मूल चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे गुरु, केतु, मंगल का प्रभाव है। धनु 240।00 से 243।20 अंश। नवमांश मेष। यह जिज्ञासा, सकारात्मकता, आध्यात्म का द्योतक है।
जातक सुन्दर दांत व नेत्र, गौरवर्ण, स्पष्ट भाषी, बुद्धिमानो मे प्रधान, कपटी. खरी-खरी कहने वाला, साहसी होता है। इस पाद मे जातक भौतिकवादी, अहंवादी, भौतिक विकासशील, समाज मे आदर चाहने वाला होता है। इसके अंडकोष छोटे होते है।
पुरुष जातक आत्म निर्भर, पूर्णतया स्वतत्न्त्र, महत्वाकांक्षी, मध्य जीवन में आदरणीय, योग्यता से व्यापार मे विभूति होता है। सहायक बनकर अधिक समय नही रहता है। उम्र 6 या 7 वर्ष मे जलना या झुलसना, 36 या 37 मे आग से दुर्घटना या हड्डी टूटना होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे गुरु, केतु, शुक्र का प्रभाव है। धनु 243।20 से 246।40 अंश। नवमांश वृषभ। यह दीर्घ प्रयत्न, कलह, सृजन का द्योतक है। यह सामान्य कद, चौड़ा कद, घुटनो के ऊपर भारी पैर, चौड़ी टुड्डी से पहचाना जाता है। इस पाद का जातक अच्छा ज्योतिषी, नरम और कठोर कार्यकारी, भौतिक विकास मे विशिष्ट होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे गुरु, केतु, बुध का प्रभाव है। धनु 246।40 से 250।00 अंश। नवमांश मिथुन। यह शब्द, खेल, संचार, सम्बन्ध का द्योतक है।
जातक सुन्दर नयन, शिक्षाशास्री, साहसी, गंभीर, नीतिज्ञ, स्री प्रिय, हास्य कलाकार, संतुलित, आध्यात्म और सांसारिक गतिविधियो मे सामान समय देने वाला, प्रवीण, परिपक्व, विनोदी, सिद्धांतो पर अडिग होता है। इस पाद में भौतिक उन्नति नही होती है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्र है। इसमे गुरु, केतु, चंद्र का प्रभाव है। धनु 250।00 से 253।20 अंश। नवमांश कर्क। यह भावना, अनुकूल प्रभाव मे बाधा का द्योतक है।
जातक मादक व गोल नेत्र, गौर वर्ण, बड़ा पेट, सुन्दर बाल, सुन्दर मूर्ति, पीड़ित, बुद्धिमान, भ्रमण शील होता है। इस पाद मे जातक भावुक, प्रसन्नचित्त, विद्वान, कठोर निर्णय लेने मे असक्षम, लक्ष निश्चित करने मे असक्षम, मूल नक्षत्र का सबसे असंतुलित होता है। इससे घर मे अप्रसन्नता और बहार प्रशसा तथा आदर विशेषकर कार्यालयीन कार्यो मे होती है। जातक को अपने सहायक और संगी-साथी से सावधान रहना चाहिये क्योकि इनसे विश्वासघात की सम्भावना रहती है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है परन्तु उसमे अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : मूल के पहले पाद मे भोगवान, दूसरे में त्यागी, तीसरे मे अच्छा मित्र, चौथे मे राजा होता है।
मानसागराचार्य : मूल के प्रथम चरण मे ज्ञानी, द्वितीय मे नीच, निर्धन, तृतीय मे नीच कर्म करने वाला, चौथे मे राजमान्य होता है।
पूर्वाषाढ़ा चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी सूर्य है। इसमे गुरु, शुक्र, सूर्य का प्रभाव है। धनु 253।20 से 256।40 अंश। नवमांश सिंह। यह अभिमान, विश्वास, आध्यात्मिकता का द्योतक है। जातक सिंह समान देह वाला, बड़ा मुख, नेत्र, कंठ वाला, बड़ी भोंहे, मोटे कंधे, घने रोम, विध्वंसकारी, अहंकारी दृढ़ बुद्धि होता है।
इस पाद मे जातक बहुत बुद्धिमान, विश्वासी, समाज में प्रशंसनीय छवि वाला, प्रतिष्ठित नैतिक कुल का, आर्थिक स्तर से ज़्यादा स्वाभिमानी, चरित्रवान होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे गुरु, शुक्र, बुध का प्रभाव है। धनु 256।40 से 260।00 अंश। नवमांश कन्या। यह संचार, अध्यव्यसाय, भौतिकवाद का द्योतक है। जातक कोमल व गोरा, चौड़े करुणा युक्त नेत्र, दीर्घ ललाट, चौड़ा मुख, सुआचरणी, कवि, त्यक्त, मंद भाग्य, विद्वान कथाकार होता है।
