घनिष्ठा चरण फल,शतभिषा नक्षत्र चरण फल ,पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र चरण फल,उत्तरा भाद्रपद चरण फल,रेवती

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Astro Rakesh Periwal 22nd Jan 2019

घनिष्ठा चरण फल

 

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे  शनि, मंगल, सूर्य का प्रभाव है। मकर 293।20 से 296।40 अंश।  नवमांश सिंह।  यह अभिलाषा, आक्रामकता, सिद्धि का द्योतक है। जातक गंभीर नेत्र, सुन्दर नाक, रूखे नख, व छिदे  बाल, बड़ा शरीर, बड़ा गोल ललाट, निश्छल दृष्टि, शक्तिशाली होता है।

यह चरण सबसे आक्रामक पाद है। इस पाद में जातक महा विद्वान, प्रायोगिक, व्यापारी, धनाढ्य, अस्वस्थ्य होता है।

 

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध  है। इसमे  शनि, मंगल, बुध का प्रभाव है। मकर 296।40 से 300।00 अंश।  नवमांश कन्या।  यह संचार, शक्ति, ग्रहण या प्रचलन या अनुकूलन, खेल युक्ति का द्योतक है। जातक बड़े नेत्र, गोल चहेरा, सुबुद्धि से ग्रहण करने वाला, गीत व वाद्य मे रत, सात्विक वृत्ति, साहसी, सज्जन होता है।

इस पाद मे जातक तेज बुद्धि, चालक, निर्भीक होकर हर प्रतियोगिता मे भाग लेने वाला, आत्म निर्भर, अपने कार्य में लवलीन, उच्चपद पर होता है।

 

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र  है। इसमे शनि,  मंगल, शुक्र का प्रभाव है। कुम्भ 300।00 से 303।20 अंश। नवमांश तुला। यह अवगत या जानना, आशावाद, समजातिक्ता, वैवाहिक सुख का द्योतक है। जातक श्याम वर्ण, कोमल पतले अंग, शास्त्र एवं काव्य बुद्धि वाला, महिलाओ मे लोक प्रिय, भावुक, कोमल होता है।

इस पाद मे जातक कामुक, रोमांटिक, स्वयं का उद्योग, तेज बुद्धि, शत्रुहंता, संपत्ति के देन-लेन व किराये से धनी, सुखी दाम्पत्य जीवन, अनेक व्यवसायिक यात्राएं करता है तथा इनसे धनी होता है।

 

चतुर्थ चरण -  इसका स्वामी मंगल है। इसमे  शनि, मंगल, मंगल का प्रभाव है। कुम्भ 303।20 से 306।40 अंश।  नवमांश तुला।  यह सृजन, पराक्रम, खिलाडी  द्योतक है। जातक कांपती हुई दृष्टि (त्वंण दृष्टि} कठोर नख, निडर, साधु स्वभाव, आश्रयदाता, मुर्ख होता है।

इस पाद में जातक अत्यंत आक्रामक, अपने व्वयसाय की तारीफ करने वाला, व्यवसाय के प्रारम्भ मे बाधा  किन्तु अंत मे सफल, कठिन परिस्थियों से लड़ने वाला, साधारण दाम्पत्य जीवन होता   है।

 

आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है लेकिन अंतर बहुत है।

यवनाचार्य :  घनिष्ठा प्रथम चरण मे दीर्घायु, द्वितीय चरण मे पीड़ित, तृतीय चरण मे डरपोक, चतुर्थ चरण मे अच्छी पत्नी वाला होता है।

मानसागराचार्य :  पहले पाद मे पृथ्वीपति, दूसरे पाद  मे उभयकुल तारक व धनी, तीसरे पाद मे मध्यम, चौथे पाद मे श्रीमान होता है।

 

शतभिषा नक्षत्र चरण फल 

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है।  इसमे शनि, राहु, गुरु  का प्रभाव है। कुम्भ 306।40 से 310। 00 अंश। नवमांश धनु। यह भाग्य, आशावाद, मानवजाति प्रेम या विश्वप्रेम, विशेष कारण का द्योतक है। जातक मिला हुआ शरीर, सुन्दरियो को प्रिय, वैदूर्य के सामान कान्ति वाला, शास्त्रज्ञ व शास्त्र का प्रयोग करने वाला होता है।इस पाद मे जातक  विद्वान, आध्यात्मिक, परम्परागत मापदंड मे विश्वासी होता है। यह सकारात्मक ऊर्जावान तीर्थ स्थलो और शिवालयो की बार-बार यात्रा करने वाला, धर्म शास्त्रो का ज्ञाता, परिपक्व होता है। 

