जाने शुक्र ग्रह का प्रभाव,
महत्त्व एवम् अन्य ग्रहों से बनी युति के प्रभाव और लाभ को
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भारतीय वेदिक ज्योतिष के अनुसार आकर्षण और
प्रेम वासना का प्रतीक शुक्र ग्रह नक्षत्रों के प्रभाव
से व्यक्ति समाज पशु पक्षी और प्रकृति तक
प्रभावित होते हैं। ग्रहों का असर जिस तरह प्रकृति
पर दिखाई देता है ठीक उसी तरह मनुष्यों पर
सामान्यतः यह असर देखा जा सकता है। आपकी
कुंडली में ग्रह स्थिति बेहतर होने से बेहतरफल प्राप्त
होते हैं। वहीं ग्रह स्थिति अशुभ होने की दशा में
अशुभफल भी प्राप्त होते हैं। बलवान ग्रह स्थिति
स्वस्थ सुंदर आकर्षण की स्थितियों का जन्मदाता
बनती है तो निर्बल ग्रह स्थिति शोक संताप
विपत्ति की प्रतीक बनती है। लोगों के मध्य में
आकर्षित होने की कला के मुख्य कारक शुक्र जी है।
कहा जाता है कि शुक्र जिसके जन्मांश लग्नेश केंद्र में
त्रिकोणगत हों वह आकर्षक प्रेम सौंदर्य का प्रतीक
बन जाता है। यह शुक्र जी क्या है और बनाने व
बिगाडने में माहिर शुक्र जी का पृथ्वी लोक में कहां
तक प्रभाव है ।।।
बृहद पराशर होरा शास्त्र में कहा गया है की—-
सुखीकान्त व पुः श्रेष्ठः सुलोचना भृगु सुतः।
काब्यकर्ता कफाधिक्या निलात्मा वक्रमूर्धजः।।।
तात्पर्य यह है कि शुक्र बलवान होने पर सुंदर शरीर,
सुंदर मुख, अतिसुंदर नेत्रों वाला, पढने लिखने का
शौकीन कफ वायु प्रकृति प्रधान होता है।
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भारतीय वेदिक ज्योतिष में शुक्र ग्रह सप्तम भाव
अर्थात दाम्पत्य सुख का कारक ग्रह माना गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शुक्र दैत्यों के गुरु
हैं। ये सभी विद्याओं व कलाओं तथा संजीवनी
विद्या के भी ज्ञाता हैं। यह ग्रह आकाश में
सूर्योदय से ठीक पहले पूर्व दिशा में तथा सूर्यास्त के
बाद पश्चिम दिशा में देखा जाता है। यह कामेच्छा
का प्रतीक है तथा धातु रोगों में वीर्य का पोषक
होकर स्त्री व पुरुष दोनों के जनानांगों पर प्रभावी
रहता है।।शुक्र ग्रह से स्त्री, आभूषण, वाहन, व्यापार
तथा सुख का विचार किया जाता है। शुक्र ग्रह
अशुभ स्थिति में हो तो कफ, बात, पित्त विकार,
उदर रोग, वीर्य रोग, धातु क्षय, मूत्र रोग, नेत्र रोग,
आदि हो सकते हैं वेदिक ज्योतिष शास्त्र में शुक्र ग्रह
बुध, शनि व राहु से मैत्री संबंध रखता है। सूर्य व
चंद्रमा से इसका शत्रुवत संबंध है। मंगल, केतु व गुरु से सम
संबंध है। यह मीन राशि में 27 अंश पर परमोच्च तथा
कन्या राशि में 27 अंश पर परम नीच का होता है।
तुला राशि में 1 अंश से 15 अंश तक अपनी मूल
त्रिकोण राशि तथा तुला में 16 अंश से 30 अंश तक
स्वराशि में स्थित होता है। इसका तुला राशि से
सर्वोत्तम संबंध, वृष तथा मीन राशि से उत्तम संबंध,
