कब होगी आपकी शादी, क्यों हो रही है देर, जानिए क्या है कारण ...., when you will get marry

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Astro Rakesh Periwal 21st Jan 2019

कब होगी आपकी शादी, क्यों हो रही है देर, जानिए क्या है कारण ....

 

देर से शादी होने के परिणामस्वरूप कई बार उपयुक्त जीवन साथी नहीं मिल पाता। शादी में देर से अभिप्राय उस समय से है जब आप शादी करना चाहते हो और कहीं कोई बात बन नहीं पा रही है। 

 

पुराने समय में जब बाल विवाह होते थे तब बीस की उम्र को बहुत अधिक माना जाता था। 

 

कुंडली का सातवां घर बताता है कि आपकी शादी किस उम्र में होगी। शादी के लिए दिशा कौन सी उपयुक्त रहेगी जहां प्रयास करने पर जल्द ही शादी हो सके। 

 

शुक्र, बुध, गुरु और चन्द्र यह सब शुभ ग्रह हैं। इनमें से कोई एक यदि सातवें घर में बैठा हो तो शादी में आने वाली रुकावटें स्वत: समाप्त हो जाती हैं। 

 

 अधिक इंतजार नहीं करना पड़ता परन्तु यदि इन ग्रहों के साथ कोई अन्य ग्रह भी हो तो शादी में व्यवधान अवश्य आता है। राहू, मंगल, शनि, सूर्य यह सब अशुभ ग्रह हैं | 

 

इनका सातवें घर से किसी भी प्रकार का संबंध शादी या दाम्पत्य के लिए शुभ नहीं होगा। 

 

20 से 25 वर्ष की उम्र में शादी

 

 बुध शीघ ही शादी करवाता है। सातवें घर में बुध हो तो शादी जल्दी होने के योग होते हैं। बीस वर्ष की उम्र में शादी होती है यदि बुध पर कोई किसी अन्य ग्रह का प्रभाव न हो। 

 

बुध यदि सातवें घर में हो तो सूर्य भी एक स्थान पीछे या आगे होगा या फिर बुध के साथ सूर्य के होने की संभावना रहती है |

 

 सूर्य साथ हो तो दो साल का विलम्ब शादी में अवश्य होगा। इस तरह उम्र 22 में शादी का योग बनता है। यदि सूर्य के अंश क्षीण हों तो शादी केवल 20 से 21 वर्ष की उम्र में हो जाती है।

 

 अभिप्राय यह है कि जब बुध सातवें घर में हो तब 20 से 25 की उम्र में शादी का योग बनता है।  

 

 25 से 27 की उम्र में शादी 

 

यदि शुक्र, गुरु या चन्द्र आपकी कुंडली के सातवें घर में हैं तो 24- 25  की उम्र में शादी होने की प्रबल संभावना रहती है। 

 

गुरु सातवें घर में हो तो शादी पच्चीस की उम्र में होती है। गुरु पर सूर्य या मंगल का प्रभाव हो तो शादी में एक साल की देर समझें। राहू या शनि का प्रभाव हो तो दो साल की देर यानी 27 साल की उम्र में शादी होती है। 

 

शुक्र सातवें हो और शुक्र पर मंगल, सूर्य का प्रभाव हो तो शादी में दो साल की देर अवश्यम्भावी है। शनि का प्रभाव होने पर एक साल यानी छब्बीस साल की उम्र में और यदि राहू का प्रभाव शुक्र पर हो तो शादी में दो साल का विलम्ब होता है। 

 

चन्द्र सातवें घर में हो और चन्द्र पर मंगल, सूर्य में से किसी एक का प्रभाव हो तो शादी 26 साल की उम्र में होने का योग होगा।

 

 शनि का प्रभाव मंगल पर हो तो शादी में तीन साल का विलम्ब होता है। राहू का प्रभाव होने पर 27 वर्ष की उम्र में काफी विघ्नों के बाद शादी संपन्न होती है। 

 

कुंडली के सातवें घर में यदि सूर्य हो और उस पर किसी अशुभ ग्रह का प्रभाव न हो तो 27 वर्ष की उम्र में शादी का योग बनता है। शुभ ग्रह सूर्य के साथ हों तो विवाह में इतनी देर नहीं होती। 

 

28 से 32 वर्ष की उम्र में शादी 

 

मंगल, राहू केतु में से कोई एक यदि सातवें घर में हो तो शादी में काफी देर हो सकती है। जितने अशुभ ग्रह सातवें घर में होंगे शादी में देर उतनी ही अधिक होगी। मंगल सातवें घर में 27 वर्ष की उम्र से पहले शादी नहीं होने देता। 

 

राहू यहां होने पर आसानी से विवाह नहीं हो सकता। बात पक्की होने के बावजूद रिश्ते टूट जाते हैं। केतु सातवें घर में होने पर गुप्त शत्रुओं की वजह से शादी में अडचनें पैदा करता है। 

 

शनि सातवें हो तो जीवन साथी समझदार और विश्वासपात्र होता है। सातवें घर में शनि योगकारक होता है फिर भी शादी में देर होती है। शनि सातवें हो तो अधिकतर मामलों में शादी तीस वर्ष की उम्र के बाद ही होती है। 

 

32 से 40 वर्ष की उम्र में शादी

 

