कुंडली में मंगल दोष और उसका समाधान | कुज दोष | भौम दोष | मंगली दोष तब होता है जब मंगल 1,4,7,8 और 12 भाव में स्थित हो। विवाह गृहस्थाश्रम की आधारशिला है विवाह के माध्यम से मनुष्य देव-ऋषि एवं पितृ ऋण सेमुक्त होकर परम कल्याण को प्राप्त होता है। विवाह सम्बन्ध करने से पहले लडके-लड़कियों के गुण का मिलान किया जाता है ताकि वैवाहिक जीवन सुखमय हो। गुण मिलान के क्रम में कुंडली में मंगल दोष का भी निर्धारण किया जाता है कहा जाता है कि यदि आपकी जन्म कुंडली में मंगल दोष है और मांगलिक दोष के परिहार के बिना शादी की जाती है तो निश्चय ही अनिष्ट होता है। वैवाहिक संबंधों में कोई न कोई बाधा उत्पन्न हो जाता है और कई बार तो मृत्यु जैसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है। वस्तुतः इस प्रकार की घटनाएं तो होती है परन्तु इनके पीछे केवल मांगलिक दोष को कारण बताना उचित नहीं है क्योकि कुंडली में मंगल दोष के अतिरिक्त अन्य भी दोष होता है जिसे सामान्यतः नजरअंदाज किया जाता है।
वास्तव में ज्योतिष के पुजारी कुंडली में मंगल दोष को ही देखते है उसके परिहार को नहीं और इतना बढ़ा चढ़ाकर बताते है कि व्यक्ति सुनकर ही घबड़ा जाता है और बिना सोचे समझे कह देते है कि यदि आपकी कुंडली में मांगलिक दोष है तो मैं अपनी लड़की अथवा लडके की शादी नहीं कर सकता इत्यादि इत्यादि। वास्तव में इस तरह के भय का माहौल बनाकर ज्योतिषी लोग अपने स्वार्थ की तो पूर्ति करते हैं परन्तु इसके दूरगामी परिणाम पर विचार नहीं करते है। अतः मांगलिक दोष और उस दोष का परिहार हमें उसी जन्मकुंडली में ढूंढना चाहिए अवश्य ही कोई रास्ता निकल आएगा।
क्या है कुंडली में मंगल दोष और उसका समाधान
लग्ने व्यये च पाताले जामित्रे चाष्टमे कुजे।
कन्या भर्तुविनाशाय भर्ता कन्या विनाशकः।।
अर्थात यदि किसी जातक की जन्मकण्डली में लग्न (प्रथम भाव) , पाताल(चतुर्थ भाव), जामित्र (सप्तम भाव ), अष्टम भाव तथा व्यय (द्वादश भाव), में मंगल बैठा हो तो मांगलिक दोष कहलाता है यह दोष होने पर कन्या अपने पति के लिए तथा पति कन्या के लिए घातक होता है। मंगल की यह स्थिति विवाह के लिए बहुत ही अशुभ मानी जाती है। दाम्पत्य संबंधों में तनाव व बिखराव, कार्य में बेवजह बाधा और असुविधा, घर में कोई अप्रिय घटना तथा किसी भी प्रकार की क्षति और पति-पत्नी की असामायिक मृत्यु का कारण मंगल दोष को माना जाता है।
मंगली दोष परिहार के नियम
जन्मकुण्डली के प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, सप्तम, अष्टम तथा द्वादश् भाव में से किसी भी भाव में मंगल बैठा है तो वह वर-वधू के लिए घातक होता है किन्तु इन भावों में बैठा हुआ मंगल यदि स्वक्षेत्री अर्थात अपने ही घर में हो जैसे मंगल मेष तथा वृश्चिक राशि में हो तो दोषकारक नहीं होता है।
मंगल दोष वाली कन्या का विवाह मंगलीक दोष वाले वर के साथ करने से मंगल का अनिष्ट दोष समाप्त हो जाता है तथा वर- वधू के मध्य दाम्पत्य सुख बढ़ता है –
कुज दोष वती देया कुजदोषवते किल I
नास्ति दोषों न चानिष्टम् दम्पत्यो: सुखवर्धनम् II
यदि आपके जन्मकुण्डली में मंगल प्रथम भाव (लग्न) में मेष राशि का हो, चतुर्थ भाव में वृश्चिक राशि का हो, सप्तम भाव में मीन राशि का हो, अष्टम भाव में कुम्भ को हो तथा द्वादश भाव में धनु राशिका हो तो मांगलिक दोष नहीं लगता है।
अजे लग्ने व्यये चापे पाताले बृश्चिके कुजे I
द्यूने मृगे कर्किचाष्टौ भौमदोषों न विद्यते II
यदि जन्मकुण्डली में लग्न (प्रथम), चतुर्थ, सप्तम, अष्टम या द्वादश भाव में शनि बैठा हो तो मंगल दोष नहीं लगता है। ।
यामित्रे च सदा सौरि लग्ने वा हिषुके तथा I
अष्टमे द्वादशो चैव भौमदोषों न विद्यते II
