भारतीय वैदिक ज्योतिष

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Astro Brajesh Shastri 01st Jul 2021

ऋषि कहते हैं कि यदि गुरु सप्तम में हो तो जातक उच्च शिक्षित एवं चिंताग्रस्त होता है। उसको अत्यधिक धन लाभ होता है।
जातक की पत्नी विद्वान, सती एवं पति भक्त होती है।
टिप्पणी: 'शिक्षा' के कारक गुरु एवं बुध हैं। गुरु की दृष्टि एकादश भाव पर पड़ती है, जो उच्च शिक्षा का है, किन्तु एकादश सहित नवम का लिंक 4-9-11-6 से होने पर अधिक पुष्टि होती है और जातक उच्च शिक्षा हेतु अग्रसर होता है।

चिंताग्रस्त होना स्वाभाविक है। जब हम किसी अनिष्ट के प्रति सतर्क होते हैं, तो अकस्मात ही चिंता का उदय होता है। अतः ज्योतिष के अनुसार प्रतिकूल दशा-भुक्ति जातक को चिंता प्रदान करती है। चन्द्र 'मन' का कारक है, अतः वह भय एवं चिंता को प्रकट करता है।
कुंडली में दुर्स्थित वरुण या दुष्प्रभावदायक मीन या द्वादश भाव जिस चिंता को लेकर जातक को व्यथित करते हैं, यथार्थ में वह कभी घटती ही नहीं है। मूक राशियाँ चिंता उत्पादक होती है, जिसके प्रभाव से जातक सरलता से चिंतित हो जाता है, स्थिर राशियाँ में यह गुण न्यूनतम होता है। जल एवं वायु राशियों का प्रभाव शीघ्रतम चिन्तादायक होता है।

सप्तम भाव व्यापार का है, अतः जातक को धनलाभ इस कारण भी हो सकता है।
अतः गुरु का लिंक 2-10-11 से होना व्यापार में अपार लाभ का संकेत देता है।

'विद्वता' (Intellect) का कारक गुरु सहित बुध है, जिसके प्रभाव से जातक बुद्धिमान बनता है। यदि बुध निर्बल हो, तो भी जातक अपार विद्वान होता है, यदि तृतीय भाव सहित निर्बल बुध या उसकी राशि का लग्न पर प्रभाव  होता है। यदि ऐसा भी न हो तो एकमात्र नवम/नवमेश का प्रभाव ही जातक को अत्यंत विद्वान बनाने में सक्षम होता है, क्योंकि तृतीय एवं नवम भाव मन से जुड़े होते हैं। बुध पर 'मन' के कारक चन्द्र की दृष्टि तथा लग्न से लाभदायक सम्बन्ध का होना, स्वराशि में होना या इन राशियों का लग्न में होना एवं तृतीय नवम भाव का सबल एवं सुदृष्ट होना भी विद्वान बनाता है। लग्नस्थ मंगल हो, और वह चन्द्र से 5-9 का सम्बन्ध बनाये तो जातक विद्वान होता है।

सप्तम भाव पत्नी हेतु उसका लग्न बनता है, अतः इस भाव में गुरु का स्थित होना उसे सद्गुण सम्पन्न बनाएगा, जिसमें उसका सतीतत्व होने का समावेश भी है, किन्तु ऐसे गुरु को पीड़ित नहीं होना चाहिए। इसके अतिरिक्त दशम भाव की समीक्षा भी होती है, जो पत्नी हेतु चतुर्थ भाव बनता है।

पतिभक्त होने के अनेक अर्थ है, जिसमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि पति-पत्नी के मध्य अनन्य प्रेम-स्नेह का होना, जिसे गुरु के अतिरिक्त सप्तम एवं एकादश से समीक्षित किया जाता है तथा 2-7-11 भावों के लिंक का अध्ययन किया जाता है।

ऋषि: यदि सप्तमेश निर्बल हो या शनि/मंगल/राहु/केतु से सम्बंधित या युत हो तो वह परनारी से सम्बन्ध रखता है।
टिप्पणी: परस्त्री से सम्बन्ध रखने के लिए गुरु का लिंक सप्तम के बजाय 11 से ही होना चाहिए, किन्तु ऐसे योगों के वर्णन में सावधानी अवश्य रखनी चाहिए।

ऋषि: यदि गुरु का सम्बन्ध शुभ ग्रह से हो, स्वराशी/उच्च हो तो जातक केवल अपनी पत्नी से संयुक्त रहता है। वह पत्नी द्वारा धनलाभ पाता है। वह सुखी तथा 34 वें वर्ष प्रतिष्ठा पाता है।
टिप्पणी: एकपत्नीवान होने की पृष्ठभूमि में ऐसी लिंकेज होती है, जो एक से अधिक सम्बंध निर्माण को अवरुद्ध रखती है।

पत्नी से धनलाभ उस अवधि में होता है, जब मुख्य भाव अन्य धनदायक भावों सहित सप्तम से लिंक्ड होता है।

सुख के अनेक प्रकार एवं रूप हैं। ऐसा कोई भाव या ग्रह नहीं, जिसमें सुख न हो, किन्तु शुभग्रह अधिकतम रूप से शुभ होते हैं और पापग्रह न्यूनतम रूप से सुख देते हैं। चन्द्र, बुध, गुरु तथा शुक्र में, शुक्र सर्वाधिक सांसारिक सुख प्रदान करता है, तो गुरु आध्यात्मिक सुख की वर्षा करता है। शनि 'अवसाद' (Melancholy) का कारक है, जो सुख के विरुद्ध काम करता है।अतः इनकी समीक्षा आवश्यक है।

जातक को प्रतिष्ठा की प्राप्ति अनेक कारणों से हो सकती है। किसी अभूतपूर्व कार्य को सम्पन्न करने पर, किसी पुरुस्कार या पारितोषिक को प्राप्त करने पर, किसी कार्य में सफल होने पर आदि।
बृजेश कुमार शास्त्री


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good


santanukumar padhy

Nice


santanukumar padhy

Nice article


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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