कई बार ऐसा होता है कि जो लोग आस्तिक होते हैं वह नाकामयाब रहते हैं और नास्तिक कामयाब! इस तरह का परिणाम का कारण व्यक्ति स्वयं होता है भाग्य का आस्तिक होने या ना होने से कोई संबंध नहीं है भाग्य उन लोगों का भी होता है जो भाग्य को नहीं मानते हैं वास्तविकता में भाग्य अस्तित्व में तभी आता है जब" कर्म "होता है जैसे प्रकाश के बगैर छाया संभव नहीं है वैसे ही कर्म के बगैर भाग्य का लाभ संभव नहीं है यदि कोई नास्तिक बेहतर कर्म करता है तो यकीनन उसे भाग्य के सापेक्ष कामयाबी मिलेगी और यदि कोई आस्तिक कर्म की उपेक्षा करता है तो निश्चय जीवन में नाकामयाबी मिलेगी! भाग्य तो महज किसी प्रयास की सफलता का प्रतिशत तय करता है इसलिए बगैर कर्म केवल आस्तिक होने के दम पर सफलता नहीं पाई जा सकती है भाग्य की प्रबलता पूर्व जन्मों के कर्मों पर निर्भर है जो हो चुका उसे बदलना व्यक्ति के हाथ में नहीं है लेकिन वर्तमान के सत्कर्म भाग्य को संवार जरूर सकते हैं इसलिए यह तय है कि सच्चा जीवन जीने वाला नास्तिक किसी ढोंगी आस्तिक से ज्यादा सुखी और सफल रहता है भाग्य और सफलता का यही संबंध है और जो इसे अपना लेता है वही सफल होता है चाहे वह आस्तिक हो या नास्तिक! 🙏दीपिका माहेश्वरी🙏
very nice deepikaji
nice article