कृष्णमूर्ति जी की पद्यति के नियमों एवं वैदिक नियमों को आज के संदर्भ में सारगर्भित करते हुए मुख्य घटनाओं और उनसे सम्बन्धित केपी के नियमों का उल्लेख कर रहा हू – 1. आयु-विचार यदि लग्न का न.उप बाधक और मारक भावों का कार्येष हो तो बाधक और मारक भावों के कार्येषों की दशांतर्दशा में जीवन को खतरा हो सकता है और यदि ये कार्येष लग्न या अष्टम भाव के सामूहिक शासक हों तो इनकी दशांतर्दशा बहुत हानिकारक / नाजुक होती है । यदि लग्न का न.उप (सबलॉर्ड) निम्न भावों का स्वामी हो तो – 6,8, या 12 – 33 वर्ष की छोटी आयु 1,5,9, या 10 – 66 वर्ष से अधिक – दीर्घायु 6,8 या 12 और 1,5,9, या 10 – मध्यायु ( 66 वर्ष पर्यत) मारक और मारकेश की अपेक्षा बाधक और बाधकेश जीवन के लिये अधिक हानि कारक होते हैं। मारक भाव – 2,7,12 हैं क्योंकि ये आयु-भावों क्रमश: 3,8,1 से द्वादश स्थान हैं। बाधक भाव – चर राशि के लग्न के लिये बाधक भाव ग्यारहवां , स्थिर राशि की लग्न के लिये बाधक भाव नौवां और द्विस्वभाव राशि के लग्न के लिये सातवां भाव बाधक होता है । जैसे कर्क लग्न का जन्म है तो चूंकि कर्क चर राशि है अतः ग्यारहवां भाव बाधक होगा । बाधक स्थान का अधिपति ग्रह बाधकेश कहलाता है । बाधक स्थान में स्थि ग्रह और उन ग्रहों के नक्षत्र में स्थित ग्रह हानिकारक होते हैं । बाधक स्थान मारक स्थान से अधिक हानिकारक होता है इसलिये बाधक का विचार प्राथमिकता से करना चाहिये और फिर मारक भावो का । एक बात और कि केपी में सही भावों का चुनाव अत्यावश्यक है यह पहले भी बता चुका हूँ । यहां यह बताना चाहता हूँ कि हम किसी जातक की कुंडली द्वारा भी उसके रिश्तेदारों की आयु का आंकलन कर सकते हैं । उदाहरण के तौर पर – यदि पुत्र की कुंडली में पिता की आयु/मृत्यु का विचार करना हो तो उस कुंडली के नौवें भाव को पिता का लग्न मानकर विचार करना चाहिये । अर्थात पुत्र की कुंडली में नौवे स्थान से सम्बन्धित मारक और बाधक की गणना करनी चाहिये पिता की आयु ज्ञात करने के लिये । 2. विवाह एवं तलाक विवाह पर सीमित शब्दों में कहूंगा । विवाह के लिये मुख्य भाव 7 है और सहायक भाव 2 और 11 हैं । प्रेम सम्बंध का मुख्य भाव 5 है । यदि भाव-5 का उपाधिपति 2 या 11 भाव का सबल कार्येष हो या इन भावों से किसी भी प्रकार से जुड़ा हो तो प्रेम सम्बंध दर्शाता है । यदि यह न.उप. राहु या केतु से जुड़ा हो तो प्रेमी दूसरी जाति / धर्म / समाज का होता है। इसी प्रकार यदि भाव-7 का न.उप. भाव-5 या 11 का सबल कार्येष हो; या फिर वह किसी प्रकार से 5 या 11 से जुड़ा हो तो व्यक्ति का विवाह अपने प्रेमी से होता है, अर्थात प्रेम विवाह होता है । यदि यह न.