शनि को दुःख का कारक ग्रह माना गया है क्यूंकि ये दुःख देता है किन्तु सदेव स्मरण रहे दुःख का आगमन सुख की उपस्थिति का प्रमाण है क्यूंकि ये चक्र सदेव चलता रहता है शनि की छाया से उत्पन्न राहु और केतु ग्रह सदेव शनि के आदेश की प्रतीक्षा में रहते हैं कि किसी व्यक्ति को उसके पूर्व जन्म के पाप कर्म के फल कब कैसे दिए जाए इसी कारण शनि मे राहु का अन्तर सदेव ही कष्टकारी होता है चाहे वो थोड़ा ही क्यूँ ना हो, द्रष्टि युति होने पर प्रभाव अधिक होता है पूर्व जन्म के कर्मों को भोग लेना एक मात्र उपाय नहीं है अपितु योग ध्यान क्षमाँ the से प्रारब्ध काटता है इसलिए ऐसे कर्म करो जिनसे आगामी कर्म भविष्य के प्रारब्ध में ना बदले जय माता दी 🚩 🚩 🚩 ✒️ Shubham Garg