गुरु किसे और कैसे बनाएं ?

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Astro Rakesh Periwal 24th Jul 2021

*गुरु किसे और कैसे बनाएं ?*
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           आज बहुत से लोग पूछते रहते हैं की हमें किसी गुरु के बारे में बताएं ,जो हमें दीक्षा दे सकें ,हमारा मार्गदर्शन कर सकें तंत्र क्षेत्र के जिज्ञासुओं की संख्या इनमे अधिक होती है चूंकि तंत्र साधना बिना गुरु के संभव ही नहीं और शक्ति की प्राप्ति तंत्र से ही संभव है। गुरु के बिना किसी भी आध्यात्मिक क्षेत्र में साधक की स्थिति अँधेरे में हाथ पाँव मारने जैसी ही होती है। गुरु अगर मिल गया तो साधक शीघ्र लक्ष्य की और बढ़ जाता है। किन्तु जितनी बड़ी समस्या आज गुरु को खोजने और मिलने की है ,उससे बड़ी समस्या खोजने वाले की श्रद्धा और विश्वास की है।लोग कहते हैं की योग्य और सक्षम गुरु कहाँ से ढूंढें  कहाँ से ऐसे सिद्ध गुरु को पायें जो हमें सबकुछ दे सके लोगों की सामान्य अभिलाषा भौतिक रुचिओं को लेकर ही होती है और वे सिद्धियाँ और चमत्कार चाहते हैं। अधिकतर गुरु खोजने वालों की यही अभिलाषा होती है की गुरु ऐसा मिले जो शीघ्र सिद्धि दिलवा दे या दे दे ,जिससे हमें भौतिक लाभ हो और हम चमत्कार कर सकें। लोग गुरु की सक्षमता और योग्यता ढूंढते फिरते हैं ,अपने योग्यता और सक्षमता के बारे में कोई नहीं सोचता। गुरु की शक्ति पहले जानना चाहते हैं ,अपनी क्षमता पर दृष्टि ही नहीं होती। गुरु पर श्रद्धा और उनपर विश्वास के बिना केवल चमत्कार और सिद्धि के लालच में बहुतेरे गुरु खोजते मिलते हैं। अपनी समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए गुरु खोजते मिलते हैं जबकि वास्तव में गुरु का सम्बन्ध भौतिकता से तो होना ही नहीं चाहिए। गुरु तो परम उन्नति ,परम लक्ष्य के लिए होना चाहिए। गुरु के बारे में लोग अधिक जानना चाहते हैं ,उनकी शक्ति पहले परखना चाहते हैं ताकि वह उस शक्ति को पा सकें ,उस शक्ति का उपयोग अपने लाभ के लिए कर सकें ,,अधिकतर का उद्देश्य मुक्ति-मोक्ष-ज्ञान प्राप्ति ,सत्य को जानना होता ही नहीं। ऐसे में तो वास्तविक गुरु मिलना ही मुश्किल होता है ,जो मिलेंगे वह भी तो भौतिकता वाले ही होंगे ,क्योकि आपका लक्ष्य भौतिकता ही तो है। ऐसे में परम लक्ष्य एक साथ प्राप्त करना मुश्किल होता है।
               जब आपमें किसी गुरु के प्रति श्रद्धा और विश्वास ही नहीं है ,पहले गुरु की ही शक्ति जानना चाहते हैं ,अपने को गुरु को समर्पित न कर उनसे ही केवल प्राप्ति की इच्छा है तो गुरु मिले भी तो कैसे जितनी समस्या योग्य गुरु मिलने की है उतनी ही समस्या शिष्य में योग्यता और समर्पण का अभाव भी है। सामान्य रूप से लौकिक गुरु या समाज में अधिकाँश दिखने वाले गुरु भौतिकता में लिप्त और आडम्बरपूर्ण अगर हैं तो शिष्य भी तो उन्ही के पास जाते हैं ,वह भी तो आडम्बर ही देखते हैं की किसके पास कितनी भीड़ है ,कितना वैभव है। अगर वास्तव में साधना की अभिलाषा होती है तो कुछ दिनों में भ्रम टूट जाता है और अविश्वास उत्पन्न हो जाता है ,फिर नए गुरु की तलाश शुरू हो जाती है। गुरु अगर सक्षम है और सिद्ध है तो वह कभी चमत्कार नहीं दिखायेगा ,कभी प्रदर्शन अथवा प्रचार के चक्कर में नहीं पड़ेगा। यह तो वही करते हैं जिनमे क्षमता का अभाव होता है और प्रदर्शन से भीड़ और शिष्य बटोरना चाहते हैं। सक्षम व्यक्ति को इतनी फुर्सत ही कहाँ है की वह इन सब के बारे में सोचे ,उसे तो अपनी साधना और लक्ष्य के अतिरिक्त कुछ दीखता ही नहीं। वह तो किसी शिष्य अथवा दीक्षा के चक्कर में ही जल्दी नहीं पड़ना चाहता अथवा बेहद योग्य का ही चुनाव करता है अपने ज्ञान को आगे ले जाने के लिए।