जातक कर्मठ, वैवाहिक जीवन मे सफल, बुद्धिमान होता है। इसका उध्येश्य व्यापार मे निरन्तर उन्नति और विकास, उचाई प्राप्त करना होता है। प्रतिस्पर्धी इसकी गुणवत्ता सेवा, और बुद्धि के सामने घुटने टेक देता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे गुरु, शुक्र, शुक्र का प्रभाव है। धनु 260।00 से 263।20 अंश। नवमांश तुला। यह विलासता, प्रेम, साझेदारी, भौतिकता का द्योतक है। जातक श्याम वर्ण, ऊँचा सिर, कोमल वाणी, संग्रही, गुप्त योजना वाला, काम निकलने मे निपुण, ज्येष्ठ औरतो से कोमल सम्बन्ध रखने वाला होता है।
जातक सफल व्यापारी, सुखद वैवाहिक जीवन बिना मेहनत के प्रचुर धन पाने वाला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे गुरु, शुक्र, मंगल का प्रभाव है। धनु 263।20 से 266।40 अंश। नवमांश वृश्चिक। यह गोपनीयता, रहस्य, मनोवाद, अभिमान, उददण्डता, भौतिक पराङ्मुखता का घोतक है। जातक का नाक का अग्र भाग चपटा, चौड़ा सिर, सामान्य कद, व्याकुल नेत्र, शत्रुवान, प्रलापी, उद्विग्न, व्यग्र, झगड़ालु होता है।
जातक गुप्त स्वभाव वाला, आलोकिक विषयो में रुचिवान, अंतर्राष्ट्रीय मामलों का विशेषज्ञ, शत्रु और प्रतिस्पर्धी युक्त, बच्चो की देख-रेख करने वाले N G O को पर्याप्त धन देने वाला होते है। ये अपने खुद की तारीफ करने वाले (अपने मियाँ मिट्ठू) होते है।
➧ यदि शुक्र बलि हो, तो जातक का झुकाव कला और सौन्दर्य के प्रति अधिक होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप मे कहा है परन्तु अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : पूर्वाषाढ़ा प्रथम चरण मे श्रेष्ठ व्यक्ति, द्वितीय चरण मे राजा,, तृतीय चरण मे परिवादी और चतुर्थ चरण में धनवान होता है।
मानसागराचार्य : पूर्वाषाढ़ा प्रथम चरण मे क्रोधी, द्वितीय चरण मे पुत्रवान, तृतीय चरण मे कामी, चतुर्थ चरण मे धनी होता है।
उत्तराषाढ़ा चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे गुरु, सूर्य, गुरु का प्रभाव है। धनु 266।00 से 270।00 अंश। नवमांश धनु। यह संचार, विश्वास, खर्चीलेपन का द्योतक है। जातक सौम्य, गौर वर्ण, अश्व मुखी, लम्बे असित नेत्र, टेडी जांघ वाला, अल्प भाषी, स्त्री से दुःखी होता है।
इस पाद में जातक ईमानदार, सत्यवादी, मायावादी, समाज की धरोहर, सद्चरित्र, निम्न स्तर के लोगो को नही चाहने वाला, ब्रम्हवादी, बहुत ज्यादा कठोर या अभेद्य होता है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे शनि, सूर्य, शनि का प्रभाव है। मकर 270।00 से 273।00 अंश। नवमांश मकर। यह भौतिकवाद, व्यक्तित्वता, सांसारिकता का द्योतक है। जातक छिंदे दांत वाला, श्याम वर्ण, मोटी-फटी आवाज वाला, घने केश, ख़राब नख, गीतकार, विनोदी, शक्तिशाली होता है।
जातक दिल से मजबूत होता है इस कारण इसे ठण्डे खून वाला कहते है। यह लक्ष को पूरा करने वाला, ईश्वर मे विश्वास करने वाला किन्तु अन्य पादो की अपेक्षा आंशिक आध्यात्मिक होता है। यह गहन विचार के बाद बोलने वाला, प्रबल संचार वाहक, शक्तिवान होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी शनि है। इसमे शनि, सूर्य, शनि का प्रभाव है। मकर 273।20 से 276।40 अंश। नवमांश कुम्भ। यह परिवार, संचय, एकीकृत का द्योतक है। जातक टेडी नाक, विशाल देह, आलसी, धूर्त, बहुत सी स्त्रियों से प्रेम करने वाला, गीत मे रत, बकवादी, दृढ़ प्रतिज्ञा वाला होता है।