मिथुन, कर्क व धनु राशि से मध्यम संबंध, मेष, मकर, कुंभ
से सामान्य व कन्या तथा वृश्चिक राशि से प्रतिकूल
संबंध है।
भरणी, पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ नक्षत्र पर इसका
आधिपत्य है। यह अपने स्थान से सप्तम भाव पर पूर्ण
दृष्टि डालता है। शुक्र जातक को ललित कलाओं,
पर्यटन और चिकित्सा विज्ञान से जोड़ता है। जब
किसी जातक की कुंडली में शुक्र सर्वाधिक
प्रभावकारी ग्रह के रूप में होता है तो शिक्षा के
क्षेत्र में पदाधिकारी, कवि, लेखक, अभिनेता,
गीतकार, संगीतकार, वाद्ययंत्रों का निर्माता,
शृंगार का व्यवसायी बनाता है। जब यही शुक्र जन्म
पत्रिका में सप्तम या 12 वें भाव में वृष राशि में
स्थित रहता है तो यह प्रेम में आक्रामक बनाता है। ये
दोनों भाव विलासिता के हैं।जब यही शुक्र लग्न में है
और शुभ प्रभाव से युक्त है तो व्यक्ति को बहुत सुंदर व
आकर्षक बनाता है। शुक्र ग्रह पत्नी का कारक ग्रह
है। और जब यही शुक्र ग्रह सप्तम भाव में रहकर पाप
प्रभाव में हो और सप्तमेश की स्थिति भी उत्तम न
हो तो पत्नी को रुग्ण या आयु की हानि करता है।
तीसरे भाव पर यदि शुक्र है और स्वगृही या मित्रगृही
हो तो व्यक्ति को दीर्घायु बनाता है। यह भाव
भाई का स्थान होने से और शुक्र स्त्रीकारक ग्रह
होने से बहनों की संख्या में वृद्धि करता है। जब
किसी कुंडली में शुक्र द्वितीय यानी धन व परिवार
भाव में उत्तम स्थिति में बैठा है तो व्यापार से तथा
स्त्री पक्ष अर्थात ससुराल से आर्थिक सहयोग
मिलता है। यदि उत्तम स्थिति में नहीं होता है तो
व्यापार में हानि कराता है तथा ससुराल वाले ही
जातक का धन हड़प लेते हैं। 11 वें भाव में वृष राशिगत
शुक्र के बलवान होने से वाहन सुख अच्छा रहता है।
शुक्र बारहवें भाव में पापग्रह के साथ हो तो अपनी
दशा में धनहानि कराता है।
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वेदिक ज्योतिष ग्रंथों में बारहवें स्वस्थ शुक्र की बड़ी
महिमा बताई गई है। इस भाव में स्वस्थ शुक्र बड़ी
उन्नति प्रदान करता है। साथ ही शुक्र की दशा बहुत
फलवती व पूर्ण धन लाभ देने वाली होती है। सप्तम
स्थान में पाप प्रभाव युक्त शुक्र जातक को कामुक
बनाता है। ऐसा जातक विवाहित होने पर भी अन्य
स्त्रियों से शारीरिक संबंध बनाता है। यदि शुक्र
बलवान है और चतुर्थ भाव में गुरु की दृष्टि हो अथवा
गुरु चतुर्थ में स्थित हो तो व्यक्ति भूमि, धनसंपत्ति से
युक्त, विभिन्न वाहनों से युक्त, धनी व माननीय
बनाता है। यदि शुक्र बलहीन होता है तो व्यक्ति
अचानक भाग्यहीन हो जाता है। यदि दशम भाव में
शुक्र होता है तो अपनी दशा में नौकरी और संपूर्ण
सुविधाओं को प्रदान करता है। जब शुक्र राहु के
प्रभाव में यदि रहता है तो हानि प्रदान करता है।
