काशी-मोक्ष-निर्णय
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काशी-मोक्ष-निर्णय
जो मनुष्य काशीवास के नियमों का पालन करते हुए काशीवास करते हैं , वे मुक्त हो जाते हैं । क्योंकि अन्य स्थानों में किया हुआ पाप तीर्थों में छूटता हैं , तीर्थों में किया गया पाप सात में से छः मुक्ति-पुरियों 【अयोध्या, मथुरा, काँची, हरिद्वार, उज्जैन तथा द्वारिका】 में छूट जाते हैं , किन्तु इन छः पुरियों में किया हुआ पाप भी काशी में छूट जाता है।
काशी में किया हुआ पाप कहीं भी, किसी भी उपाय से नहीं छूटता । अतः काशी-वास करते हुए जो पाप करते हैं , उनको भैरवी यातना भोगनी पड़ती है । वह थोड़े ही दिनों की है , किन्तु यम-यातना से भयंकर है । उस यातना को भोगने के बाद काशी में जन्म लेकर मुक्त होते हैं ।
काशी में आत्म-हत्या करने वालों का कल्याण नहीं होता , परन्तु जो केदार-खण्ड में शरीर त्यागते हैं , उन पापियों को मरने के बाद भैरवी-यातना भी प्राप्त नहीं होती है ।
भाव यह है कि काशी में मरने वाला चाहे किसी भी देवता का भक्त हो , हिन्दू , मुसलमान , सिक्ख , ईसाई , यहूदी , पारसी , जैन , बौद्ध , आस्तिक , नास्तिक --- कोई भी हो ; वह कल्याण चाहता हो या न चाहता हो ; काशी-महक्षेत्र में शंकर जी ने कल्याण-क्षेत्र खोल रखा है , जबर्दस्ती कल्याण किया जाता है ।
मनुष्य ही नहीं ! पशु- पक्षी- कीट- पतंग- मछली- कछुआ- लता- औषधि- वनस्पति ------ आदि भी सभी काशी में तीनों शरीरों को ज्ञानरूपी अग्नि से भस्म करके मुक्ति पाते हैं ।
इसीलिए काशी का दूसरा नाम महाश्मशान है । श्मशान में जीव का स्थूल-शरीर नष्ट होता है , परन्तु काशी में तीनों शरीर नष्ट होने के कारण इसे महाश्मशान कहते हैं।
"काशी-रहस्य" नामक ग्रन्थ में तथा "शैवागम" में कहा है कि काशी में मरने वाले यति के पास त्रिशूल, डमरू धारी शंकर जी आते हैं । जब उसकी मूर्च्छा दूर होती है , तब उसके कान में तारक-मन्त्र सुनाते हैं ।
मूर्च्छा-काल में वह भगवान् के रूप को देखता है, होश में आने पर वे लुप्त हो जाते हैं । अतः जो बुद्धिमान हैं , उनकी बुद्धिमानी इसी में है कि वे काशी का सेवन करें ।
"काशी-रहस्य" में व्यास जी कहते हैं बड़ा सा पत्थर उठाकर अपने दोनों पैरों पर मारकर चाहे उन्हें तोड़ दें , किन्तु काशी के बाहर न जाये । काशी का त्याग करने वाला महामूर्ख है ।
जो काशी-वास करते हुए भी काशी-वास के नियमों का पालन नहीं करता , उसके लिए काशी मगहर के समान तथा शीतल गङ्गा भी अंगार-वाहिनी है ।
पूर्व-पूण्य के बिना काशी-वास नहीं प्राप्त होता । कई लोग काशी-वास करना चाहते हैं किन्तु नहीं कर पाते । इच्छा होने पर भी काशी के कोतवाल कालभैरव के दूत सम्भ्रम-विभ्रम काशी छुड़ा देते हैं।