            वास्तविक साधक अपनी साधना देखता है ,अपना लक्ष्य देखता है ,साधना में लिप्त रहता है ,आडम्बर-प्रचार-साधना में किसी प्रकार के अवरोधक तत्त्व से दूर रहता है। वह नहीं चाहता की उसके पास भीड़ लगे ,लोग इकट्ठे हों ,उसका ध्यान भटके ,या समय का दुरुपयोग हो। यद्यपि उसकी भी कुछ आवश्यकताएं होती हैं जिनकी पूर्ती उसे इसी भौतिक संसार से करनी होती हैं पर उसके लिए वह सीमित लोगो से ही उनकी पूर्ती करने की कोसिस करता है। उसकी सम्प्रदायगत और विद्या संरक्षण की भी जिम्मेदारी होती है पर इसके लिए वह बेहद योग्य और कम से कम शिश्यादी चुनने की कोसिस करता है। वह शिष्यों की भीड़ नहीं चाहता। वह चाहता है कम हों पर योग्य हों। इसके लिए वह बेहद सावधानी बरतता है ,सभी इच्छुकों को शिष्य बना लेने में उसकी रूचि नहीं होती। वह शिष्य की कठिन परिक्षा भी कभी कभी लेता है। चूंकि वह खुद योग्य होता है अतः योग्यता की परख होती है और योग्य ही चुनना चाहता है। योग्यता का शिक्षा अथवा ज्ञान से बहुत मतलब नहीं होता उसके लिए। वह तो समर्पण, निष्ठां, श्रद्धा, विश्वास, लक्ष्य अथवा उद्देश्य के प्रति लगाव -समर्पण आदि देखता है। कितने ऐसे हैं जो यह अपने अन्दर रखकर गुरु की तलाश करते हैं। अधिकतर तो पहले गुरु को ही जानना चाहते हैं ,उसकी ही योग्यता जानना चाहते हैं। 
           अक्सर हमसे लोग गुरु के बारे में पूछते मिलते हैं। हमसे योग्य और सक्षम गुरु के बारे में बताने का अनुरोध करते हैं। अक्सर लोग्य कहते मिलते हैं योग्य गुरु को कहाँ तलाशें ,कहाँ मिलेंगे योग्य गुरु अर्थात गुरु को योग्य -सिद्ध-सक्षम अवश्य होना चाहिए जो इन्हें चमत्कार दिखा सके, तुरंत सिद्धि दिला सके ,अपनी क्षमता और खुद के बारे में कोई नहीं सोचता। कैसे कहें की ऐसे गुरु की तलाश नहीं होती। फेसबुक पर गुरु की तलाश करना भूसे के ढेर में लगभग सुई ढूँढने जैसा ही है। ऐसा नहीं है की इस माध्यम पर भी गुरु नहीं हैं ,किन्तु उसकी परख के लिए भी तो आपमें वह क्षमता चाहिए ही की आप उन्हें परख सके। किसी के बताने से किसी को गुरु बना लेना बहुत उपयुक्त नहीं है। इसके लिए तो खुद ही देखना-समझना-प्रयास करना चाहिए सबसे पहले अपने आस्था-विश्वास को दृढ करना चाहिए जरुरी नहीं की हर गुरु हर विद्या में सिद्ध हस्त हो ,कोई भी एक विद्या में ही समर्थ होता है अक्सर अतः सब कुछ किसी एक में ही ढूंढता उचित नहीं जरुरी नहीं की आपका गुरु अति समर्थ हो ,अगर आपमें श्रद्धा और विश्वास है तो वह गुरु भी भगवान से मिलाने में सक्षम है जिसने खुद भगवान के दर्शन नहीं किये इसका अपना एक विज्ञान और सिद्धांत है। सब उर्जाओं का खेल है। जब आपकी श्रद्धा -विश्वास पत्थर को भगवान बना सकती है तो मनुष्य क्यों नहीं भगवान दिला सकता आप विश्वास तो करें।
              