यदि किसी व्यक्ति की भौतिक समृद्धि एवं सुखों
का भविष्य ज्ञान प्राप्त करन हो तो उसके लिए
उस व्यक्ति की जन्म कुंडली में शुक्र ग्रह की स्थिति
एवं शक्ति (बल) का अध्ययन करना अत्यंत महत्वपूर्ण
एवं आवश्यक है। अगर जन्म कुंडली में शुक्र की स्थिति
सशक्त एवं प्रभावशाली हो तो जातक को सब
प्रकार के भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके
विपरीत यदि शुक्र निर्बल अथवा दुष्प्रभावित
(अपकारी ग्रहों द्वारा पीड़ित) हो तो भौतिक
अभावों का सामना करना पड़ता है।
इस ग्रह को जीवन में प्राप्त होने वाले आनंद का
प्रतीक माना गया है। प्रेम और सौंदर्य से आनंद की
अनुभूति होती है और श्रेष्ठ आनंद की प्राप्ति स्त्री
से होती है। अत: इसे स्त्रियों का प्रतिनिधि भी
माना गया है और दाम्पत्य जीवन के लिए
ज्योतिषी इस महत्वपूर्ण स्थिति का विशेष अध्ययन
करते हैं।
अगर शक्तिशाली शुक्र (स्वराशि, उच्च राशि का
मूल त्रिकोण) केंद्र में स्थित हो और किसी भी
अशुभ ग्रह से युक्त अथवा दृष्ट न हो तो जन्म कुंडली
के समस्त दुष्प्रभावों (अनिष्ट) को दूर करने की
सामर्थ्य रखता है। किसी कुंडली में जब शुक्र लग्र
द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम और एकादश भाव में
स्थित हो तो धन, सम्पत्ति और सुखों के लिए अत्यंत
शुभ फलदायक है। सशक्त शुक्र अष्टम भाव में भी
अच्छा फल प्रदान करता है। शुक्र अकेला अथवा शुभ
ग्रहों के साथ शुभ योग बनाता है। चतुर्थ स्थान में
शुक्र बलवान होता है। इसमें अन्य ग्रह अशुभ भी हों
तो भी जीवन साधारणत: सुख कर होता है। स्त्री
राशियों में शुक्र को बलवान माना गया है। यह
पुरुषों के लिए ठीक है किंतु स्त्री की कुंडली में
स्त्री राशि के शुक्र का फल अशुभ मिलता है।
जब कुंडली में शुक्र और चंद्र, एक साथ हो तब सशक्त
होकर केंद्र अथवा त्रिकोण में स्थित हों तो सम्मान
या राजकीय सुख प्राप्त करते हैं। महात्मा गांधी
की कुंडली में इस प्रकार का योग था। शुक्र और बुध
पंचम या नवम भाव में स्थित हो तो जातक को धन,
सम्मान और प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है।
शुक्र की केंद्र में स्वराशि अथवा उच्चराशि में
स्थिति हो तो मालव्य योग होता है। यह योग
जातक को सुंदरता, स्वास्थ्य, विद्वता, धन-दाम्पत्य
सुख, सौभाग्य और सम्मानदायक है। अशुभ ग्रह के
योग से यह योग भंग हो जाता है।
जब किसी कुंडली में शुक्र, बृहस्पति और चंद्र की एक
साथ युति हो एवं केंद्र में ऐसी स्थिति से मृदिका
योग होता है जिसके फलस्वरूप उच्च पद एवं अधिकार
की प्राप्ति होती है। जब शुक्र अशुभ ग्रहों के साथ
या दुस्थानों (6, 8, 12) में स्थित हो तब यह ग्रह
अच्छा फल नहीं देता। सूर्य, मंगल अथवा शनि के साथ
शुक्र की युति होने पर जातक की प्रवृत्ति अनैतिक
