मंगली दोष के उपाय—-
लगन दूसरे भाव चतुर्थ भाव सप्तम भाव और बारहवें भाव के मंगल के लिये वैदिक उपाय बताये गये है,सबसे पहला उपाय तो मंगली जातक के साथ मंगली जातक की ही शादी करनी चाहिये। लेकिन एक जातक मंगली और उपरोक्त कारण अगर मिलते है तो दूसरे मे देखना चाहिये कि मंगल को शनि के द्वारा कहीं द्रिष्टि तो नही दी गयी है,कारण शनि ठंडा ग्रह है और जातक के मंगल को शांत रखने के लिये काफ़ी हद तक अपना कार्य करता है,दूसरे पति की कुंडली में मंगल असरकारक है और पत्नी की कुंडली में मंगल असरकारक नहीं है तो शादी नही करनी चाहिये। वैसे मंगली पति और पत्नी को शादी के बाद लालवस्त्र पहिन कर तांबे के लोटे में चावल भरने के बाद लोटे पर सफ़ेद चन्दन को पोत कर एक लाल फ़ूल और एक रुपया लोटे पर रखकर पास के किसी हनुमान मन्दिर में रख कर आना चाहिये। चान्दी की चौकोर डिब्बी में शहद भरकर रखने से भी मंगल का असर कम हो जाता है,घर में आने वाले महिमानों को मिठाई खिलाने से भी मंगल का असर कम रहता है,मंगल शनि और चन्द्र को मिलाकर दान करने से भी फ़ायदा मिलता है,मंगल से मीठी शनि से चाय और चन्द्र से दूध से बनी पिलानी चाहिये।
सातवें भाव का अर्थ—-
जन्म कुन्डली का सातंवा भाव विवाह पत्नी ससुराल प्रेम भागीदारी और गुप्त व्यापार के लिये माना जाता है। सातवां भाव अगर पापग्रहों द्वारा देखा जाता है,उसमें अशुभ राशि या योग होता है,तो स्त्री का पति चरित्रहीन होता है,स्त्री जातक की कुंडली के सातवें भाव में पापग्रह विराजमान है,और कोई शुभ ग्रह उसे नही देख रहा है,तो ऐसी स्त्री पति की मृत्यु का कारण बनती है,परंतु ऐसी कुंडली के द्वितीय भाव में शुभ बैठे हों तो पहले स्त्री की मौत होती है,सूर्य और चन्द्रमा की आपस की द्रिष्टि अगर शुभ होती है तो पति पत्नी की आपस की सामजस्य अच्छी बनती है,और अगर सूर्य चन्द्रमा की आपस की १५० डिग्री,१८० डिग्री या ७२ डिग्री के आसपास की युति होती है तो कभी भी किसी भी समय तलाक या अलगाव हो सकता है।केतु और मंगल का सम्बन्ध किसी प्रकार से आपसी युति बना ले तो वैवाहिक जीवन आदर्शहीन होगा,ऐसा जातक कभी भी बलात्कार का शिकार हो सकता है,स्त्री की कुंडली में सूर्य सातवें स्थान पर पाया जाना ठीक नही होता है,ऐसा योग वैवाहिक जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है,केवल गुण मिला देने से या मंगलीक वाली बातों को बताने से इन बातों का फ़ल सही नही मिलता है,इसके लिये कुंडली के सातंवे भाव का योगायोग देखना भी जरूरी होता है।
सातवां भाव और पति पत्नी—-
सातवें भाव को लेकर पुरुष जातक के योगायोग अलग बनते है,स्त्री जातक के योगायोग अलग बनते है,विवाह करने के लिये सबसे पहले शुक्र पुरुष कुंडली के लिए और मंगल स्त्री की कुन्डली के लिये देखना जरूरी होता है,लेकिन इन सबके बाद चन्द्रमा को देखना भी जरूरी होता है,मनस्य जायते चन्द्रमा,के अनुसार चन्द्रमा की स्थिति के बिना मन की स्थिति नही बन पाता है। पुरुष कुंडली में शुक्र के अनुसार पत्नी और स्त्री कुंडली में मंगल के अनुसार पति का स्वभाव सामने आ जाता है।