इस पाद मे जातक कठिन कार्य करने वाला, उदार हृदयी, समाज को समय देने वाला, दल के सम्मानीय व्यक्तियो से आदर पाने वाला, आवश्यकता की शीघ्र पूर्ति का इच्छावान, घटना होने तक धैर्य पूर्वक इन्जार करने वाला, विवाह के पश्चात मस्का मारने वाली स्त्रियो का तिरस्कार करने वाला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी गुरु है। इसमे गुरु, सूर्य, गुरु का प्रभाव है। मकर 276।40 से 280।00 अंश। नवमांश मीन। यह शारीरिक बल, भौतिकता, आध्यात्मिकता प्रचुर ऊर्जा का द्योतक है। जातक सुन्दर अंग, भूरे नेत्र, सुन्दर नाक, बहु मित्र व बन्धु वाला, गायक, कलाकार, इष्ट कर्म करने वाला होता है।
इस पाद में जातक आदर्शवादी, भावुक, कार्य के लिए ऊर्जावान, आध्यात्मिक, सलाहकार, दर्शन व्याख्याता, ईश्वर भक्त, गृह नगर से लाभी, संगीत प्रेमी, साथी-मित्र वाला होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है पर अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : उत्तराषाढ़ा के प्रथम चरण मे राजा, द्वितीय चरण मे मित्रो का विरोधी, तृतीय चरण मे स्वाभिमानी, चतुर्थ चरण मे धार्मिक होता है।
मानसागराचार्य : पहले मे रक्त विकारी, दूसरे में अंगहीन, तीसरे में गुरुभक्त, चौथे मे शुभ लक्षण युक्त होता है।
श्रवण चरण फल
प्रथम चरण - इसका स्वामी मंगल है। इसमे शनि, चन्द्र, मंगल ♄ ☾ ♂ का प्रभाव है। मकर 10।00 से 13।20 अंश। नवमांश मेष। यह आकांक्षा, जीवनवृत्ति, सूत्रपात का द्योतक है। जातक गोल नेत्र, चौड़ा ललाट, लम्बी भुजा, दुर्बल अंग, छिदे दांत, तोतला होता है। जातक केन्द्रीभूत, महत्वाकांक्षी, आत्मश्लाधी, बुरे मित्र वाला, विपरीत लिंग के मित्र को शीघ्र बदलने वाला होता है।
जातक दयालु, सत्यधर्म पर चलने वाला, प्रतिदिन मंदिर जाने वाला, सामाजिक उत्सव प्रिय, परिवार प्रेमी, विपरीत लिंग के साथ मौज-मस्ती करने वाला, बहु संतति , फूल प्रेमी, अच्छी वेश भूषा वाला होता है। इसके गुप्तांग या प्रजनन अंग की शल्य चिकित्सा हो सकती है।
द्वितीय चरण - इसका स्वामी शुक्र है। इसमे शनि, चंद्र, शुक्र का प्रभाव है। मकर 13।20 से 16।4 0 अंश। नवमांश वृषभ। यह कूटनीति, नम्रता, युक्ति, अध्यव्यसाय, या दीर्घ प्रयत्न का द्योतक है। जातक ऊँची नाक, बड़ा पेट, श्याम वर्ण, गोल भुजा व जाँघे वाला, सुन्दर, सुवंशी, काम पूरा कर ही चेन लेने वाला, दृढ़ निश्चयी, विद्वान, कूटनीतिज्ञ, मधुर भाषी, पैसो की टकसाल मे कलाविद होता है।
तृतीय चरण - इसका स्वामी बुध है। इसमे शनि, चन्द्र, बुध का प्रभाव है। मकर 16।40 से 20।0 0 अंश। नवमांश मिथुन। यह लचीलापन, संचार, चालाकी का द्योतक है। जातक कोमल कांति, पतले होंठ, बड़ी दाढ़ी, चौड़ा ललाट, कामी, सुवक्ता, सुन्दर वेशी होता है।
जातक मे सभी गुण-दोष होते है। यह अच्छा श्रोता तथा संचार वाहक, शास्त्र कथाओ का श्रोता, ज्ञान की उच्च शाखा का विशेषज्ञ, अधिक पुत्र वाला होता है।
चतुर्थ चरण - इसका स्वामी चन्द्रमा है। इसमे शनि, चन्द्र, चन्द्र का प्रभाव है। मकर 20।00 से 23।20
अंश। नवमांश कर्क। यह चित्त मे भावना की उत्पत्ति या ग्राह्यता, भीड़, उन्मुखता, सहानुभूति का द्योतक है।
जातक काला रंग, बड़ा शरीर, कोमल हाथ व पैर, कठोर, सुभाषी, बुद्धिमान, सुशील, सदाचारी, कुछ भावुक, समूह प्रेमी, जन समूह मे संतुलन बनाये रखने वाला, वार्तालाप और गपशप करने वाला, पुरोहित और पूजारी का सम्मान करने वाला, अहंकारी होता है। 20 वा वर्ष धातक होता है।
आचार्यो ने चरण फल सूत्र रूप में कहा है लेकिन अंतर बहुत है।
यवनाचार्य : श्रवण के पहले पाद मे कल्याणकारी कार्यो के लिए हठ करने वाला, दूसरे पाद मे अच्छे गुणों से युक्त, तीसरे पाद मे धनवान, चौथे पाद मे उत्तम स्त्री वाला होता है।
मानसागराचार्य : पहले चरण मे पर स्त्री गामी, दूसरे चरण मे देवांश, तीसरे चरण मे पुत्रवान, चतुर्थ चरण मे उत्तम होता है।