हमारा सम्पूर्ण जीवन ग्रह नक्षत्रों की स्थिति के ऊपर निर्भर है।जन्मकुंडली कुछ ग्रह शुभ स्थिति में होते है तो कुछ अशुभ स्थिति में बैठे हुये भी होते है शुभ स्थिति वाले ग्रह शुभ फल देंगे,अशुभ स्थिति वाले ग्रह अपनी दशाओ आदि में अशुभ फल देँगे।क्योंकि जातक का सम्पूर्ण जीवन ग्रह नक्षत्रों ओर निर्भर है और ग्रह नक्षत्र, ग्रहो की दशाओ पर निर्भर है।तो जातक के जीवन मे भूत, वर्तमान और भविष्य में ग्रह दशाएं चलेगी उन पर ही सब निर्भर करता है।अगर वर्तमान और भविष्य में चलने वाली या आने वाली ग्रह दशाएं शुभ नही है, जैसे कि अस्त,नीच अशुभ,पीड़ित आदि की ग्रह दशाएं है या भविष्य में आएगी तो निश्चित ही जातक का जीवन कठिनाई और परेशानी से बीतेगा, ऐसी ग्रह दशाओ के पहले से ही उपाय करके इनको शुभ बना लेना ही एक मात्र रास्ता होता है इसके विपरीत वर्तमान और भविष्य में आने वाली ग्रह दशाएं अच्छी चल रही है त अच्छी ग्रह दशाएं भविष्य में आएगी तो यह निश्चित ही सुखद, सफलता देने वाला, अच्छा जीवन देंगी।अशुभ ग्रह दशाओ में कुंडली के शुभ योग भी साथ छोड़ देते है और शुभ ग्रह दशा होने पर या भविष्य में आये तो अशुभ योग भी कुछ नही बिगड़ सकते।इसे ही समय बोलते है आपकी महादशाएं-अन्तरदशाये इसमे भी महादशाएं भविष्य में आने वाली अच्छी है या अच्छी चल रही है तब लगभग सब बढ़िया रहेगा।अब कुछ उदाहरण अनुसार समझाता हूँ:- #उदाहरण1:- मेष लग्न में लग्नेश मंगल होता जो कि लग्नेश होने से शुभ भी है अब ऐसी में मंगल माना 10वे भाव मे हो को कि यहाँ मंगल उच्च और दिग्बली होकर परम् शुभ होगा तो ऐसी मंगल की दशा शुभ फल देगी मतलब मंगल की दशा का समय काल अच्छा रहेगा अब मंगल के बाद राहु की महादशा आती है अब माना राहु 6वे भाव मे हो कन्या राशि का या 11वे भाव मे हो कुम्भ राशि का और कोई अशुभ योग बनाता हो तब मंगल के बाद भविष्य में आने वाली राहु महादशा भी अच्छी जाएगी समय अच्छा रहेगा।अब राहु के बाद गुरु की महादशा आती है जो कि इस कुंडली मे भाग्य का स्वामी होता है माना गुरु अब 5वे भाव मे सिंह राशि का हो लेकिन पूरी तरह अस्त हो गया हो या बहुत ही ज्यादा पाप ग्रहों से पीड़ित हो तब राहु के बाद गुरु की महादशा का समय आते ही जातक की स्थिति खराब होने लगेगी जीवन मे दिक्कते, तनाव, धन आदि कुंडली के अनुसार दिक्कते आने लगेगी मतलब समय खराब होने लगेगा इससे पहले बढ़िया था क्यों? क्योंकि इससे पहले मंगल राहु की महादशा थी और मंगल राहु कुंडली मे बढ़िया थे तो इस तरह से ग्रह दशाओ पर वर्तमान और भविष्य में क्या स्थिति रहने वाली है पर निर्भर करता है ऐसी स्थिति में उपाय ही रास्ता होता है। #उदाहरण2:- अब किसी जातक की वृष लग्न की कुंडली हो तो माना यहाँ लगभग ग्रहो की स्थिति कुंडली मे ठीक है लेकिन केतु की महादशा हो और केतु अशुभ हो माना केतु चन्द्र और सूर्य के साथ 11वे भाव मे बैठा है तो ऐसा केतु सूर्य चन्द्र के साथ ग्रहण योग में होने से केतु की दशा हानिकारक रहेगी जब तक केतु दशा चलेगी लेकिन केतु के बाद शुक्र की महादशा आती है तो माना शुक्र दसवे भाव मे शनि के साथ कुम्भ राशि मे बैठा हो(वृष लग्न में शुक्र लग्नेश और शनि नवे-दसवे भाव का स्वामी योगकारक होकर शुभ होता है तो ऐसी स्थिति में शुक्र शनि का कुम्भ राशि दसवे भाव मे होना परम् राजयोग देने वाला होगा तो ऐसी स्थिति में केतु के बाद जैसे ही शुक्र की महादशा शुरू होगी जातक के दिन बदल जयेंगे और हर तरह से कामयाबी मिलेगी क्योंकि शुक्र दसवे भाव मे शनि के साथ राजयोग और अच्छी स्थिति में है तो यहाँ निर्भर करा सब कुछ ग्रह दशाओ ओर।। #उदाहरण3:- कुम्भ लग्न की कुंडली के 5वे भाव मे दशमेश मंगल और चतुर्थ-नवम का स्वामी शुक्र बैठा है साथ ही ग्यारहवे भाव का स्वामी गुरु ग्यारहवे भाव मे ही है तो यह स्थिति बहुत शुभ है क्योंकि 5वे भाव मे शुक्र(योगकारक भाग्य का स्वामी) मंगल(रोजगार का स्वामी)राजयोग कारक है साथ ही दूसरे ₹₹-ग्यारहवे भाव के स्वामी धनकारक गुरु से दृष्टि संबंध है तो ऐसी स्थिति में यदि गुरु मंगल या शुक्र की महादशा चलती है तो बहुत अच्छी स्थिति रहेगी आर्थिक रूप से, रोजगार के रूप से,भाग्य का साथ सब कुछ अच्छा समय रहेगा लेकिन अब माना किसी कुम्भ लग्न में सूर्य शनि की युति चौथे भाव मे बनती और शनि अस्त हो जाए तो यह स्थिति में शनि की दशा भविष्य में आ जाये तो ऐसा अस्त शनि सब खत्म कर देगा अच्छा समय और हर तरह से स्थिति जातक की पहले से खराब होगी लेकिन शनि अस्त न होता और सूर्य के साथ भी न होता अकेला चौथे भाव मे होता वृष राशि का और पीड़ित या अशुभ योग में न हो तब ऐसे शनि की महादशा भविष्य में भी आएगी तो समय अच्छा रहेगा क्योंकि शनि लग्नेश होकर चौथे भाव मे शुभ और बली होकर बैठा है।। तो जातक का जीवन वर्तमान, भूत, भविष्य ग्रहो की दशाओ(समय)पर,ग्रह दशाएं बढ़िया आती जाए तो समय अच्छा और जहाँ ग्रह दशा खराब वही समय बुरे दिन भी दिखायेगा तो ऐसी ग्रह दशाओ को तो उपायों से अनुकूल किया जा सकता है।वर्तमान और भविष्य अच्छा रहे, समय का साथ अच्छा मिले तो यहाँ ग्रहो की दशाओ को जो चल रही है, और आने वाली है उनको अनुकूल करना, अगर ग्रह दशाएं अच्छी चल रही है और भविष्य में भी अच्छा समय देने वाली ग्रह दशाएं आ रही है तो फिर जातक सब बढ़िया ही लगभग रहता है।
nice article