स्त्री कुन्डली में ग्रह-फ़ल—
1st क्रोधी अल्पायु विधवा भाग्यवान परिव्रता सुखी बांझ नि:संतान दुखी
2nd गरीब धनी नि:संतान धनी धनी भाग्यवान दुखी गरीब कपटी चिंतित
3rd संतान अच्छी सुखी भाई नही संतान सहित अच्छे भाई धनी होशियार धनी रोगी
4th रोगी दुर्भागिन दुखी अच्छे घरवाली सुखी सुखी करुणावाली रोगी माता को कष्ट
5th पुत्र से दुखी अच्छी संतान नि:संतान समझदार कलाकुशल बहुसंतान नि:संतान नि:संतान संतान से दुख
6th सुखी रोगी स्वस्थ क्रोधी संकटवाली गरीब शिल्पी धनी धनी
7th दुखी पतिप्रिया विधवा पतिव्रता इज्जतदार पतिप्रिया विधवा दुखी पति से दुखी
8th विधवा दुखी चरित्रहीन कृतघ्न रोगी दुखी दुखी पति से दुखी दुखी
9th धार्मिक बेकार संतान शुभकार्य शिष्ट धनी आचारहीन दुष्कर्मा दुष्कर्मा चिन्तित
10th उच्चाभिलाषी धार्मिक बेकार संतान शुभकार्य सुशील धनी आचारहीन दुष्कर्मा आचारहीन
11th धनी कलाकुशल धनी पतिव्रता शिष्ट संतान अतिधनी शिष्ट संतान स्वस्थ भाग्यवान
12th क्रोधी अपंग पापिनी वैरागिन शुभव्यय शुभकार्य मूर्ख मक्कार बीमार
पुरुष कुण्डली में ग्रह फ़ल—-
भाव सूर्य चन्द्र मंगल बुध गुरु शुक्र शनि राहु केतु
1st बहादुर सुखी घायल सुखी विद्वान सुखी दुखी बीमार अय्याश
2nd गरीब धनी ऋणी विद्वान धनी धनी निर्धन निर्धन पापी
3rd स्वस्थ सराहनीय साहसी विजयी पापी पापी साहसी साहसी बहादुर
4th दुखी सुखी दुखी सुखी सुखी सुखी दुखी घर में अशुभ दुखी
5th कम संतान बहुसंतान नि:संतान निकम्मी संतान प्रतापी बुद्धिमान संतान से कष्ट कुबुद्धि निर्बुद्धि
6th विजयी अल्पायु विजयी बीमार अय्याश रोगी विजयी बहादुर शक्तिवान
7th कुलटा स्त्री सुभार्या पत्नी से कष्ट धर्मात्मा सुभार्या अय्याश कुलटा स्त्री रोगी पत्नी कुभार्या
8th अल्पायु रोगी शरारती कलाकुशल अल्पायु आचारहीन नेत्ररोगी रोगी कलहकर्ता9th अधर्मी धर्मी आचारहीन सुखी धर्मी तपस्वी अधर्मी वक्ता कुलपालक
10th बहादुर पितृहीन कटुवक्ता राजपुरुष अधर्मी स्त्रीपालक गरीब इज्जतदार पिता को कष्ट
11th धनी धनी धनी धनी धनी बुद्धिमान धनी विख्यात धनी
12th मूडी कामी कुभार्या गरीब कपटी रोगी दुखी कुजाति दु:स्वभाव
कुण्डली में प्रेम विवाह—-
ज्योतिषशास्त्र में “शुक्र ग्रह” को प्रेम का कारक माना गया है । कुण्डली में लग्न, पंचम, सप्तम तथा एकादश भावों से शुक्र का सम्बन्ध होने पर व्यक्ति में प्रेमी स्वभाव का होता है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पंचम भाव प्रेम का भाव होता है और सप्तम भाव विवाह का। पंचम भाव का सम्बन्ध जब सप्तम भाव से होता है तब दो प्रेमी वैवाहिक सूत्र में बंधते हैं। नवम भाव से पंचम का शुभ सम्बन्ध होने पर भी दो प्रेमी पति पत्नी बनकर दाम्पत्य जीवन का सुख प्राप्त करते हैं।
