क्या आपकी कुंडली में धन प्राप्ति योग है?

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Astro Rakesh Periwal 31st Aug 2021

धन की चाह सबकी होती है लेकिन धन केवल मात्र हमारे चाहने भर से नहीं मिल जाता, इसके लिए कुंडली में धन योग का होना भी आवश्यक है। कुंडली में कैसे धन योग है या नहीं एवं धन प्राप्ति के टोटके जानें इस लेख से।

क्या आपकी कुंडली में धन प्राप्ति योग है?
कुंडली का दूसरा भाव धन स्थान कहलाता है और इससे धन, आभूषण, पैतृक धन, बचत, कुटुंब, वाणी इत्यादि का विचार किया जाता है। कुंडली का ग्यारहवां भाव लाभ स्थान कहलाता है। इससे लाभ, आमदनी और उसका प्रकार, स्वर्ण आभूषण, वस्त्र और सवारी इत्यादि का विचार होता है। इसके अतिरिक्त केंद्र स्थानों को विष्णु स्थान (सुख स्थान) और त्रिकोण स्थानों को लक्ष्मी स्थान (धन स्थान) कहते हैं। नवमेश और पंचमेश (नवम से नवम) दोनों धनकारक होते हैं। जो भी ग्रह इनके साथ होते हैं, वे अपनी दशा में धन प्रदान करते हैं, इसमें कोई संशय नहीं है। ग्रहों में बृहस्पति मूलत: धन का कारक है और शुक्र उसके बाद दूसरे स्थान पर है। यह लोक सुखकारक होता है। इनका धन और लाभ भाव में युति रखना, या परस्पर दृष्ट होना जातक को अतुल धन देता है। गुरु-मंगल और चंद्र-मंगल की आपस में युति और दृष्टि भी धन योग बनाती है।

बृहत पराशर होरा शास्त्र के अनुसार भी यदि धनेश लाभ स्थान में हो और लाभेश धन भाव में हो, या धनेश और लाभेश दोनों एक साथ केंद्र, या त्रिकोण स्थान में स्थित हों, तो जातक धनवान होता है। यदि केवल धनेश और लाभेश का विनिमय हो, या दोनों ही केंद्र स्थान में हों, तो भी जातक बहुत धनी होता है। इसी प्रकार यदि धनेश पंचम भाव (त्रिकोण) में हो, तो जातक धनी होता है। अगर गुरु, शुक्र और बुध में से कोई एक ग्रह उच्च स्थान में हो और दूसरे शुभ ग्रह केंद्र में हों तो जातक राजा तुल्य होता है। यदि कुंडली में एक भी ग्रह उच्च राशि में हो और उसको मित्र ग्रह देखते हों, तो ऐसा व्यक्ति राजा होता है। यदि ऐसा उच्च ग्रह मित्र ग्रह से युक्त हो, तो जातक धनी होता है। उत्तराकालामृत के अनुसार द्वितीय, पंचम, एकादश तथा नवम भावों के स्वामी बलवान हों और इनमें से कुछ, अथवा सभी की परस्पर तीन प्रकार से युति, दृष्टि, अथवा स्थान परिवर्तन द्वारा संबंध हों, तो जातक लखपति बनते हैं। परंतु इनके साथ छठे, आठवें, अथवा बारहवें भाव के स्वामियों का भी संबंध हो जाए, तो हानि तथा ऋण योग बन जाता है। ऐसी स्थिति में 2,5,9,11 भावों के स्वामियों की दशा में शत्रु से भय होता है। यदि धनेश सुख भाव चतुर्थ केंद्र में स्थित हो, तो धनदायक होता है। अगर वह गुरु से संयुक्त हो, या सुख भाव में धनेश उच्च राशि का हो, तो जातक राजा तुल्य ऐश्वर्यवान होता है। जातक तत्त्व के अनुसार लग्नेश, एकादशेश और धनेश एक साथ केंद्र, या त्रिकोण में हों और शुभ ग्रहों से दृष्ट हों एवं धनेश काल बली हो, तो भी मनुष्य स्वार्जित धन का स्वामी होता है। धनेश, लाभेश और नवमेश यदि बलवान हो कर केंद्र स्थानों में हों, तो व्यक्ति तीन लाख स्वर्ण मुद्राओं का स्वामी होता है। इन सब स्रोतों का सवार्थचिंतामणि ने इस प्रकार एकीकरण किया है: यदि तृतीयेश, चतुर्थेेश, पंचमेश, षष्ठेश, सप्तमेश बलवान हों और धनकारक भाव तथा उनके भावेशों से संबंध रखते हों, तो जातक को भाई, माता, पुत्र, शत्रु, पत्नी इत्यादि से धन प्राप्त होता है। इसके विपरीत यदि तृतीयेश इत्यादि कमजोर हों और दुष्ट ग्रह धन भावों को प्रभावित करते हों, तो उसे संबंधी द्वारा धन हानि होती है। 

