्ति जीवन में अपने कर्तव्यों की पालन और सुखों का उपभोग कर पाता है और स्वास्थ की स्थिति कमजोर होने पर विभिन्न संघर्ष और रुकावटों से जीवन रूक जाता है ………… “हमारी जन्मकुंडली के बारह भावो में से पहला भाव अर्थात लग्न भाव ही हमारे स्वास्थ और शरीर का प्रतिनिधित्व करता है अर्थात कुंडली में "लग्न भाव" और "लग्नेश" (लग्न का स्वामी ग्रह) की स्थिति ही व्यक्ति के स्वास्थ को निश्चित करती है इसके अतिरिक्त कुंडली का "छटा भाव" रोग या बीमारी का भाव माना गया है और "आठवा भाव" मृत्यु और गम्भीर कष्टो का भाव है अतः व्यक्ति के स्वास्थ की स्थिति के आंकलन के लिए लग्न, लग्नेश, छटे और आठवे भाव का विश्लेषण करना होता है जिन लोगो की कुंडली में लग्न और लग्नेश पीड़ित या कमजोर स्थिति में होते हैं उनका स्वास्थ अधिकतर उतार-चढ़ाव में बना रहता है और ऐसे में व्यक्ति की इम्यून पॉवर (रोगप्रतिरोधक क्षमता) भी कम होती है कुंडली में लग्न और लग्नेश कमजोर या पीड़ित होने पर व्यक्ति जल्दी ही बिमारियों की चपेट में आ जाता है इसके अतिरिक्त चन्द्रमाँ का भी पीड़ित होना इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है   यदि कुंडली के छटे और आठवे भाव में कोई पाप योग बन रहा हो तो इससे भी व्यक्ति को स्वास्थ समस्याओं का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से किसी व्यक्ति की कुंडली में जो ग्रह छटे या आठवे भाव में बैठे होते हैं और जो ग्रह कुंडली में बहुत पीड़ित स्थिति में होते हैं उन ग्रहों से सम्बंधित स्वास्थ समस्याएं अधिक परेशान करती हैं” .......... 1. कुंडली में यदि लग्नेश पाप भाव विशेषकर छटे या आठवे भाव में हो तो व्यक्ति के शरिर की इम्युनिटी कमजोर होती है व्यक्ति स्वास्थ की और से परेशान रहता है। 2. लग्नेश यदि अपनी नीच राशि में हो तो भी व्यक्ति का स्वास्थ पक्ष कमजोर  होता है। 3. कुंडली में लग्नेश का षष्टेश या अष्टमेश के साथ योग भी स्वास्थ को उतार चढाव में रखता है। 4. यदि षष्टेश या अष्टमेश लग्न में हो तो भी व्यक्ति का स्वास्थ समस्याग्रस्त रहता है। 5. चन्द्रमाँ का कुंडली के छटे और आठवे भाव में बैठना इम्युनिटी को कमजोर करता है जिससे व्यक्ति जल्दी ही बिमारियों का शिकार हो जाता है। 6. राहु का आठवे भाव में बैठना भी स्वास्थ में अस्थिरता देता है राहु अष्टम होने से व्यक्ति को जल्दी इंफेक्शन होने की समस्या होती है जिससे जल्दी जल्दी बीमार पड़ने की स्थिति बनी रहती है। 7. यदि लग्न में कोई पाप ग्रह नीच राशि में हो या लग्न में कोई पाप योग बन रहा हो तो भी व्यक्ति का स्वास्थ कमजोर रहता है। 8. कुंडली के आठवे और छटे भाव में अधिक ग्रहों का होना भी स्वास्थ पक्ष के लिए अच्छा नहीं होता। उपाय - यदि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो या अधिकतर स्वास्थ समस्याएं रहती हो तो अपनी कुंडली के लग्नेश को मजबूत करें लग्न, षष्ट और अष्टम में बनने वाले पाप योगो के लिए दान करें, लग्नेश का रत्न धारण करें, लग्नेश ग्रह का मन्त्र करें, सामर्थ्यानुसार महामृत्युंजय मन्त्र का नित्य जाप करें, किसी भी प्रकार से सूर्य उपासना अवश्य करें।  यदि चन्द्रमाँ छटे / आठवे भाव में हो तो चन्द्रमाँ का मंत्र भी अवश्य करें –


Like (73)

Comments

Post

Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top