कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का हिंदू धर्म में बहुत महत्व माना जाता है। इसे देवउठनी एकदशी या देवोत्थान प्रबोधनी एकादशी कहा जाता है। इस बार देव उठनी एकादशी 14 नवंबर दिन रविवार को पड़ रही है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु चार माह के लिए सो जाते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जगते हैं. चार माह की इस अवधि को चतुर्मास कहते हैं. देवउठनी एकादशी के दिन चतुर्मास का अंत हो जाता है और शादी-विवाह के काज शुरू हो जाते हैं.
कहा जाता है कि विष्णु जी जागने के पश्चात सबसे पहले तुलसी की प्रार्थना सुनते हैं। इस दिन तुलसी और विष्णु जी के विग्रह स्वरूप शालीग्राम का विवाह किया जाता है। यह प्रक्रिया वैवाहिक मंत्रोच्चारण के साथ होती है और भगवान विष्णु और तुलसी के ऊपर सिंदूरी रंग में रगे हुए चावल डालकर शादी को विधिपूर्वक संपन्न किया जाता है। इसके अलावा घर-घर में इस पौधे की पूजा होती है। तुलसी की आराधना मंत्र सहित करनी चाहिए। तुलसी भगवान विष्णु को प्रिय हैं. तुलसी को पवित्र माना गया है लोग घरों में और मंदिरों में ये विवाह करते हैं.इस दिन तुलसी की पूजा का महत्व है. शालीग्राम और तुलसी की पूजा से पितृदोष का शमन होता है.
देवउठनी एकादशी व्रत और पूजा विधि-----
एकादशी तिथि पर सुबह जल्दी उठें और स्नान आदि कामों के बाद सूर्य को जल चढ़ाएं। जल चढ़ाने के लिए तांबे के लोटे का उपयोग करें। जल में लाल फूल और चावल भी डाल लेना चाहिए। इस दौरान सूर्य मंत्र ऊँ सूर्याय नम:। ऊँ भास्कराय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए। भगवान विष्णु के साथ ही लक्ष्मी की पूजा करें। पूजा में सामान्य पूजन सामग्री के अतिरिक्त दक्षिणावर्ती शंख, कमल गट्टे, गोमती चक्र, पीली कौड़ी भी रखना चाहिए। सुबह स्नान के बाद तुलसी को जल चढ़ाएं।देवोत्थान पर सूर्यास्त के बाद तुलसी के पास दीपक जलाएं और ओढ़नी यानी चुनरी अर्पित करें। सुहाग का सामान भी तुलसी को चढ़ाएं।
अगले दिन ये चीजें किसी गरीब सुहागिन को दान करें। ध्यान रखें कभी भी सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते ना तोड़ें। अमावस्या, चतुर्दशी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। रविवार, शुक्रवार और सप्तमी तिथि पर भी तुलसी के पत्ते तोड़ना शास्त्रों के अनुसार वर्जित है। अकारण तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए। अगर वर्जित किए गए दिनों में तुलसी के पत्तों का काम हो तो तुलसी के झड़े हुए पत्तों का उपयोग करना चाहिए। वर्जित की गई तिथियों से एक दिन पहले तुलसी के पत्ते तोड़कर रख सकते हैं। पूजा में चढ़े हुए तुलसी के पत्ते धोकर फिर से पूजा में उपयोग किए जा सकते हैं।
तुलसी का ज्योतिषीय महत्व-----
ज्योतिषीय दृष्टिकोण से तुलसी का पौधा बेहद अहम है। यह पौधा चंद्र और शुक्र ग्रह के दोषों को दूर करने में सहायक होता है। इसलिए जिस जातक की कुंडली में सूर्य और चंद्रमा की स्थिति कमज़ोर हो तो उस जातक को तुलसी की पूजा और तुलसी की माला धारण करनी चाहिए। तुलसी की आराधना करने से कुंडली में अष्टम और षष्ट भाव से संबंधित दोष दूर होते हैं और सप्तम भाव भी मजबूत होता है। यदि विवाहित जातक तुलसी की नित्य आराधना करते हैं तो उसके वैवाहिक जीवन के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और पति-पत्नी के बीच रिश्ता अटूट होता है। तुलसी का पौधा वास्तु दोषों को दूर करता है।
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह एवं भगवान विष्णु की पूजा करने से पूरे परिवार पर भगवान की विशेष कृपा बनी रहती है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी घर पर धन सम्पदा और वैभव की वर्षा करती हैं।
देवोत्थान एकादशी व्रत नियम --
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित माना गया है. सालभर में 24 एकादशी पड़ती हैं और सभी में चावल खाने की मनाही होती है. कहते हैं कि एकादशी के दिन चावल खाने से अगले जन्म में रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म मिलता है.
भगवान विष्णु की अराधना है जरूरी---
एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठना चाहिए और शाम के समय भी सोने की मनाही होती है. इस दिन भगवान विष्णु की अराधना करनी चाहिए.श्रीमद देवी भागवत के अनुसार जो व्यक्ति कार्तिक महीने में भगवान विष्णु को तुलसी पत्र अर्पण करता है. 10,000 गायों के दान का फल निश्चित रूप से प्राप्त करता है.