 

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे शनि, राहु, शनि का प्रभाव है। कुम्भ 310।00 से 313।20 अंश। नवमांश मकर।  यह आयोजन, प्रयोगिक, इच्छाओ का द्योतक है। जातक गौर वर्ण, बड़ा मुख, स्त्रियो मे अनुरक्त, धीर, वीर, गंभीर, शत्रुहंता, भोग विलास मे रत होता है।

इस पाद मे जातक व्यावसायिक विकास मे ध्यान रखने वाला, कर्मठ और अपने विकास के लिए महत्वाकांक्षी, परिवार को अधिक समय नही देने वाला अच्छा अभिभावक होता है। 

 

तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है।  इसमे शनि, राहु, शनि का प्रभाव है। कुम्भ 313।20 से 316।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह दृष्टि, दर्शन, राजद्रोह, केंद्र भ्रष्ट का द्योतक है। जातक स्पष्ट ज्ञान वाला, कलाकार, कठोर अधर व पैर, गड्डेदार  कपोल, सांवला वर्ण, कम सुनने वाला होता है। 

इस पाद मे जातक तेज अन्तःज्ञानी, लिंग भेद का प्रदर्शन करने वाला, पति-पत्नी मे परस्पर प्रेम, अनुशासित होता है।  दुश्मन इसे नुकसान पहुंचाने मे असफल और मित्र लाभ पहुंचाने मे वंचित रहते है।  

 

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है।  इसमे शनि, राहु, गुरु का प्रभाव है। कुम्भ 316।40 से 320।00 अंश। नवमांश मीन। यह भ्रम, खर्च, दया, पवित्रता का द्योतक है। जातक व्याघ्र मुखी, घुंघराले बाल वाला, साहसी, निश्चित अर्थ का ज्ञाता, हिंसक जन्तुओ को मारने वाला, राज्य प्रिय होता है। 

इस पाद मे जातक सम्पदा और परिवार का प्रदर्शनकारी, व्यवसाय के कारण परिवार से दूर रहने वाला, भावुक, काल्पनिक, शराब के नशे का आदी और नशे के लिए घर का त्याग करने वाला लेकिन शराब की लत वाला, आध्यात्मिक गुरु या डाक्टर  होता है। 

 

आचर्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अंतर बहुत है। 

यवनाचार्य :  शतभिषा प्रथम चरण मे वाचाल, द्वितीय मे श्रीमंत, तृतीय मे सुखी, चतुर्थ में पुत्रवान होता है। 

मानसागराचार्य : शतभिषा प्रथम चरण मे कष्ट पाने वाला, भाषाहीन, द्वितीय मे पुत्रवान, तृतीय मे राजमान्य, चतुर्थ मे धर्मात्मा होता है। 

 

पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शनि, गुरु, मंगल का प्रभाव है। कुम्भ 320।00 से 323।20 अंश। नवमांश मेष। यह आक्रामकता, मानसिक ऊर्जा, तोड़फोड़, दृढ़ निष्कर्ष का द्योतक है। जातक मेढे के सामान मुख और नेत्र वाला, स्त्रियो से अश्लील प्रेम करने वाला, भीड़ से दूर, अपमानित, पित्त पीड़ित, साहसी, धैर्य युक्त होता है।  इस पाद का जातक अति आक्रामक, अन्तिम लक्ष्य पाने के लिए कर्मठ, विपरीत लिंग का शौकीन, शय्या सुख से अनभिज्ञ होता है।

 

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शनि, गुरु, शुक्र का प्रभाव है। कुम्भ 323।20 से 326।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह संतोष स्पष्टता का द्योतक है। जातक स्थिर सत्व बुद्धि वाला, राजा का प्रेमी, सैन्याधिकारी, सुभग, मैत्री पूर्ण स्वभाव वाला, स्नेहशील, मोटे दांत, बड़े नेत्र वाला होता है। इस पाद मे जातक रहस्य, काला जादू मे रुचिवान, पथ भ्रष्ट होने वाला होता है। यदि जातक रहस्यवादी हो, तो अच्छा ज्योतिषी और कला जादूगर हो सकता है।

