गुरुमंत्र में समाई होती है विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ*

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Ravinder Pareek 04th Jun 2021

*गुरुमंत्र में समाई होती है विभिन्न प्रकार की शक्तियाँ*

गुरु मंत्र बहुत शक्तिशाली मंत्र होता है इसमें बहुत शक्ति समाए होती है । जैसे जैसे साधक गुरु मंत्र का नियमित जाप करता है उसे भिविन्न प्रकार की शक्तियों का आभास होना शुरू हो जाता है ओर उसका जीवन सफल होता है आज मै आपको गुरु मंत्र की शक्तियों के बारे में बताऊंगी। उम्मीद है आपको पोस्ट पसंद आएगा ।

*रक्षण शक्तिः -*

ॐ सहित मंत्र का जप करते हैं तो वह हमारे जप तथा पुण्य की रक्षा करता है।
किसी नामदान के लिए हुए साधक पर यदि कोई आपदा आनेवाली है,कोई दुर्घटना घटने वाली है तो मंत्र भगवान उस आपदा को शूली में से काँटा कर देते हैं। साधक का बचाव कर देते हैं। ऐसा बचाव तो एक नहीं,मेरे हजारों साधकों के जीवन में चमत्कारिक ढंग से महसूस होता है। गाड़ी उलट गयी,तीन गुलाटी खा गयी किंतु .....हमको खरोंच तक नहीं आयी.... ! हमारी नौकरी छूट गयी थी,ऐसा हो गया था, वैसा हो गया था किंतु बाद में उसी साहब ने हमको बुलाकर हमसे माफी माँगी और हमारी पुनर्नियुक्ति कर दी। पदोन्नति भी कर दी... इस प्रकार की न जाने कैसी-कैसी अनुभूतियाँ लोगों को होती हैं। ये अनुभूतियाँ समर्थ भगवान की सामर्थ्यता प्रकट करती हैं।

*गति शक्तिः -*

जिस योग में,ज्ञान में,ध्यान में आप फिसल गये थे, उदासीन हो गये ,किंकर्तव्यविमूढ़ हो गये थे उसमें मंत्र दीक्षा लेने के बाद गति आने लगती है। मंत्र दीक्षा के बाद आपके अंदर गति शक्ति कार्य में आपको मदद करने लगती है।

*कांति शक्तिः-*

मंत्रजाप से जापक के कुकर्मों के संस्कार नष्ट होने लगते हैं और उसका चित्त उज्जवल होने लगता है। उसकी आभा उज्जवल होने लगती है, उसकी मति-गति उज्जवल होने लगती है और उसके व्यवहार में उज्जवलता आने लगती है।इसका मतलब ऐसा नहीं है कि आज मंत्र लिया और कल सब छूमंतर हो जायेगा... धीरे-धीरे होगा। एक दिन में कोई स्नातक नहीं होता, एक दिन में कोई एम.ए. नहीं पढ़ लेता, ऐसे ही एक दिन में सब छूमंतर नहीं हो जाता। मंत्र लेकर ज्यों-ज्यों आप श्रद्धा से, एकाग्रता से और पवित्रता से जप करते जायेंगे त्यों-त्यों विशेष लाभ होता जायेगा।

*प्रीति शक्तिः-*

ज्यों-ज्यों आप मंत्र जपते जायेंगे त्यों-त्यों मंत्र के देवता के प्रति,मंत्र के ऋषि,मंत्र के सामर्थ्य के प्रति आपकी प्रीति बढ़ती जायेगी।

*तृप्ति शक्तिः-*
ज्यों-ज्यों आप मंत्र जपते जायेंगे त्यों-त्यों आपकी अंतरात्मा में तृप्ति बढ़ती जायेगी, संतोष बढ़ता जायेगा। जिन्होंने नियम लिया है और जिस दिन वे मंत्र नहीं जपते,उनका वह दिन कुछ ऐसा ही जाता है। जिस दिन वे मंत्र जपते हैं,
उस दिन उन्हें अच्छी तृप्ति और संतोष होता है।जिनको गुरुमंत्र सिद्ध हो गया है उनकी वाणी में सामर्थ्य आ जाता है। नेता भाषण करता है तो लोग इतने तृप्त नहीं होते, किंतु जिनका गुरुमंत्र सिद्ध हो गया है ऐसे महापुरुष बोलते हैं तो लोग बड़े तृप्त हो जाते हैं ।

*अवगम शक्तिः-*

मंत्रजाप से दूसरों के मनोभावों को जानने की शक्ति विकसित हो जाती है।
दूसरे के मनोभावों को आप अंतर्यामी बनकर जान सकते हो। कोई व्यक्ति कौन सा भाव लेकर आया है ? दो साल पहले उसका क्या हुआ था या अभी उसका क्या हुआ है ?उसकी तबीयत कैसी है? लोगों को आश्चर्य होगा किंतु आप तुरंत बोल दोगे कि 'आपको छाती में जरा दर्द है... आपको रात्रि में ऐसा स्वप्न आता है....कोई कहे कि 'महाराज ! आप तो अंतर्यामी हैं।' वास्तव में यह भगवत्शक्ति के विकास की बात है।

*प्रवेश अवति शक्तिः-*

अर्थात् सबके अंतरतम की चेतना के साथ एकाकार होने की शक्ति। अंतःकरण के सर्व भावों को तथा पूर्वजीवन के भावों को और भविष्य की यात्रा के भावों को जानने की शक्ति कई योगियों में होती है। वे कभी-कभार मौज में आ जायें तो बता सकते हैं कि आपकी यह गति थी,आप यहाँ थे,फलाने जन्म में ऐसे थे,अभी ऐसे हैं। जैसे दीर्घतपा के पुत्र पावन को माता-पिता की मृत्यु पर उनके लिए शोक करते देखकर उसके बड़े भाई पुण्यक ने उसे उसके पूर्वजन्मों के बारे में बताया था। यह कथा योगवाशिष्ठ महारामायण में आती है।