शादी में इतनी देर तब होती है जब एक से अधिक अशुभ ग्रहों का प्रभाव सातवें घर पर हो। शनि, मंगल, शनि राहू, मंगल राहू या शनि सूर्य या सूर्य मंगल, सूर्य राहू एक साथ सातवें या आठवें घर में हों तो विवाह में बहुत अधिक देरी होने की संभावना रहती है।

 

 हालांकि ग्रहों की राशि और बलाबल पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है परन्तु कुछ भी हो इन ग्रहों का सातवें घर में होने से शादी जल्दी होने की कोई संभावना नहीं होती। 

 

शादी में देर के लिए जो ऊपर नियम दिए गए हैं उनमे अधिक सूक्ष्म गणना की आवश्यकता जरूर है परन्तु मोटे तौर पर ये नियम अत्यंत व्यावहारिक सिद्ध होते हैं।

जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:-

 

1. सप्तमेश की दशा - अन्तर्दशा में विवाह —

जब कुण्डली के योग विवाह की संभावनाएं बना रहे हों, तथा व्यक्ति की ग्रह दशा में सप्तमेश का संबन्ध शुक्र से हो तों इस अवधि में विवाह होता है. इसके अलावा जब सप्तमेश जब द्वितीयेश के साथ ग्रह दशा में संबन्ध बना रहे हों उस स्थिति में भी विवाह होने के योग बनते है.

 

2. सप्तमेश में नवमेश की दशा - अन्तर्द्शा में विवाह —

ग्रह दशा का संबन्ध जब सप्तमेश व नवमेश का आ रहा हों तथा ये दोनों जन्म कुण्डली में पंचमेश से भी संबन्ध बनाते हों तो इस ग्रह दशा में प्रेम विवाह होने की संभावनाएं बनती है.

 

3. सप्तम भाव में स्थित ग्रहों की दशा में विवाह —

सप्तम भाव में जो ग्रह स्थित हो या उनसे पूर्ण दृष्टि संबन्ध बना रहे हों, उन सभी ग्रहों की दशा – अन्तर्दशा में विवाह हो सकता है. इसके अलावा निम्न योगों में विवाह होने की संभावनाएं बनती है....

 

(क) सप्तम भाव में स्थित ग्रह, सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर शुभ भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह संबन्धित ग्रह दशा की आरम्भ की अवधि में विवाह होने की संभावनाएं बनाती है. या

 

(ख) शुक्र, सप्तम भाव में स्थित ग्रह या सप्तमेश जब शुभ ग्रह होकर अशुभ भाव या अशुभ ग्रह की राशि में स्थित होने पर अपनी दशा- अन्तर्दशा के मध्य भाग में विवाह की संभावनाएं बनाता है.

 

(ग) इसके अतिरिक्त जब अशुभ ग्रह बली होकर सप्तम भाव में स्थित हों या स्वयं सप्तमेश हों तो इस ग्रह की दशा के अन्तिम भाग में विवाह संभावित होता है.

 

4. शुक्र का ग्रह दशा से सम्बन्ध होने पर विवाह —

जब विवाह कारक ग्रह शुक्र नैसर्गिक रुप से शुभ हों, शुभ राशि, शुभ ग्रह से युक्त, द्र्ष्ट हों तो गोचर में शनि, गुरु से सम्बन्ध बनाने पर अपनी दशा - अन्तर्दशा में विवाह होने का संकेत करता है।

 

5. सप्तमेश के मित्रों की ग्रह दशा में विवाह —

जब किसी व्यक्ति कि विवाह योग्य आयु हों तथा महादशा का स्वामी सप्तमेश का मित्र हों, शुभ ग्रह हों व साथ ही साथ सप्तमेश या शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों, तो इस महाद्शा में व्यक्ति के विवाह होने के योग बनते है.

 

6. सप्तम व सप्तमेश से दृ्ष्ट ग्रहों की दशा में विवाह —

सप्तम भाव को क्योकि विवाह का भाव कहा गया है. सप्तमेश इस भाव का स्वामी होता है. इसलिये जो ग्रह बली होकर इन सप्तम भाव , सप्तमेश से दृ्ष्टि संबन्ध बनाते है, उन ग्रहों की दशा अवधि में विवाह की संभावनाएं बनती है

 

7. लग्नेश व सप्तमेश की दशा में विवाह —

लग्नेश की दशा में सप्तमेश की अन्तर्दशा में भी विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

 

8. शुक्र की शुभ स्थिति —

किसी व्यक्ति की कुण्डली में जब शुक्र शुभ ग्रह की राशि तथा शुभ भाव (केन्द्र, त्रिकोण) में स्थित हों, तो शुक्र का संबन्ध अन्तर्दशा या प्रत्यन्तर दशा से आने पर विवाह हो सकता है. कुण्डली में शुक्र पर जितना कम पाप प्रभाव कम होता है. वैवाहिक जीवन के सुख में उतनी ही अधिक वृ्द्धि होती है

 

9. शुक्र से युति करने वाले ग्रहों की दशा में विवाह —

शुक्र से युति करने वाले सभी ग्रह, सप्तमेश का मित्र, अथवा प्रत्येक वह ग्रह जो बली हों, तथा इनमें से किसी के साथ द्रष्टि संबन्ध बना रहा हों, उन सभी ग्रहों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है।

 

10. शुक्र का नक्षत्रपति की दशा में विवाह —

जन्म कुण्डली में शुक्र जिस ग्रह के नक्षत्र में स्थित हों, उस ग्रह की दशा अवधि में विवाह होने की संभावनाएँ बनती है।


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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