 

तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शनि, गुरु, बुध का प्रभाव है। कुम्भ 326।40 से 330।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह संचार और जिज्ञासा का द्योतक है। जातक श्याम वर्ण, गोल मुख, सुन्दर, उत्कृष्ट, स्त्री-पुत्र युक्त, सुवक्ता, प्रसिद्ध, शक्तिशाली होता है। इस पाद का जातक ज्ञानवान, भौतिक स्तर पर कुशल, श्रेष्ट लेखक, अच्छा संचारवान होता है।

 

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे शनि, गुरु, चन्द्र का प्रभाव है। मीन 330।00 से 333।20 अंश। नवमांश कर्क। यह जादू की विद्या, सीमान्त परोपकारिता, तोड़फोड़, सामाजिकता का द्योतक है। जातक रक्त गौर वर्ण, छोटा गाल, पतली कमर, बुद्धिमान, चंचल चित्त, उत्साही, आशावादी, कोमलांगी पत्नी वाला होता है। इस पाद मे जातक वाह्य वातावरण मे संवेदनशील, परस्थितियो से विपरीत रहने वाला होता है। इनकी ऊर्जा को  नकारात्मक के बजाय सकारात्मक मार्ग पर ले जाने की आवश्यकता होती है।

 

आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है लेकिन अंतर बहुत है। 

यवनाचार्य : पूर्वा भाद्रपद के पहले पाद मे शूरवीर, दूसरे पाद मे चोर, तीसरे पाद मे बुद्धिमान, चौथे पाद मे आगे चलने वाला या मुखिया होता है।

मानसागराचार्य : पूर्वा भाद्रपद के प्रथम चरण मे योगीन्द्र, द्वितीय चरण मे अंगहीन, तृतीय चरण मे शुभ लक्षण वाला, चतुर्थ चरण में धनवान होता है।

 

उत्तरा भाद्रपद चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है।  इसमे गुरु, शनि, सूर्य का प्रभाव है। मीन 333।20 से 336।40 अंश।नवमांश सिंह।  यह निश्चितता, अहंकार, इच्छा का द्योतक है। यह मोटी चौड़ी भोंहे व नाक वाला, सुन्दर देह, क्रियापटु, जंगल विचरणी, धार्मिक कार्यो में निपुण, माँसाहारी होता है।

इस पाद का जातक कर्मठ, ज्ञानी, समाज मे प्रतिष्ठित, विरोधी इसके विचारो मे असहमत किन्तु यह उनको झुकाने वाला, गुपचुप मांसाहारी होता है।

 

द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है।  इसमे गुरु, शनि, बुध का प्रभाव है। मीन 336।40 से 340।00 अंश।नवमांश कन्या। यह संचार, गणना, योजना का द्योतक है। जातक गौर वर्ण, सुन्दर नेत्र, सुन्दर आकर्षक देह, धैर्यवान, विद्वान, नम्र, कृपालु, विनीत होता है।

इस  पाद में जातक अध्यनरत, जीवन और उद्द्येश्यो का परिकलन करने वाला, बुद्धि पर विवेकी, थोड़ा अन्तर्मुखी, विपरीत लिंग के विकास हेतु विचार विमर्श करने वाला होता है।

 

तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है।  इसमे गुरु, शनि, शुक्र का प्रभाव है। मीन 340।00 से 343।20 अंश।नवमांश तुला।  यह संतुलन, लक्ष्य. सकारात्मकता का द्योतक है। जातक गुणवान, विपत्तिशील, सहायता सेवा करने वाला, धार्मिक कार्य में निपुण, विद्वान, साहसी, निपुण, ऊँची नाक वाला होता है।

जातक शोध से जुड़ा हुआ, ज्योतिष और उसकी शखाओ मे रुचिवान, आध्यात्मिक प्रमुख, आध्यात्मिक शोध से संबद्ध, अाध्यात्म के लिए परिवार बलिदानी, जीवन मे विरोध और बाधाओ का सामना करने वाला, वरिष्ठो से सहयता प्राप्त होता है।

 