उप किसी प्रकार से राहु या केतु से जुड़ा हो तो प्रेम-विवाह अंतर्जातीय होता है। जब भाव-7 का न.उप 2, 7 या 11 भाव का कार्येष होता है तो 2,7,11 के कार्येषों की दशांतर्दशा में विवाह होता है । यदि भाव-7 का उपाधिपति 1,6 या 10 का कार्येष है या इन भावों से जुड़ा हुआ है तो यह अच्छे वैवाहिक जीवन का संकेत नहीं है बल्कि एक तरह से यह वैवाहिक जीवन की अनुपस्थिति दर्शाता है । इसी प्रकार से भाव-2 और 11 के उपाधिपति के कार्येषत्व पर भी विचार करना आवश्यक है। 3. विदेश गमन भाव-4 जातक के घर का होता है और उससे बारहवां यानि भाव-3 घर से दूरी दर्शाता है । इसी प्रकार भाव-9 विदेश यात्रा या लम्बी यात्राओं का और भाव-12 किसी अज्ञात स्थान पर पूरी तरह से अपरिचित वातावरण में जीवन को दर्शाता है । इस प्रकार 3,9,12 भाव विदेश यात्रा के लिये देखे जाते हैं । भाव-12 मुख्य है । यदि भाव-12 का उपाधिपति 3,9 या 12 का सबल कार्येष हो या इन भावों से सम्बन्ध रखता हो तो विदेश यात्रा की पुष्टि होती है और यह यात्रा 3,9 और 12 भाव के कार्येषों की दशांतर्दशा में होती है । 4. शिक्षा भाव-4 से सामान्य शिक्षा, परीक्षा की तैयारी, शैक्षिक योग्यता , विद्यालय या महाविद्यालय में नियमित हाजिरी आदि का विचार करते हैं । भाव-9 गहन अध्ययन , उच्च शिक्षा और अनुसंधान का भाव है । भाव-11 सफलता, इच्छापूर्ति का भाव है । गुरु और बुध शिक्षा के मुख्य का कारक ग्रह हैं। यदि भाव-4 का उपाधिपति बुध या गुरु हो; या वह 4,9 या 11 का सबल कार्येष हो या इन भावों से जुड़ा हो या फिर वह गुरू या बुध से जुड़ा हो ( विशेष तौर पर यदि इस उपाधिपति का नक्षत्राधिपति गुरु या बुध से सम्बंधित हो ) तो जातक 4,9 और 11 के कार्येषों की दशांतर्दशा में शैक्षिक योग्यता प्राप्त करता है। छठा भाव प्रतियोगी परीक्षा का है और सातवां भाव जातक के प्रतियोगी का । सातवें का व्यय ही छठा भाव है, अर्थात प्रतियोगी को हानि और जातक को लाभ । जातक की पढाई 3,5, और 8 भावों ( क्रमशः 4,6,9 से बारहवे ) के कार्येषों की दशांतर्दशा में पूरी होती है या आगे के लिये स्थगित हो जाती है। मतलब जब सही दशा आयेगी तो वह फिर आगे की पढाई शुरु करेगा। 5. नौकरी यदि भाव-10 ( व्यवसाय/ पेशा ) या भाव-6 ( नौकरी ) का उपाधिपति भाव-10 (नौकरी या व्यवसाय ), भाव-2 ( संग्रहित/ संचित धन, स्वयं अर्जित धन ) या भाव-6 ( सेवारत, नौकरी पर दिन-प्रतिदिन की हाजिरी, दूसरों से धन की प्राप्ति ) का सबल कार्येष हो या 2,6 या 10 से जुड़ा हो तो जातक 2,6, और 10 के कार्येषों की दशांतर्दशा में नौकरी या व्यवसाय करेगा । यदि भाव-2 या भाव-11 का न.उप. भाव-2,6, या 11 का सबल कार्येष हो; या इन भावों से सम्बंध बनाये तो जातक 2, 6 और 11 भाव के कार्येषों की दशांतर्दशा में धन अर्जित करेगा। 