*पितृपक्ष में मिलता है पितरों का आशीर्वाद* पितृपक्ष 1 सितंबर से 17 सितंबर तक पितृपक्ष में पूर्वजों को याद कर उनकी की जाती है पूजा-पाठ इन दिनों पूर्वजों की शांति के लिए दान-पुण्य किया जाता है ताकि हम पर पूर्वजों की कृपा बनी रहे। पितरों का तर्पण करने से मिलता है पुण्य। पितृपक्ष में दान का विशेष महत्व है ।"महाविद्याक्षरा ज्योतिष संस्थान" के संचालक अजय शास्त्री ने बताया है। *पितरों का कैसे करें श्राद्ध* पूर्वज जिस तिथि में स्वर्गवास हुआ हो उस तिथि को उनका श्राद्धतर्पण करना चाहिए। जिन पूर्वजों की तिथि याद ना हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या को करना चाहिए। श्राद्ध में पिंडदान तर्पण और ब्राह्मणों को भोज कराया जाता है। इसमें चावल, गाय का दूध, घी, शक्कर और शहद को मिलाकर बने पिंडो को गया, हरिद्वार, गढ़गंगा,इलाहाबाद आदि में पितरों को अर्पित किया जाता है। जल में कालेतिल, जौ, कुशा, सफेदफूल डालकर विधि पूर्वक तर्पण किया जाता है। पितृपक्ष में पितृगायत्री मंत्र का जप श्रेष्ठ होता है। मन्त्र *ॐ देवताभ्य पितृभ्यश्च महायोगिभ्य एव च नमः स्वाहायै स्वधायै नित्यमेव नमो नमः*।। पितरों के आशीर्वाद से वंश विस्तार व धन धान्य की वृद्धि होती है। ज्योतिषाचार्य अजय शास्त्री ने बताया है की *गणपति विसर्जन* जल तत्व के अधिपति हैं गणपति, अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणपति की षोडशोपचार से पूजन अर्चन करके उन्हें जल में प्रवाहित कर देते हैं। पुराणों के अनुसार श्री वेदव्यास गणेश चतुर्थी से महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी और गणपति उसे लिख रहे थे। उसी दौरान व्यास जी ने अपनी आंख बंद कर ली और 10 दिनों तक कथा सुनाते रहे जब अनंत चतुर्दशी को आंख खुली तो उस वक्त गणपति के शरीर का तापमान बढ़ चुका था। जिस कारण व्यास जी ने गणेश जी को ठंडा करने के लिए जल में डुबकी लगाई थी। इसी मान्यता के अनुसार गणपति विसर्जन किया जाता है।