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है।  इसमे गुरु, शनि, मंगल का प्रभाव है। मीन 343।20 से 346।40 अंश। नवमांश वृश्चिक।  यह जादूगरी, ऊर्जा या रहस्य का द्योतक है। जातक लम्बा, काला, ऊँचे अंग, छोटी नाक, प्रतापी, हिंसा पूर्ण या आध्यात्मिक कामो मे सलग्न, असह्य होता है।

जातक रहस्य विज्ञान से सम्बन्धित होता है। आध्यात्म ज्ञान को उजागर करने वाला होता है। इस चरण के जातक को प्रकृति या ईश्वर का रहस्य उजागर करने का खतरा होता है, जिसके लिए इस जन्म या अगले जन्म में सजा भुगतनी पड़ती है। यह अन्य चरणो के जातक से भिन्न होता है।

 

आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु अंतर बहुत है। 

यवनाचार्य : उत्तरा भाद्रपद प्रथम चरण मे राजा, द्वितीय मे तस्कर, तृतीय मे पुत्रवान, चतुर्थ मे सुखी होता है।

मानसागराचार्य : पहले चरण में काल ज्ञान हीन, दूसरे मे लम्पट, तीसरे मे धनवान, चौथे मे चोर होता है।

 

रेवती चरण फल

प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है।  इसमे गुरु, बुध गुरु का प्रभाव है। मीन 346।40 से 350।00 अंश। नवमांश धनु। यह आशावाद, मानववाद, विश्वप्रेम, शासक स्वाभाव का द्योतक है। जातक अंग मे दोष, छोटी नासिका, टेड़ा मुख, कोमल, साहसी, गुणवान, प्रसिद्ध, अभिमानी निपुण होता है।

इस पाद मे जातक  व्यावसायिक विकास का प्रदर्शनकारी, आध्यात्मिक, राह छोड़कर दूसरो की मदद करने से गलत समझा जाने वाला होता है, इसे यह आदत छोड़ना चाहिये।

 

द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे गुरु, बुध शनि का प्रभाव है। मीन 350।00 से 353।20 अंश। नवमांश मकर। यह आधुनिक विज्ञान, युक्ति, संस्था या संगठन, अति महत्वाकांक्षा का द्योतक है। जातक अभिमानी, हठी, श्रेष्ठ, नास्तिक, सचिव या सलाहकार, मंत्री, बलवान, दुःखी, धूर्त, दुविधाग्रस्त होता है।

जातक प्रायोगिक, लक्ष्य उन्मुख, जीवन को चरम सीमा तक जीने वाला, ईच्छा को पूरी करने वाला, संतुलित स्वभाव वाला, पराधीन कार्य करने के बजाय स्वतंत्र काम करने की अधूरी इच्छा रखने वाला होता है।

 

तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे गुरु, बुध शनि  का प्रभाव है। मीन 353।20 से 356।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह मानववाद, बोहेमिया का द्योतक है।  जातक लम्बा, बड़ा सिर, दुबला व सुस्त, रूखे नेत्र व केश, आलसी, पुत्र सुख से हीन,  लड़ाई-झगड़ा पसंद होता है।

इस पाद मे जातक सीमा से पार जाकर मदद करने वाला होता है, इस कारण लोग इसका दुर्पयोग करते है तथा सहायता जारी रखने से दाम्पत्य जीवन मे कलह होता है।

 

चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे गुरु, बुध गुरु का प्रभाव है। मीन 356।40 से 360।00 अंश। नवमांश मीन। यह स्वप्न और संचार का द्योतक है। यह ठिगना, दीर्घ वक्ष, कान, नाक वाला, कोमल, प्रसिद्ध, बुद्धिमान, गुणवान, यशस्वी होता है।

जातक दिन मे स्वप्न देखने वाला, जीवन मे असफल, अस्थिर, शीघ्र भ्रमित होने वाला होता है। यह चरण किसी भी अर्थो मे शुभ नही होता है।

 

आचार्यो ने नक्षत्र चरण फल सूत्र रूप मे कहा है लेकिन अंतर बहुत है। 

यवनाचार्य : रेवती के पहले  चरण मे जातक ज्ञानी, दूसरे चरण मे तस्कर, तीसरे चरण मे युद्ध विजयी, चौथे चरण मे क्लेशभागी होता है।

मानसागराचार्य :  रेवती के प्रथम चरण मे कपटी, द्वितीय चरण मे निर्धन, तृतीय चरण मे भाग्यवान, चतुर्थ चरण मे क्लेशहीन होता है।


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।