हमारी बात से बहुत से लोग असहमत हो सकते हैं किन्तु फिर भी हम कहना चाहेंगे की यदि आपने किसी को एक बार गुरु मान लिया तो फिर कभी भी आप उनपर अविश्वास अश्रद्धा संदेह न करें ,भले ही उनमे बाद में कमियां दिखें या लोग कहें। इसके कई कारण होते हैं ,हो सकता है लोग गलत हों ,हो सकता है जिस कमी की बात हो उसके कोई और कारण हो जो आप या लोग न समझ पाए ,हो सकता है जिस कमी को आपने देखा हो वह उन्होंने जान बूझकर आपको दिखाया हो ,हो सकता है उन्होंने आपकी परीक्षा ली हो ,हो सकता है जो कमी सामाजिक रूप से बताई जा रही हो उसके कोई गंभीर आध्यात्मिक कारण हों अथवा वह किसी उद्देश्य विशेष से जुड़ा हो ऐसी बहुत सी बातें हो सकती हैं। यद्यपि बहुत से आधुनिक गुरुओं में कमियां पाई जा रही हैं ,और बहुत लोग केवल चोला धारण कर गुरु बन इसे अपनी भौतिकता की पूर्ति का माध्यम बना बैठे हैं ,किन्तु इसका निर्णय गुरु बनाने के पहले ही करना चाहिए ,बाद में नहीं और अंधी श्रद्धा में गुरु नहीं बनाना चाहिए। वास्तव में अगर गुरु कम ही सक्षम है तो भी आप की साधना से उसका बहुत लेना देना नहीं होता। आपकी सिद्धि और लक्ष्य प्राप्त शुरू में आपके भाग्य -ग्रह गोचर पर और बाद में आपकी लगन-श्रद्धा और क्षमता पर निर्भर करती है। बहुत ही कम लोगों को ऐसे गुरु मिल पाते हैं जो शक्तिपात से उनमे शक्ति का संचार कर सकें। कहने को तो बहुत लोग दावा करते हैं यदि किसी पर शक्ति पात न हो अथवा बहुत सक्ष्गम गुरु न मिले तो क्या व्यक्ति सिद्ध नहीं हो सकता। हो सकता है बिलकुल हो सकता है श्रद्धा- विश्वास में इतनी शक्ति है की वह कुछ भी कर सकती है।अगर आपमें एक बार गुरु के प्रति अश्रद्धा -अविश्वास उत्पन्न हुआ तो आप मान लीजिये आप भविष्य में भी सफल नहीं होंगे आपमें भयानक कमी है।फिर यह उत्पन्न होगा अगले गुरु के प्रति भी ,उनमे भी यह कमियां खोजेगा और आपको कभी सफल नहीं होने देगा।
                गुरु बनाने में जल्दबाजी और हडबडाहट न करें।तत्काल सिद्धि -चमत्कार के चक्कर में गुरु न बनायें। गुरु मुक्ति का पथ दिखाने के लिए बनाया जाता है, सिद्धि चमत्कार के लिए नहीं। यह तो रास्ते के पत्थर हैं जो अवरोध ही उत्पन्न करते हैं की व्यक्ति इसी में फसकर और भौतिकता में लिप्त होकर रह जाए। गुरु की तलाश में पूर्ण बुद्धि और समय का उपयोग करें जिससे बाद में पचतावा हो ही नहीं। पहले तो गुरु को स्थिर मन से मुक्ति को लक्ष्य कर तलाशें ,भौतिकता को लक्ष्य कर तलाशा गया गुरु सिद्धि- चमत्कार से आगे ले ही जा पायेगा कहा नहीं जा सकता। अतः लक्ष्य हमेशा अंतिम रखें ,अपने अन्दर अट्टू श्रद्धा विश्वास-समर्पण रखें गुरु के प्रति भी और लक्ष्य के प्रति भी यह टूटने न पाए। अधिकतर लोग भौतिकता और अपने घर -परिवार या खुद के स्वार्थ को ही दृष्टिगत रख आज के समय में गुरु बनाते हैं और लक्ष्य होता है सिद्धि प्राप्त करना ,धन प्राप्त करना ,सुख प्राप्त करना, वशीकरण, आकर्षण ,सम्मोहन या शत्रु विनाश की शक्ति प्राप्त करना। इन्ही बातों को जानकार आज कल के स्वयंभू गुरुओं नें दुकान खोल रखी है और पैसे लेकर दीक्षा बाँट रहे ,समूह में दीक्षा दे रहे ,फोन पर दीक्षा दे रहे, इंटरनेट पर दीक्षा दे रहे। और हम यही देखकर और लोगों के उद्देश्य जानने के बाद कह देते हैं हम तो दीक्षा ही नहीं देते। लोग मोक्ष या मुक्ति के उद्देश्य से दीक्षा लेने वाले नहीं मिलते अपितु स्वार्थवश दीक्षा लेने वाले मिलते है 99 प्रतिशत लोगों में श्रद्धा -विश्वास नहीं होता यह इस बात से प्रमाणित होता है की अधिकतर हमारे पास आने वाले कहते हैं की आजकल सही गुरु नहीं मिलते, सब स्वार्थी हैं, गलत हैं साथ ही अक्सर कहते हैं की उन्होंने इनसे यह मंत्र लिया उनसे वह मंत्र लिया या उन्होंने भगवान् को ही गुरु मान साधना की है। यह सब कुछ अश्रद्धा और अविश्वास के परिचायक हैं जो आगे भी जारी रहेंगे।