*श्रवण शक्तिः-*

मंत्रजाप के प्रभाव से जापक सूक्ष्मतम,गुप्ततम शब्दों का श्रोता बन जाता है।
जैसे,शुकदेवजी महाराज ने जब परीक्षित के लिए सत्संग शुरु किया तो देवता आये।
शुकदेवजी ने उन देवताओं से बात की। माँ आनंदमयी का भी देवलोक के साथ सीधा
सम्बन्ध था। और भी कई संतो का होता है। दूर देश से भक्त पुकारता है कि गुरुजी !
मेरी रक्षा करो... तो गुरुदेव तक उसकी पुकार पहुँच जाती है !

*स्वाम्यर्थ शक्तिः-*

अर्थात् नियामक और शासन का सामर्थ्य। नियामक और शासक शक्ति का सामर्थ्य विकसित करता है प्रणव का जाप।

*याचन शक्तिः-*

अर्थात् याचना की लक्ष्यपूर्ति का सामर्थ्य देनेवाला मंत्र।
क्रिया शक्तिः-
अर्थात् निरन्तर क्रियारत रहने की क्षमता, क्रियारत रहनेवाली चेतना
का विकास।

*इच्छित अवति शक्तिः-*

अर्थात् वह ॐ स्वरूप परब्रह्म परमात्मा स्वयं तो निष्काम है किंतु उसका जप करने वाले में सामने वाले व्यक्ति का मनोरथ पूरा करने का सामर्थ्य आ जाता है।
इसीलिए संतों के चरणों में लोग मत्था टेकते हैं, कतार लगाते हैं,प्रसाद धरते हैं,आशीर्वाद माँगते हैं आदि आदि।

*इच्छित अवन्ति शक्ति:-*
अर्थात् निष्काम परमात्मा स्वयं शुभेच्छा का
प्रकाशक बन जाता है।

*दीप्ति शक्तिः-*

अर्थात् ओंकार जपने वाले के हृदय में ज्ञान का प्रकाश बढ़ जायेगा।
उसकी दीप्ति शक्ति विकसित हो जायेगी।

*वाप्ति शक्तिः-*

अणु-अणु में जो चेतना व्याप रही है उस चैतन्यस्वरूप ब्रह्म के साथ आपकी
एकाकारता हो जायेगी।

*आलिंगन शक्तिः-*

अर्थात् अपनापन विकसित करने की शक्ति। ओंकार के जप से पराये भी अपने होने लगेंगे तो अपनों की तो बात ही क्या ?जिनके पास जप-तप की कमाई नहीं है उनको
तो घरवाले भी अपना नहीं मानते,किंतु जिनके पास ओंकार के जप की कमाई है उनको घरवाले, समाजवाले,गाँववाले,नगरवाले,राज्य वाले,राष्ट्रवाले तो क्या विश्ववाले भी अपना मानकर आनंद लेने से इनकार नहीं करते।

*हिंसा शक्तिः-*

ओंकार का जप करने वाला हिंसक बन जायेगा ?हाँ,हिँसक बन जायेगा किंतु कैसा हिंसक बनेगा ?दुष्ट विचारों का दमन करने वाला बन जायेगा और दुष्टवृत्ति के लोगों के दबाव में नहीं आयेगा। अर्थात् उसके अन्दर अज्ञान को और दुष्ट सरकारों
को मार भगाने का प्रभाव विकसित हो जायेगा।

*दान शक्तिः-*

अर्थात् वह पुष्टि और वृद्धि का दाता बन जायेगा। फिर वह माँगनेवाला नहीं रहेगा,देने की शक्तिवाला बन जायेगा। वह देवी-देवता से,भगवान से माँगेगा नहीं,
स्वयं देने लगेगा।

*भोग शक्तिः-*

प्रलयकाल स्थूल जगत को अपने में लीन करता है, ऐसे ही तमाम दुःखों को, चिंताओं को,भयों को अपने में लीन करने का सामर्थ्य होता है प्रणव का जप करने वालों में। जैसे दरिया में सब लीन हो जाता है, ऐसे ही उसके चित्त में सब लीन हो जायेगा और वह अपनी ही लहरों में फहराता रहेगा,मस्त रहेगा... नहीं तो एक-दो दुकान,एक-दो कारखाने वाले को भी कभी-कभी चिंता में चूर होना पड़ता है।
किंतु इस प्रकार की साधना जिसने की है उसकी एक दुकान या कारखाना तो क्या,एक आश्रम या समिति तो क्या,1100,1200 या 1500 ही क्यों न हों,सब उत्तम प्रकार से चलती हैं !उसके लिए तो नित्य नवीन रस, नित्य नवीन नंद,नित्य नवीन मौज रहती है।शादी अर्थात् खुशी ! वह ऐसा मस्त फकीर बन जायेगा।

*वृद्धि शक्तिः-*

अर्थात् प्रकृतिवर्धक, संरक्षक शक्ति। गुरुदेव का जप करने वाले में प्रकृतिवर्धक और
सरंक्षक सामर्थ्य आ जाता है।
जय मां भगवती सब का कल्याण करो

 रविन्द्र पारीक (वास्तुकाऱ एवं ज्योतिर्विद)


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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