।दूसरा भाव 'धन' स्थान, ग्यारहवा भाव 'लाभ' स्थान, केंद्र भाव विष्णु (सुख) स्थान तथा त्रिकोण भाव लक्ष्मी (धन) स्थान होते हैं। नवमेश और पंचमेश (नवम से नवम) दोनों धनकारक होते हैं। जो भी ग्रह इनके साथ होते हैं, वे अपनी दशा में धन प्रदान करते हैं। त्रिकोण और केंद्र के भावेशों की युक्ति, विनिमय, या परस्पर दृष्टि, राजयोग का निर्माण कर के, शुभ फलदायक होती हैं। केंद्र और त्रिकोण के स्वामियों का धनेश तथा लाभेश से संबंध अतुल धनकारक बन जाता है। बृहस्पति, शुक्र और बुध की केंद्र में बलवान स्थिति विशेष धनकारक होती है तथा एकादश भाव में सूर्य विशेष धनकारक होता है। द्वितीय भाव में सब पाप ग्रह हों, तो जातक दरिद्र होता है एवं द्वितीय में सब शुभ ग्रह धन की वृद्धि कराते हैं। सप्तम भाव से आजीविका द्वारा धन की प्राप्ति और दूसरी तरफ विवाह द्वारा ससुराल पक्ष से धन का योग दर्शाता है। विभिन्न प्रकार के योग- राजयोग, गजकेसरी योग, चक्रवर्ती योग आदि- धन की प्राप्ति का संकेत देते हैं। ग्रहों में बृहस्पति मूलत: धन का कारक है और शुक्र उसके बाद दूसरे स्थान पर है। गुरु-मंगल और चंद्र-मंगल की आपस में युति और दृष्टि भी धन योग बनाती है। कन्या राशि में राहु, शुक्र, मंगल, शनि चारों ग्रह हों, तो जातक कुबेर के समान धनी होता है। जन्म समय चंद्र मंगल के साथ हो, तो जातक के घर से लक्ष्मी कहीं नहीं जाती है। 

● कुंडली में सब ग्रह उच्च के, या स्वग्रही बनते हों, तो यह भी एक राजयोग है। ऐसे जातक प्रचुर धन-संपत्ति प्राप्त करते हैं। 

● लग्न में चंद्र-शनि, पंचम, या नवम स्थान में गुरु-सूर्य की युति, दशम स्थान में मंगल, यह भी एक राजयोग है। ऐसे जातक को धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं रहती है। 

● केंद्र के बलवान और शुभ ग्रह यदि उच्च के, या स्वग्रही हों, तो यह एक राजयोग है। ऐसे जातक राजा के समान धनी होता है। 

● पंच महाभूत योग, जैसे रूचक योग, भद्र योग, हंस योग, मालव्य योग, या शश योग वाले जातक विपुल धन-संपत्ति प्राप्त करते हैं। 

सामान्य धन योग: 
मूलत: बलवान लग्नेश, धनेश और लाभेश के आपसी संबंध जातक को धनी बनाते हैं। यदि लग्नेश धन भाव में हो, धनेश लाभ भाव में हो और लाभेश लग्न भाव में हो, तो जातक बहुत धनी होता है। धन का स्रोत: बृहत्पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार अगर तृतीयेश लग्न में स्थित हो, तो जातक अपने आप धन कमाता है। माता से धन प्राप्ति योग: यदि धन भाव का स्वामी चतुर्थेश से युक्त, या दृष्ट हो, तो जातक को अपनी माता की संपत्ति प्राप्त होती है। पिता से धन प्राप्ति योग: दशमेश और दशम स्थान के कारक ग्रह यदि बलवान धनेश से युक्त, या दृष्टि संबंध रखते हों, तो पिता से धन मिलता है। शत्रु से धन प्राप्ति: यदि धनेश षष्ठ भाव में स्थित हो और वहां शुभ ग्रह से युक्त हो, तो जातक को बैरी से भी धन प्राप्त होगा। धन की मात्रा: बृहत्पाराशर होरा शास्त्र के अनुसार यदि लाभेश धन भाव में हो और द्वितीयेश लग्न से केंद्र में स्थित हो एवं गुरु लाभ स्थान में स्थित हो, तो जातक अतुल धनवान होता है।