           ध्यान दीजिये गुरु कभी पैसे नहीं मांगता और गुरु को श्रद्धा से दक्षिणा दी जाती है। दीक्षा समय गुरु को वस्त्र फल -फूल और श्रद्धा अनुसार दक्षिणा दी जाती है। गुरु कभी मांग नहीं करता। दीक्षा सदैव एकांत में और अकेले दी जाती है और मंत्र किसी भी दुसरे को नहीं पाता चलना चाहिए ,चाहे वह माँ -पिता ,भाई -बहन -पत्नी -पत्नी अथवा पुत्र -पुत्री ही क्यों न हों गुरु बनाते के पहले खूब अच्छे से तलाश करें ,और सबसे पहले अपना मार्ग चुनें। आप किस मार्ग पर चल सकते हैं ,आपका लक्ष्य क्या है ,आपकी क्षमता क्या है। ऐसा कभी न करें की आप अत्यधिक सात्विक बुद्धि हों और आप तंत्र का वाम मार्गी गुरु बना लें या आपका लक्ष्य शक्ति साधना है और आप किसी वैदिक वैष्णव को गुरु बना लें। दोनों ही स्थितियों में आपको आपका गुरु वह रास्ता नहीं दिखा पायेगा जो आप चाहते हैं ,अंततः आपका लक्ष्य भटकेगा और आपमें अविश्वास उत्पन्न होगा ,फिर आपका पतन शुरू हो जाएगा क्योंकि एक गुरु पर अविश्वास आपको दूसरा गुरु खोजने को प्रेरित करेगा और क्रमशः फिर तीसरा आप कभी श्रद्धा से नहीं झुक पायेंगे।