पंचम भाव का स्वामी पंचमेश शुक्र अगर सप्तम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह की प्रबल संभावना बनती है । शुक्र अगर अपने घर में मौजूद हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है।
शुक्र अगर लग्न स्थान में स्थित है और चन्द्र कुण्डली में शुक्र पंचम भाव में स्थित है तब भी प्रेम विवाह संभव होता है। अगर कुण्डली में प्रेम विवाह योग नहीं है और नवमांश कुण्डली में सप्तमेश और नवमेश की युति होती है तो प्रेम विवाह की संभावना 100 प्रतिशत बनती है। शुक्र ग्रह लग्न में मौजूद हो और साथ में लग्नेश हो तो प्रेम विवाह निश्चित समझना चाहिए । शनि और केतु पाप ग्रह कहे जाते हैं लेकिन सप्तम भाव में इनकी युति प्रेमियों के लिए शुभ संकेत होता है। राहु अगर लग्न में स्थित है तोनवमांश कुण्डली या जन्म कुण्डली में से किसी में भी सप्तमेश तथा पंचमेश का किसी प्रकार दृष्टि या युति सम्बन्ध होने पर प्रेम विवाह होता है। लग्न भाव में लग्नेश हो साथ में चन्द्रमा की युति हो अथवा सप्तम भाव में सप्तमेश के साथ चन्द्रमा की युति हो तब भी प्रेम विवाह का योग बनता है। सप्तम भाव का स्वामी अगर अपने घर में है तब स्वगृही सप्तमेश प्रेम विवाह करवाता है। एकादश भाव पापी ग्रहों के प्रभाव में होता है तब प्रेमियों का मिलन नहीं होता है और पापी ग्रहों के अशुभ प्रभाव से मुक्त है तो व्यक्ति अपने प्रेमी के साथ सात फेरे लेता है। प्रेम विवाह के लिए सप्तमेश व एकादशेश में परिवर्तन योग के साथ मंगल नवम या त्रिकोण में हो या फिर द्वादशेश तथा पंचमेश के मध्य राशि परिवर्तन हो तब भी शुभ और अनुकूल परिणाम मिलता है।
आज दांपत्य जीवन की सबसे बड़ी समस्या हैं पति-पत्नी के बीच छोटे-छोटे विवाद। कभी-कभी यही छोटे-छोटे विवाद तलाक का कारण बनते हैं। तलाक के कारण क्या-क्या हैं? ऐसा क्यों होता है? क्यों कुछ दंपत्ति अपना दांपत्य जीवन का निर्वाह ठीक ढंग से कर नहीं पाते? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इसका कारण जन्म पत्रिका का सप्तम स्थान होता है। कुण्डली के इस स्थान में यदि सूर्य, गुरु, राहु, मंगल, शनि जैसे ग्रह हो या इस स्थान पर इनकी दृष्टि हो तो जातक का वैवाहिक जीवन परेशानियों से भरा होता है। सप्तम स्थान पर सूर्य का होना निश्चित ही तलाक का कारण है। गुरु के सप्तम होने पर विवाह तीस वर्ष की आयु के पश्चात करना उत्तम होता है। इसके पहले विवाह करने पर विवाह विच्छेद होता हैं या तलाक का भय बना रहता है। मंगल तथा शनि सप्तम होने पर पति-पत्नी के मध्य अवांछित विवाद होते हैं। राहु सप्तम होने पर जीवन साथी व्यभिचारी होता है। इस कारण उनके मध्य विवाद उत्पन्न होते हैं, जिनसे तलाक होने की संभावना बढ़ जाती है।एक परिवार में पति-पत्नी में अथाह प्रेम है। दोनों एक दूसरे के लिए पूर्ण समर्पित हैं। आपस में एक दूसरे का सम्मान करते हैं। अचानक उनमें कटुता व तनाव उत्पन्न हो जाता है। जो पति-पत्नी कल तक एक दूसरे के लिए पूर्ण सम्मान रखते थे, आज उनमें झगड़ा हो गया है। स्थिति तलाक की आ गई है। आखिर ऐसा क्यों हुआ?