कार्यों की ओर होती है किंतु बृहस्पति की दृष्टि
होने पर यह दोष नष्ट हो जाता है।
शुक्र, वाहन का कारक ग्रह है। अत: लग्र में चतुर्थेश के
साथ होने पर वाहन योग बनता है। कामवासना या
यौन सुख पर शुक्र का स्वामित्व माना गया है। अत:
विवाह अथवा यौन सुख के लिए भी इसकी स्थिति
का अध्ययन करना महत्वपूर्ण एवं आवश्यक है।
अगर यह ग्रह जन्मकुंडली में निर्बल अथवा
दुष्प्रभावित हो तो दाम्पत्य सुख का अभाव रहता
है। सप्तम भाव में शुक्र की स्थिति विवाह के बाद
भाग्योदय की सूचक है। शुक्र पर मंगल के प्रभाव से
जातक का जीवन अनैतिक होता है और शनि का
प्रभाव जीवन में निराशा व वैवाहिक जीवन में
अवरोध, विच्छेद अथवा कलह का सूचक है।
शुक्र अगर दुस्थान में स्थित होकर अशुभ ग्रह से
प्रभावित हो तो जीवनसाथी की शीघ्र हानि और
पंचम, सप्तम और नवम में निर्बल सूर्य के साथ होने पर
वैवाहिक जीवन का अभाव बतलाता है।
दुष्प्रभावित शुक्र प्राय: गंभीर बीमारियों का
कारण भी होता है। शुक्र और मंगल सप्तम भाव में
अशुभ ग्रह द्वारा दृष्ट हों तो संभोगजन्य रोग होता
है।
स्त्री की कुंडली (स्त्री जातक) में शुक्र की अच्छी
स्थिति का महत्व है। अगर स्त्री की कुंडली में लग्र में
शुक्र और चंद्र हो तो उसे अनेक सुख-सुविधाओं की
प्राप्ति होती है। शुक्र और बुध की युति सौंदर्य,
कलाओं में दक्षता और सुखमय दाम्पत्य जीवन की
सूचक है। शुक्र की अष्टम स्थिति गर्भपात को सूचित
करती है और यदि मंगल के साथ युति हो तो वैधव्य
की सूचक है।
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शुक्र मुख्यतः स्त्रीग्रह] कामेच्छा] वीर्य] प्रेम
वासना] रूप सौंदर्य] आकर्षण] धन संपत्ति] व्यवसाय
आदि सांसारिक सुखों के कारक है। गीत संगीत]
ग्रहस्थ जीवन का सुख] आभूषण] नृत्य] श्वेत और रेशमी
वस्त्र] सुगंधित और सौंदर्य सामग्री] चांदी] हीरा]
शेयर] रति एवं संभोग सुख] इंद्रिय सुख] सिनेमा]
मनोरंजन आदि से संबंधी विलासी कार्य] शैया सुख]
काम कला] कामसुख] कामशक्ति] विवाह एवं
प्रेमिका सुख] होटल मदिरा सेवन और भोग विलास
के कारक ग्रह शुक्र जी माने जाते हैं।
****शुक्र की अशुभताः-
यदि आपके जन्मांक में शुक्र जी अशुभ हैं तो आर्थिक
कष्ट] स्त्री सुख में कमी] प्रमेह] कुष्ठ] मधुमेह] मूत्राशय
संबंधी रोग] गर्भाशय संबंधी रोग और गुप्त रोगों की
संभावना बढ जाती है और सांसारिक सुखों में कमी
आती प्रतीत होती है। शुक्र के साथ यदि कोई पाप
स्वभाव का ग्रह हो तो व्यक्ति काम वासना के
बारे में सोचता है। पाप प्रभाव वाले कई ग्रहों की
युति होने पर यह कामवासना भडकाने के साथ साथ
बलात्कार जैसी परिस्थितियां उत्पन्न कर देता है।
शुक्र के साथ मंगल और राहु का संबंध होने की दशा में
यह घेरेलू हिंसा का वातावरण भी बनाता है।