        एक बात और बहुत जरुरी है की हमेशा गुरु ऐसा बनाएं जिससे आप जब चाहें मिल सकें और जो आपका समय समय पर मार्गदर्शन कर सके। आँख बंदकर भीड़ देखकर या बड़ा नाम सुनकर आप कभी गुरु न बनाएं क्योंकि साधना और तंत्र आदि का लक्ष्य अथवा कुंडलिनी आदि जहाँ तकनीक चाहिए वहां समय समय पर गुरु की आवश्यकता पड़ती है। हाँ आप मात्र गुरु मंत्र लेकर जीवन भर चुपचाप जप करना चाहते हैं तो किसी को भी गुरु बना लें कोई दिक्कत नहीं। गुरु बनाने का लक्ष्य निश्चित कर गुरु तलाश कर वही पर अपनी श्रद्धा बनाये रखें और प्रयास रत रहे ,जरुरी नहीं की तत्काल कृपा हो ही जाए ,आप लगे रहेंगे तो आज नहीं तो कल वह आपको स्वीकार ही लेंगे। 

भ्रम-आडम्बर-प्रचार-दिखावा-चमत्कार-सिद्धि के चक्कर में कभी न पड़ें ,यह आपको भटकाकर लक्ष्य मुश्किल कर सकते हैं। सिद्धि आदि तो अपने आप मिल जाती है और यह तो रास्ते के रोड़े जैसे हैं जहाँ आप चलते रहते हैं और यह मिलते रहते हैं। यह कुछ वैसा ही होता है की आप तैयारी IAS की कर रहे हों तो आप प्रथम श्रेणी अधिकारी तो कभी भी बन जायेंगे और द्वितीय -तृतीय श्रेणी कर्मचारी तो आप इच्छा मात्र से बन जायेंगे।
       यहाँ भी कुछ ऐसा ही है ,जब आप लक्ष्य मोक्ष या मुक्ति का बनाते हैं तो सीधा अर्थ है कि या तो आपका कोई चक्र जागेगा या कुंडलिनी जागेगी ,भले आप शक्ति साधना करें या कुंडलिनी साधना करें। शक्ति सिद्ध तो चक्र जागरण और महाविद्या सिद्ध ,तो अब जब ब्रह्माण्ड की कोई सर्वोच्च शक्ति ही अनुकूल तो छोटी छोटी सिद्धियाँ या शक्तियाँ तो जब चाहेंगे मिल जायेंगी या यों कहें की इनकी तो जरूरत ही नहीं पड़ेगी आप खुद को योग्य बनाएं बजाय गुरु की योग्यता देखने के। अपने को ऐसा करें की खुद गुरु आपको अपना शिष्य बनाने को आ जाए या वह आपको स्वीकार कर ले। एक बात हमेशा दिमाग में रखें कभी भी गुरु के प्रति बहुत तार्किक न हों ,क्योकि बहुत सी ऐसी चीजें है जो आप समझ नहीं सकते और गुरु आपको समय से पहले समझा नहीं सकता ,अतः केवल विश्वास पर रहें ,अति तर्क आपमें अश्रद्धा उत्पन्न कर सकता है ,जबकि आप गलत भी हो सकते हैं ,क्योकि ऊर्जा संरचना और प्रकृति का विज्ञान गुरु ही समझ सकता है जब तक वह आपको बताता नही। अतः बेवजह तर्क से दूर रहें। गुरु पर किया गया विश्वास अंततः आपको सफल अवश्य बना देगा।

गुरुपूर्णिमा की सभी को शुभकामनाएं।


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santanukumar padhy

nice explain


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यस्मिन् जीवति जीवन्ति बहव: स तु जीवति | काकोऽपि किं न कुरूते चञ्च्वा स्वोदरपूरणम् || If the 'living' of a person results in 'living' of many other persons, only then consider that person to have really 'lived'. Look even the crow fill it's own stomach by it's beak!! (There is nothing great in working for our own survival) I am not finding any proper adjective to describe how good this suBAshit is! The suBAshitkAr has hit at very basic question. What are all the humans doing ultimately? Working to feed themselves (and their family). So even a bird like crow does this! Infact there need not be any more explanation to tell what this suBAshit implies! Just the suBAshit is sufficient!! *जिसके जीने से कई लोग जीते हैं, वह जीया कहलाता है, अन्यथा क्या कौआ भी चोंच से अपना पेट नहीं भरता* ? *अर्थात- व्यक्ति का जीवन तभी सार्थक है जब उसके जीवन से अन्य लोगों को भी अपने जीवन का आधार मिल सके। अन्यथा तो कौवा भी भी अपना उदर पोषण करके जीवन पूर्ण कर ही लेता है।* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।

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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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