ज्योतिष शास्त्र हमारे ऋषियों द्वारा प्रदान की गयी ऐसी गूढ़ विद्या है जो जीवन के प्रत्येक पक्ष में हमारा मार्गदर्शन करती है, किसी भी जातक के जन्म के समय उस समय ब्रह्माण्ड में फैली प्राकृतिक ऊर्जायें जातक को पूर्ण रूप से प्रभावित करती हैं किसी भी बालक के जन्म समय में ग्रहों की स्थिति से सौरमंडल में जिस प्रकार की ऊर्जाएं स्पंदित हो रही होती हैं उन्ही ऊर्जाओं के अनूरूप बालक के जीवन का स्तर तय होजाता है स्वस्थ शरीर ही जीवन निर्वाह के लिए सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है स्वस्थ शरीर के द्वारा ही व्यक्ति जीवन में अपने कर्तव्यों की पालन और सुखों का उपभोग कर पाता है और स्वास्थ की स्थिति कमजोर होने पर विभिन्न संघर्ष और रुकावटों से जीवन रूक जाता है ………… “हमारी जन्मकुंडली के बारह भावो में से पहला भाव अर्थात लग्न भाव ही हमारे स्वास्थ और शरीर का प्रतिनिधित्व करता है अर्थात कुंडली में "लग्न भाव" और "लग्नेश" (लग्न का स्वामी ग्रह) की स्थिति ही व्यक्ति के स्वास्थ को निश्चित करती है इसके अतिरिक्त कुंडली का "छटा भाव" रोग या बीमारी का भाव माना गया है और "आठवा भाव" मृत्यु और गम्भीर कष्टो का भाव है अतः व्यक्ति के स्वास्थ की स्थिति के आंकलन के लिए लग्न, लग्नेश, छटे और आठवे भाव का विश्लेषण करना होता है जिन लोगो की कुंडली में लग्न और लग्नेश पीड़ित या कमजोर स्थिति में होते हैं उनका स्वास्थ अधिकतर उतार-चढ़ाव में बना रहता है और ऐसे में व्यक्ति की इम्यून पॉवर (रोगप्रतिरोधक क्षमता) भी कम होती है कुंडली में लग्न और लग्नेश कमजोर या पीड़ित होने पर व्यक्ति जल्दी ही बिमारियों की चपेट में आ जाता है इसके अतिरिक्त चन्द्रमाँ का भी पीड़ित होना इम्यून सिस्टम को कमजोर करता है यदि कुंडली के छटे और आठवे भाव में कोई पाप योग बन रहा हो तो इससे भी व्यक्ति को स्वास्थ समस्याओं का सामना करना पड़ता है, विशेष रूप से किसी व्यक्ति की कुंडली में जो ग्रह छटे या आठवे भाव में बैठे होते हैं और जो ग्रह कुंडली में बहुत पीड़ित स्थिति में होते हैं उन ग्रहों से सम्बंधित स्वास्थ समस्याएं अधिक परेशान करती हैं” .......... 1. कुंडली में यदि लग्नेश पाप भाव विशेषकर छटे या आठवे भाव में हो तो व्यक्ति के शरिर की इम्युनिटी कमजोर होती है व्यक्ति स्वास्थ की और से परेशान रहता है। 2. लग्नेश यदि अपनी नीच राशि में हो तो भी व्यक्ति का स्वास्थ पक्ष कमजोर होता है। 3. कुंडली में लग्नेश का षष्टेश या अष्टमेश के साथ योग भी स्वास्थ को उतार चढाव में रखता है। 4. यदि षष्टेश या अष्टमेश लग्न में हो तो भी व्यक्ति का स्वास्थ समस्याग्रस्त रहता है। 5. चन्द्रमाँ का कुंडली के छटे और आठवे भाव में बैठना इम्युनिटी को कमजोर करता है जिससे व्यक्ति जल्दी ही बिमारियों का शिकार हो जाता है। 6. राहु का आठवे भाव में बैठना भी स्वास्थ में अस्थिरता देता है राहु अष्टम होने से व्यक्ति को जल्दी इंफेक्शन होने की समस्या होती है जिससे जल्दी जल्दी बीमार पड़ने की स्थिति बनी रहती है। 7. यदि लग्न में कोई पाप ग्रह नीच राशि में हो या लग्न में कोई पाप योग बन रहा हो तो भी व्यक्ति का स्वास्थ कमजोर रहता है। 8. कुंडली के आठवे और छटे भाव में अधिक ग्रहों का होना भी स्वास्थ पक्ष के लिए अच्छा नहीं होता। उपाय - यदि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो या अधिकतर स्वास्थ समस्याएं रहती हो तो अपनी कुंडली के लग्नेश को मजबूत करें लग्न, षष्ट और अष्टम में बनने वाले पाप योगो के लिए दान करें, लग्नेश का रत्न धारण करें, लग्नेश ग्रह का मन्त्र करें, सामर्थ्यानुसार महामृत्युंजय मन्त्र का नित्य जाप करें, किसी भी प्रकार से सूर्य उपासना अवश्य करें। यदि चन्द्रमाँ छटे / आठवे भाव में हो तो चन्द्रमाँ का मंत्र भी अवश्य करें –