6. व्यापारी / उद्योगपति यदि भाव-7 ( व्यापार, उद्योग ) का न.उप. 2,10 या 11 का सबल कार्येष हो या इन भावों से सम्बंध बनाता हो तो 2,10,11 भावों के सम्मिलित कार्येषों की दशंतर्दशा में जातक व्यापार या उद्योगधंधे में सफलता हासिल करेगा और धन कमायेगा । यदि भाव-10 का न.उप 2,7 या 11 का सबल कार्येष हो या इन भावों से जुड़ा हो तो जातक को 2,7,11 के कार्येषों की दशांतर्दशा में स्वतंत्र व्यापार / उद्योग में सफलता मिलती है । यदि 2 या 11 का उपाधिपति 2,6, या 11 का कार्येष हो या इनसे सम्बंधित हो तो 2,6,11 के कार्येषों की दशांतर्दशा में जातक धन-सम्पत्ति अर्जित करता है । परंतु यदि 2 या 11 का उपाधिपति केवल 8,12 या 5 का कार्येष हो तो जातक को भाव 8 और 12 के कार्येषों की दशांतर्दशा में धन-हानि उठानी पड़ती है । क्योंकि 8,12, और 5 सातवें भाव के क्रमश: 2,6,11 भाव होते हैं और सातवां भाव यानि जातक को हानि और दूसरे को लाभ । यदि भाव-7 ( व्यापार, साझेदारी, उद्योग ) का उपाधिपति 8 या 12 का सबल कार्येष हो तो जातक को 8 और 12 भाव के कार्येषों की दशांतर्दशा में व्यापार व्यवसाय आदि में धन की हानि झेलना पड़ती है। अब जातक कौन सा व्यवसाय , उद्योग-धंधा या नौकरी करेगा यह तो बारीक अध्ययन से पता लगाना होगा और उसके लिये आपको ग्रहों की दृष्टि , राशियों और ग्रहों के स्वभाव, आदि कई बातों पर एक साथ विचार करना होगा । इसी प्रकार बीमारी कौन सी होगी, शरीर के किस अंग को प्रभावित करेगी आदि बातों के लिये भी हर राशि और ग्रह के स्वभाव प्रकृति आदि की जानकारी होना आवश्यक है । आगे इस सम्बंध में कुछ बातें बताई जा रही हैं – पुरुष राशियां – सभी विषम (1,3,5,7,9,11) राशियां स्त्री राशियां – सभी सम (2,4,6,8,10,12) राशियां चर राशियां – 1,4,7,10 स्थिर राशियां – 2,5,8,11 द्विस्वभाव राशियां – 3,6,9,12 पूर्व दिशा की राशियां – 1,5,9 दक्षिण दिशा की राशियां – 2,6, 10 पश्चिम दिशा की राशियां – 3,7,11 उत्तर दिशा की राशियां – 4,8,12 अग्नि तत्व की राशियां – 1,5,9 पृथ्वी तत्व की राशियां – 2,6,10 वायु तत्व की राशियां – 3,7,11 जल तत्व की राशियां – 4,8,12 पूर्ण फलदायक राशियां – 4,8,12 अर्ध–फलदायक राशियां – 2,7,9,10 बांझ राशियां – 1,3,5,6,11 छोटे कद की राशियां – 1,2,11,12 मध्यम कद राशियां – 3,4,9,10 लम्बे कद की राशियां – 5,6,7,8 दुर्घटना की सुचालक राशियां – 1,3,7,9,10 टिप्पणी – उपर दिये अंकों में अंक 1 को मेष, 2 को वृषभ … 12 को मीन राशि समझें । राशियों से सम्बंधित शरीर के कुछ मुख्य अंग – मेष – सिर, माथा, दिमाग, चेहरे की हड्डियां वृष – गर्दन, गला, गले की हड्डी मिथुन – तंत्रिका तंत्र , हाथ, भुजायें ,कंधे, और इनकी हड्डियां, श्वसन कर्क – छाती, सीना, दिल, पेट, पाचन तंत्र सिंह – रीढ़, कमर, लीवर ( यकृत ) , पेंक्रियास ( अग्नाशय ) कन्या – पेट का निचला हिस्सा, आंते, तंत्रिका तंत्र आदि तुला – कमर का क्षेत्र, त्वचा, किडनी ( गुरदा ) , कमर की हड्डी आदि वृश्चिक – श्रोणीय हड्डी, गुदा, पेशाब-सम्बंधी, जनन सम्बंधी तत्व आदि धनु – कूला ( नितम्ब) , जांघ, नसें मकर – घुटना, हड्डी, जोड़, घुटने की टोपी ( नीकेप) कुम्भ – पैर, टखना, धमनियां, रक्तसंचार आदि मीन – तलुआ/पैर , अंगूठा और इनकी हड्डी ग्रहों का कारकत्व – 1.सूर्य सम्बन्धित – प्रशासन – सूर्य, और चन्द्र से देखा जाता है । रक्त – इसका प्रतिनिधित्व सूर्य, चन्द्र और मंगल सम्मिलित रूप से करते हैं। दृष्टि – सूर्य चन्द्र और भाव 2 और 12 से देखते हैं। पिता – सूर्य और नौवें भाव से । पुत्र संतान – सूर्य, गुरु और दशम । अनुसन्धान – सूर्य और बुध । 2.चन्द्र सम्बन्धित – सीना – चंद्र और चतुर्थ भाव से भावनात्मक शांति – चंद्र और भाव-5 मानसिक शांति – चंद्र और भाव – 4 सार्वजनिक सम्बंध – चंद्र माता – चंद्र और चतुर्थ भाव 3.मंगल सम्बन्धित दुर्घटना, रक्त मज्जा, जनन सम्बन्धी, पेशीय तंत्र, साहस – मंगल द्वारा देखे जाते हैं। छोटे भाई – बहन – मंगल और तृतीय भाव से । गर्दन – मंगल, शुक्र और दूसरे भाव से जनन सम्बन्धी – मंगल, शुक्र और अष्टम भाव से 4.बुध सम्बंधित – एकाग्रता , योग्यता, विष्लेषण क्षमता, त्वचा – बुध ( शुक्र त्वचा का गौड़ कारक है ) से । भुजायें – बुध, भाव 3 और 11 से । आत्म-विश्वास/साहस – बुध पाचन – बुध, गुरु, सूर्य और भाव-6 से भाषण – बुध, केतु और भाव-2 से । श्वसन कार्यप्रणाली और लेखन – बुध और भाव-3 । 5. गुरु सम्बन्धित – गिलटी (ग्लैंड्स), पति, धन, यकृत, बुद्धिमत्ता, दयालुता, – गुरु ग्रह से देखते हैं अर्थात गुरु इनका मुख्य कारक ग्रह है। धमनी / रक्त वाहिका – गुरु और नवम भाव से । श्रवण-शक्ति – गुरु, 3 और 11 भाव से । 6. शुक्र सम्बन्धित – नसयुक्त तंत्र, शिरायें , सुख, भोग, आनन्द, भोग-विलास – शुक्र से । किडनी (गुर्दे) – शुक्र और भाव-6 से । पत्नी – का मुख्य कारक ग्रह शुक्र है । 7. शनि से सम्बन्धित – जोड़, घुटने – शनि और दशम भाव से । दीर्घायु – शनि और भाव 8 एवं 12 से । मजदूर / कामगार – शनि । 8.राहु सम्बन्धित – आंत सम्बन्धी बीमारी – राहु एवं केतु से देखें । जहर, दवाएं – राहु से । फेरबदल – राहु से । 9. केतु सम्बन्धित – विद्रोहजनक हालात / जलने सम्बन्धी – केतु । आध्यात्मिकता – केतु, 5, और 9 भाव से । शल्य चिकित्सा – केतु और मंगल से । दुख/आपदा/विपत्ति – केतु । (Author: रविन्द्र पारीक)
very nice article by Astro Ravi ji
ग़ज़ब लेख