ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक क्रूर और तामसी स्वभाव के ग्रहों शनि और राहु के कुण्डली में बुरे योग गंभीर और मृत्यु के समान शारीरिक और मानसिक पीड़ाओं को देने वाले भी साबित हो सकते हैं। इन ग्रहों के योग से ही किसी व्यक्ति की कुण्डली में कालसर्प, पितृदोष बनते हैं। माना जाता है कि इन दोषों से किसी भी व्यक्ति के जीवन में गहरी मानसिक परेशानियां भी पैदा होती है। धार्मिक मान्यताओं में सारे ग्रह काल गणना के आधार हैं और चूंकि काल पर शिव का नियंत्रण है, इसलिए महाकाल यानी शिव की उपासना ग्रह दोषों की शांति के लिए बहुत असरदार मानी गई है। जिसमें शिव के ऐसे अचूक मंत्र के जप का महत्व है, जो ग्रह पीड़ा ही दूर नहीं करता बल्कि मनचाहे फल भी देता है। यह अद्भुत और प्रभावकारी मंत्र है - शिव गायत्री मंत्र। जानते हैं शिव पूजा की सामान्य विधि के साथ यह शिव गायत्री मंत्र - - शनिवार, सोमवार, शनि प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव को गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, फल, पान, सुपारी, लौंग, इलायची चढाएं। इसके बाद इस शिव गायत्री के दिव्य मंत्र का जप करें - ॐ तत्पुरुषाय विद्महे। महादेवाय धीमहि। तन्नो रुद्रः प्रचोदयात।। धार्मिक मान्यता है कि शनिदेव परम शिव भक्त हैं और शिव के आदेश के मुताबिक ही शनि जगत के हर प्राणी को कर्मों के आधार पर दण्ड देते हैं। इसीलिए शनि या राहु आदि ग्रह पीड़ा शांति के लिए शिव की पूजा खासतौर पर शनिवार, सोमवार को बहुत ही कारगर होती है।
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सुन्दर लेख । Vishwajeet Bhutra
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