सप्तांश फल विचार :*
संतान सुख ज्ञानार्थ सप्तांश कुंडली का परिशीलन नितांत आवश्यक है।
➢ यदि सप्तांश लग्न विषम हो और उसमे शुभ ग्रह स्थित हो या शुभ ग्रह की दृष्टि हो, तो पुत्र सुख होता है। यदि सप्तांश लग्न सम हो, तो कन्या होती है। यदि सप्तांश ल ग्न पाप ग्रह युत या दृष्ट हो, तो संतान सुख नही होता है।
➢ सप्तांश लग्न का स्वामी जन्म कुण्डली मे जिस राशि मे हो उस राशि अंक की संख्या के समान संतान (पुत्र, पुत्री) होती है।
➢ सप्तमांश लग्न मे पंचम स्थान शुभ ग्रह से दृष्ट या युक्त हो, तो पुत्र सुख होता है अन्यथा अभाव होता है।
➢ सप्तांश लग्नेश पुरुष ग्रह सू, मं, गु, हो, तो विशेषतया पुत्र सुख होता है। यदि सप्तांश लग्नेश स्त्री ग्रह चं, शु हो, तो कन्या का सुख होता है।
➢ सप्तांश का स्वामी (सप्तांशेश) अस्त हो और जन्म कुंडली मे अशुभ युक्त होकर लग्न मे हो, तो गर्भ का अभाव होता है। सप्तांशेश नीच का हो, तो संतान दुर्बल, अल्पायु, कुस्वभावी होती है। सप्तांशेश शत्रुगृही हो, तो सुपुत्रो की हानि होती रहे और कुपुत्रो का लाभ होता रहे।
*ग्रहफल विचार :*
➧ यदि सप्तांश का स्वामी सूर्य के साथ हो, तो संतान नेत्र रोगी होती है। यदि सप्तांशेश गुरु या शुक्र के साथ हो, तो पुत्र भाग्यवान, दीर्घायु होता है।
➧ यदि सप्तांशेश बुध हो, तो कन्याए अधिक होती है। यदि सप्तांशेश पाप ग्रह हो या जन्म कुण्डली मे पापग्रह की राशि मे हो, तो जातक की संतान नीचकर्मी, अल्पायु होती है।
➧ यदि सप्तांशेश (सप्तांश का स्वामी) जन्म कुण्डली मे ग्यारहवे या बारहवे हो, तो जातक को मस्तिष्क, कमर, पैर मे वायु जनित पीड़ा होती है।
➧ यदि उपरोक्त स्थिति मे पापग्रह का योग हो, तो जातक दुष्ट हृदय वाला होता है। शुभग्रह हो, तो जातक सुविचारी, सहृदयी होता है।
➧ यदि सप्तांशेश जन्म कुण्डली मे शुभग्रह से युत या दृष्ट, शुभग्रह की राशि मे या उच्चस्थ या मित्रगृही हो, तो संतान सन्मार्ग पर चलने वाली, रूपगुण युक्त, सुशील होती है।
➧ यदि सप्तांशेश जन्मांग मे सप्तांश लग्न से सातवे या आठवे पापयुक्त या पापदृष्ट या अस्त हो, तो जातक की संतति अल्पायु और दुर्बल होती है।
➧ यदि सप्तांशेश पापग्रह हो और जन्मांग मे भी वह पापग्रह हो, तो जातक को संतान की कुछ-कुछ चिंता बनी रहती है। संतान सुख नही रहता है।
*सप्तांश लग्नेश फल :*
• सूर्य के सप्तांश मे जातक शूर, शक्तिशाली, सभ्य, उत्तम, व्यवहारी, प्रसिद्ध होता है।
• चंद्र के सप्तांश मे जातक पवित्र, धार्मिक, विनयशील, भोगी, रतिप्रिय, बुद्धिमान होता है।
• मंगल के सप्तांश मे जातक असहनशील, स्वाभिमानी, साहसी, शक्तिशाली होता है।
• बुध के सप्तांश मे जातक कवि, कोमल, शिल्प कला का ज्ञाता, विद्वान, बोलने मे निपुण होता है।
• गुरु के सप्तांश मे जातक पण्डित, स्थिर, साहसी, विद्वान, बुद्धिमान, ज्ञानियो मे श्रेष्ट होता है।
• शुक्र के सप्तांश मे जातक इन्द्रिय तुष्टी, कामी, विलासी, रति-हास्य-गायन-नृत्य मे रत रहता है।
• शनि के सप्तांश मे जातक मूर्ख, आलसी, दुष्ट, भ्रष्ट, टेडी मति वाला, विकर्मी, पापी होता है।
*इन ग्रहो के उच्च अथवा नीच, स्वक्षेत्री, मित्रक्षेत्री होने पर उस अनुसार फल होते है।*
*अन्यत्र सप्तमांश विचार :-* सप्तमांश से केवल संतान का विचार करना चाहिये।