घर-परिवार में बाधा के लक्षण
परिवार में अशांति और कलह।
बनते काम का ऐन वक्त पर बिगड़ना।
आर्थिक परेशानियां।
योग्य और होनहार बच्चों के रिश्तों में अनावश्यक अड़चन।
विषय विशेष पर परिवार के सदस्यों का एकमत न होकर अन्य मुद्दों पर कुतर्क करके आपस में कलह कर विषय से भटक जाना।
परिवार का कोई न कोई सदस्य शारीरिक दर्द, अवसाद, चिड़चिड़ेपन एवं निराशा का शिकार रहता हो।
घर के मुख्य द्वार पर अनावश्यक गंदगी रहना।
इष्ट की अगरबत्तियां बीच में ही बुझ जाना।
भरपूर घी, तेल, बत्ती रहने के बाद भी इष्ट का दीपक बुझना या खंडित होना।
पूजा या खाने के समय घर में कलह की स्थिति बनना।
व्यक्ति विशेष का बंधन—
हर कार्य में विफलता।
हर कदम पर अपमान।
दिल और दिमाग का काम नहीं करना।
घर में रहे तो बाहर की और बाहर रहे तो घर की सोचना।
शरीर में दर्द होना और दर्द खत्म होने के बाद गला सूखना।
इष्ट पर आस्था और विश्वास रखें।
हमें मानना होगा कि भगवान दयालु है। हम सोते हैं पर हमारा भगवान जागता रहता है। वह हमारी रक्षा करता है। जाग्रत अवस्था में तो वह उपर्युक्त लक्षणों द्वारा हमें बाधाओं आदि का ज्ञान करवाता ही है, निद्रावस्था में भी स्वप्न के माध्यम से संकेत प्रदान कर हमारी मदद करता है। आवश्यकता इस बात की है कि हम होश व मानसिक संतुलन बनाए रखें। हम किसी भी प्रतिकूल स्थिति में अपने विवेक व अपने इष्ट की आस्था को न खोएं, क्योंकि विवेक से बड़ा कोई साथी और भगवान से बड़ा कोई मददगार नहीं है। इन बाधाओं के निवारण हेतु हम निम्नांकित उपाय कर सकते हैं।उपाय : पूजा एवं भोजन के समय कलह की स्थिति बनने पर घर के पूजा स्थल की नियमित सफाई करें और मंदिर में नियमित दीप जलाकर पूजा करें। एक मुट्ठी नमक पूजा स्थल से वार कर बाहर फेंकें, पूजा नियमित होनी चाहिए।
स्वयं की साधना पर ज्यादा ध्यान दें।
गलतियों के लिये इष्ट से क्षमा मांगें।
इष्ट को जल अर्पित करके घर में उसका नित्य छिड़काव करें।
जिस पानी से घर में पोछा लगता है, उसमें थोड़ा नमक डालें।
कार्य क्षेत्र पर नित्य शाम को नमक छिड़क कर प्रातः झाडू से साफ करें।
घर और कार्यक्षेत्र के मुख्य द्वार को साफ रखें।
हिंदू धर्मावलंबी हैं, तो गुग्गुल की और मुस्लिम धर्मावलम्बी हैं, तो लोबान की धूप दें।