ग्रहण दोष का गलत प्रचार

Share

Jyotishacharya Sarwan Kumar Jha Jha 21st Aug 2017

 

नेशनल चैनल के साथ-साथ अन्य चैनलों पर भी जो बताया जाता है कि आपके पत्रिका में ग्रहण दोष लग गया क्या उसे मानना चाहिए ? क्या हमें ज्योतिष अंधेरे में रखकर अपने लाभ के लिए गलत बताते हैं या ऐसा हमारे शास्त्रों में लिखा है, आमलोगों को सबसे पहले समझना होगा कि आप लोग जो देखते या सुनते हैं क्या वही सच है । आज आपको बताएंगे कि ग्रहण दोष जो बताया जाता है उसका हकीकत क्या है ।

सूर्य या चन्द्रमा के साथ राहु या केतु को देखते ही ज्योतिष बताते हैं कि ग्रहण दोष लग गया और इसका उपाय कराना चाहिए ऐसा नहीं होता है । आप लोगों के जानकारी के लिए कहना चाहेंगे कि राहु व केतु के साथ चन्द्रमा महीने में दो बार युति करते हैं तो क्या युत हो जाने से ही ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता है । ठीक उसी तरह सूर्य राहु व केतु के साथ वर्ष में दो माह के लगभग युत रहता है तो ग्रहण दोष लग जाता है उस दो मास सूर्य के साथ स्थित होने पर असंख्य लोगों का जन्म होता है तो क्या सभी को ग्रहण दोष लगता है या महीने में लगभग 4 या 5 दिनों के लिए चन्द्रमा राहु व केतु से युत होता है तो क्या उस दौरान जन्म लेने वाले सभी लोगों को ग्रहण दोष लग जाता है ऐसा नहीं होता । सूर्य ग्रहण दोष और चन्द्र ग्रहण दोष इस तरह से बताने वाले लोग आपके साथ धोखा करते हैं ।

ग्रहण दोष होता है जो शास्त्रों में वर्णित है जो हम श्लोक लिख रहे हैं वो मुहुर्त चिन्तामणी से है -

सूर्येन्दु ग्रहणे काले येषां जन्म भवेद द्विज ।

व्याधि कष्टं च दारिद्रयं तेषां मृत्यूभयं भवेत् ।।

अर्थात सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण काल के समय जिसका जन्म होता है सिर्फ उसको ही ग्रहण दोष लगता है ऐसे जातक के जीवन में व्याधि, कष्ट, दरिद्रता के साथ-साथ मृत्यु भय भी बना रहता है । 

लेकिन सिर्फ राहु व केतु के साथ युत होने मात्र से ग्रहण दोष नहीं लगता अपितु जिस समय चन्द्रग्रहण या सूर्य ग्रहण घटित हो रहा हो उस समय जन्म लेने वाले जातक को ही ग्रहण दोष कहना चाहिए ।

इस दोष से मुक्त होने के लिए साधारण उपाय हम बताते हैं जो शास्त्रानुकुल है इसको कर लेने के बाद मन से यह संशय भी निकाल देना चाहिए कि आगे जीवन में इसका कुप्रभाव होगा ।

तन्नक्षत्रपते रूपं सुवर्णेन प्रकल्पयेत् ।

सूर्यग्रहे सूर्य रूपं सुवर्णेन स्वशक्तितः ।।

चन्द्रग्रहे चन्द्ररूपं रजतेन तथैव च ।

राहुरूपं प्रकुर्वीत सीसकेन विचक्षणः ।।

सूर्य ग्र्रहण में जन्म हो तो - नक्षत्र के देवता, और सूर्य की सोने की प्रतिमा बनाकर,  चन्द्रमा के लिए चांदि की प्रतिमा बनाकर तथा राहु की सीसे की प्रतिमा बनाकर पवित्रता से तीनों को कलश के उपर स्थापित कर पूजन हवन किया जाना चाहिए ।

सूर्य ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, सूर्य की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।

चन्द्र ग्रहण में जन्म लेने पर नक्षत्र स्वामी, जिस नक्षत्र में जातक का जन्म हुआ हो, चन्द्रमा की प्रतिमा तथा राहु की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए ।

अभिषेकं  ततः कुर्यात जातस्य कलशोदकैः ।

आचार्यां पूजयेद् भक्त्या सुशान्तो विजितेन्द्रियः ।

ब्राह्मणान् भोजयित्वा तु यथाशक्ति विसर्जयेत् ।।

कलश के जल से जातक का अभिषेक करना चाहिए तथा यथाशक्ति ब्राह्मण का पूजन दक्षिणा व भोजन कराना चाहिए ।

आज के परिवेश में ज्योतिष को ही दोषों और टोटकों से सर्व प्रथम बचाना होगा -

ऐसे भ्रांतियों से बचना होगा ऐसे दोषों के लिए राहु और केतु को कारण माना गया है, कहा जाता है कि राहु केतु के साथ यदि कोई ग्रह हो तो उस ग्रह को ग्रहण लग जाता है, ग्रहण लग जाने का अर्थ उन ग्रहों के परिणामों की हानि बताते हैं 

सूर्य के साथ हो तो सूर्य ग्रहण, चन्द्रमा के साथ हो तो चन्द्र ग्रहण ऐसे संवादों से सावधान रहना होगा ।

धन्यवाद !


Like (0)

Comments

Post

rakesh periwal

शानदार


Latest Posts

यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

न भारतीयो नववत्सरोSयं तथापि सर्वस्य शिवप्रद: स्यात् । यतो धरित्री निखिलैव माता तत: कुटुम्बायितमेव विश्वम् ।। *यद्यपि यह नव वर्ष भारतीय नहीं है। तथापि सबके लिए कल्याणप्रद हो ; क्योंकि सम्पूर्ण धरा माता ही है।*- ”माता भूमि: पुत्रोSहं पृथिव्या:” *अत एव पृथ्वी के पुत्र होने के कारण समग्र विश्व ही कुटुम्बस्वरूप है।* पाश्चातनववर्षस्यहार्दिकाःशुभाशयाः समेषां कृते ।। ------------------------------------- स्वत्यस्तु ते कुशल्मस्तु चिरयुरस्तु॥ विद्या विवेक कृति कौशल सिद्धिरस्तु ॥ ऐश्वर्यमस्तु बलमस्तु राष्ट्रभक्ति सदास्तु॥ वन्शः सदैव भवता हि सुदिप्तोस्तु ॥ *आप सभी सदैव आनंद और, कुशल से रहे तथा दीर्घ आयु प्राप्त करें*... *विद्या, विवेक तथा कार्यकुशलता में सिद्धि प्राप्त करें,* ऐश्वर्य व बल को प्राप्त करें तथा राष्ट्र भक्ति भी सदा बनी रहे, आपका वंश सदैव तेजस्वी बना रहे.. *अंग्रेजी नव् वर्ष आगमन की पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं* ज्योतिषाचार्य बृजेश कुमार शास्त्री

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

Top