● सप्तमांश लग्न का पुरुष ग्रह हो, तो जातक को पुत्र उत्पन्न होते है। सप्तमांश लग्न का स्वामी स्त्री ग्रह हो, तो कन्याए अधिक उत्पन्न होती है। यदि सप्तमांश लग्न का स्वामी पापग्रह हो, पापराशि मे हो, पापग्रह के साथ हो, तो संतान नीच कर्म करने वाली होती है।
● सप्तांश लग्न का स्वामी स्वराशि शुभग्रह से युत या दृष्ट हो या शुभग्रह की राशि में स्थित हो, तो संतान अच्छे आचरण करने वाली, सुन्दर, सुशील गुणी होती है। सप्तमांश लग्न से छठे, आठवे स्थान मे पापग्रह हो या पापग्रह से युत या दृष्ट हो, तो जातक संतानहीन होता है।
*मानसागरी अनुसार फलादेश*
➢ सप्तांश का स्वामी चन्द्रमा से युत या दृष्ट या शुभग्रह से दृष्ट हो, तो जातक के सहोदर भाई बहन होते है। जातक उग्र कांति, यश, मित्र, प्रगल्भता से युत होता है। सप्तांश मे सूर्य को छोड़कर जितने ग्रह नीच मे स्थित हो और जो बली हो उस अनुसार भ्राता की चिंता हो। सप्तमांश में ग्रह उच्च का हो या शुभग्रह की राशि मे हो, तो जातक राज्य पूज्य, कार्य में सफल, धन संपन्न होता है।
➢ सप्तमांश लग्न के अंतिम अंश जो ग्रह हो और वह यदि उच्च या स्वराशि का हो, तो जातक धोडो की सवारी मे कुशल, शुर व बंधुओ से त्यक्त होता है। सप्तमांश लग्न का स्वामी यदि उच्च का हो, तो जातक महाधनी और यदि नीच का हो, तो दरिद्री होता है।
➢ सप्तमांश के तृतीय स्थान मे सूर्य, मंगल, गुरु हो, तो जातक सत्यवादिनी वरदायिनी लक्ष्मी भोगने वाला तथा पिता की मृत्यु पश्चात पुत्र का जन्म होता है। सप्तांश के तृतीय स्थान में चंद्र, बुध, शुक्र हो, तो पिता की मृत्यु पश्चात कन्या का जन्म होता है।
*पराशर अनुसार सप्तमांश फलादेश*
महर्षि पराशर ने सप्तमांश के अधिपतियो का नामकरण कर संतान फलादेश मे सरलता और सुगमता उत्पन्न की है। सप्तांश मे विषम राशि के भाग अनुसार क्रमशः 1 क्षार, 2 क्षीर, 3 दधि, 4 आज्य, 5 इक्षु, 6 मद्य, 7 जल ये स्वामी होते है। सम राशियो मे यही क्रम उल्टा जल, मद्य, इक्षु, आज्य, दधि, क्षीर, क्षार हो जाता है।
• *क्षार* - विषम राशि मे यह प्रथम और सम राशि में अंतिम है। जातक को संतान सुख कम रहता है। उसकी संतान क्रोधी, कटुभाषी, व्यंग करने वाली, चिंता बढ़ने वाली, असफल, असहाय होती है।
• *क्षीर* - विषम राशि मे दूसरा और सम राशि मे छठा है। जातक की संतान सुशील, सुन्दर, आज्ञाकारी, गुणवान होती है। जातक को संतान सुख रहता है।
• *दधि* - विषम राशि मे तीसरा और सम राशि मे पांचवा है। जातक की संतान विनम्र, स्थिर मति वाली, कोमल स्वभाव, पूर्ण अधिकार की इच्छुक, परिस्थिति अनुकूल आचरण करने वाली होती है।
• *आज्य या आजम* = तरल घी। विषम राशि और सम राशि मे चौथा है। जातक की संतान धार्मिक विचार और व्यवहार वाली, पवित्र मन, आदर सत्कार करने वाली, त्याग और बलदानी होती है।
• *इक्षु* - विषम राशि मे पांचवा और सम राशि मे तीसरा है। जातक की संतान मधुर भाषी, सौम्य व प्रिय स्वभाव वाली, सरल हृदयी, सुख-सुविधा देने वाली होती है।
• *मद्य* - विषम राशि मे छठा और सम राशि मे पांचवा है। जातक संतान खुश मिजाज, संतान से सुखी, जिन्दा दिल, सुख की वृद्धि करने वाली होती है।
• *जल* - विषम राशि मे सातवा और सम राशि मे पहला है। जातक की संतान सुख सुविधा धन वैभव व सम्मान की वृद्धि कर सुख देने वाली होती है।
रविन्द्र पारीक