केन्द्र और त्रिकोण भावों में यदि शुभग्रह हो तथा तृतीय, षष्ठ एवं एकादश भावों में पापग्रह हो तथा सप्तमभाव का स्वामी सप्तम भाव में बैठा हो तो मंगली दोष नहीं लगता है।
केन्द्र कोणे शुभादये च त्रिषडायेSप्यसद्ग्रहा: I
तदा भौमस्य दोषो न मदने मदपस्तथा II
यदि लड़का तथा लड़की दोनों की जन्मकुण्डली में मंगल, शनि अथवा कोई अन्य पापग्रह एक ही जैसी स्थिति में बैठे हों अर्थात एक ही स्थान जैसे लड़का की कुंडली में मंगल सप्तम भाव में है और लड़की की भी कुंडली में मंगल सप्तम भाव में है तो मंगली दोष दूर हो जाता है। ऐसा विवाह शुभप्रद, दीर्घायुष्य देने वाला तथा पुत्र पौत्रदायक होता है।
शनि भौमोSथवा कश्चित् पापो वा तादृशो भवेत् I
तेष्वेव भवनेष्वेव भौमदोष विनाश कृत् II
भौमेन सदृशो भौम: पापो व तादृशो भवेत् I
विवाह: शुभद: प्रोक्तश्चिरायु: पुत्रपौत्रद: II
यदि आपकी कुंडली में दूसरे भाव में चन्द्र- शुक्र का योग हो, या गुरु मंगल को देख रहा हो तथा केन्द्र स्थान में राहु हो अथवा राहु- मंगल का योग हो, तो मंगल दोष नहीं होता है।
न मंगली चन्द्र भृगु द्वितीये, न मंगली पश्यति यस्य जीवा I
न मंगली केन्द्रगते च राहु:, न मंगली मंगल- राहु योगे II
यदि यदि आपकी कुंडली में १, २, ४, ७, ८, ११ और १२वें स्थान में मंगल स्थित है तो दोनों के वैवाहिक जीवन में परेशानी उत्पन्न करता है परन्तु यदि मंगल अपने घर मेष, वृश्चिक का हो अथवा उच्च का हो(मकर में) या मित्र के घर में हो तो मंगल दोष नहीं लगता है।
तनु धन सुख मदनायुर्लाभ व्ययग: कुजस्तु दाम्पत्यम् I
विघट्यति तद् गृहेशो न विघटयति तुंगमित्रगेहेवा II
यदि वर और कन्या की जन्म कुण्डलियों में परस्पर राशि मैत्री हो, गण दोष न हो, तथा 27 गुण अथवा उससे अधिक गुण का मिलान हो तब भी मंगल दोष का विचार नहीं करना चाहिए।
राशिमैत्रं यदा याति गनैक्यं वा यदा भवेत् I
अथवा गुण बाहुल्ये भौम दोषो न विद्यते II
यदि जन्मकुंडली में मंगल दोष है परन्तु मंगल को शनि देख रहा हो तो मंगल दोष समाप्त हो जाता है.
मंगल जिस राशि में बैठा है उस राशि का स्वामी यदि उच्च होकर केंद्र या त्रिकोण में बैठे है तो भी मंगल दोष समाप्त हो जाता है।
मकर लग्न में मंगल लग्न में उच्च होकर बैठा है और सप्तम स्थान में कर्क राशि का चंद्र हो तो मंगल दोष नहीं होता।
कहा जाता है कि आयु के 28वें वर्ष के बाद पश्चात मंगल दोष समाप्त हो जाता है परन्तु ऐसा नहीं है मंगल अपना कुप्रभाव अवश्य ही दिखलाता है।
यदि आपकी जन्मकुंडली वृष, मिथुन, सिंह तथा वृश्चिक लग्न की है तो मंगल दोष नहीं लगता है।
उपर्युक्त कुंडली में मंगल दोष विचार में मंगल दोष के परिहार की बात कही गई है यह परिहार भी मांगलिक दोष का पूर्ण समाधान नहीं करता है इसका मुख्य उदाहरण है भगवान श्री रामजी की जन्मकुण्डली इनकी कुंडली में मंगल सप्तम भाव में उच्च होकर स्थित है सप्तम में मंगल होने से मंगल दोष तो है साथ ही मंगल उच्च का होने से परिहार भी है वही उच्च्स्थ राशि का स्वामी शनि भी उच्च होकर केंद्र में स्थित है तथा मंगल पर उच्च के गुरु की भी दृष्टि है फिर भी रामजी का सीताजी से वियोग हुआ।
अतः मेरा सभी मांगलिक जातक से अनुरोध है कि आप अपने दाम्पत्य जीवन में विवेक का परिचय दे क्रोध पर नियंत्रण रखे, एक दूसरे के भावना को समझे, एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप से बचें बुद्धि का परिचय दे नियमित हनुमान चालीसा का मृत्युपर्यन्त पाठ करें सभी समस्या का अपने आप समाधान हो जाएगा।
कुंडली में मंगल दोष का समाधान कुम्भ / घट / केला अथवा तुलसी विवाह के माध्यम से किया जाता है और इसका फल भी शुभ देखा गया है। आचार्य बिनोद भरव्दाज