धन प्राप्ति का समय: यदि धनेश लाभ भाव में हो और लाभेश द्वितीय भाव में स्थित हो, तो जातक को विवाहोपरांत अतुल धन-संपत्ति मिलती है। यदि लाभेश लग्न में स्थित हो और लग्नेश लाभ स्थान में हो, तो जातक को 33वें वर्ष में धन का लाभ होता है। यह योग लाभेश पर भी लागू होता है, अर्थात् यदि लाभेश और धनेश एक साथ स्थित हों और उस राशि का अधिपति लग्न में बलवान हो कर स्थित हो, तो जातक जीवन के अंत में धनी होता है। पापी ग्रह भी लाभ भाव में धनकारक होते हैं। सर्वार्थ चिंतामणि के अनुसार यदि लाभेश केंद्र, या त्रिकोण स्थान में हो, या लाभ स्थान में पाप ग्रह स्थित हों, तो भी जातक बहुत धनी होता है।

स्वजनों से धन प्राप्ति:
● दशम स्थान में सूर्य-शुक्र, या सूर्य-राहु की युति हो, दशमेश चतुर्थ स्थान में हो, तो जातक को पिता के द्वारा धन की प्राप्ति होती है। 

●  चौथे स्थान में चंद्र-शुक्र की युति हो, चतुर्थ स्थान बलवान हो, तो जातक माता के द्वारा धन प्राप्त करता है। 

● तृतीयेश और धनेश की युति नवम स्थान में हो, या भाग्येश और धनेश की युति तीसरे स्थान में हो, तो जातक को भाई के द्वारा धन लाभ होता है। 

● चतुर्थेश तथा सप्तमेश का परिवर्तन योग हो, तो पत्नी, या ससुराल से धन लाभ होता है। भाग्येश का सप्तम स्थान में होना आवश्यक है।  

● जातक का जन्म लग्न कन्या हो और अष्टम स्थान में बुध, चंद्र तथा शनि की युति हो एवं सप्तम स्थान में शुक्र हो, तो जातक वर्ग को ससुराल से धन लाभ होता है। 

● पंचमेश और धनेश की युति पंचम स्थान में हो, या पंचमेश पर धनेश की दृष्टि हो, या दोनों उच्च के, स्वग्रही हों, तो पुत्र से धन लाभ होता है। 

● षष्ठेश की शुभ ग्रह के साथ युति हो, धनेश और भाग्येश की छठे स्थान में युति हो, तो जातक को ननिहाल से धन लाभ होता है। 

जातक का जन्म लग्न मिथुन हो एवं द्वितीयेश उच्च स्थान में हो, तो जातक को पैतृक धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है। 

● सप्तमेश और धनेश साथ-साथ हों तथा उन पर शुक्र की पूर्ण दृष्टि हो, तो जातक को ससुराल से धन लाभ होता है। 

● सप्तमेश शुक्र राशि में हो, या सप्तमेश और शुक्र की युति हो तथा सप्तमेश एवं भाग्येश का किसी प्रकार का शुभ संबंध हो, तो जातक को ससुराल से प्रचुर धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

कुंडली में धन प्राप्ति हेतु निम्न भाव महत्त्व के हैं:
प्रथम स्थान (लग्न)- जातक की कुंडली में प्रथम स्थान महत्त्व का है। बलवान एवं शुभ लग्नेश का धन स्थान, या धनेश से संबंध व्यक्ति को धन संबंधी शुभ फल देता है। 

द्वितीय स्थान (धन)- दूसरे स्थान से जातक की धन की मात्रा एवं धन के संचय के बारे में जानकारी मिलती है।

चतुर्थ स्थान- भूमि एवं वाहन से जातक को होने वाले धन लाभ एवं माता के द्वारा मिलने वाले धन के बारे में जानकारी इस स्थान से मिलती है। 

पंचम स्थान- लॉटरी, शेयर, सट्टा, नौकरी, उन्नति एवं संतान के द्वारा होने वाले धन लाभ के बारे में जानकारी इस स्थान से मिलती है। 

सप्तम स्थान- पत्नी, ससुराल, साझेदारी, व्यापार, यात्रा आदि से होने वाले धन लाभ के बारे में यहां से जानकारी मिलती है।

अष्टम स्थान- वारिस के रूप में, जमीन में गड़ा हुआ, या आकस्मिक प्राप्त होने वाला धन, गुप्त धन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। 

नवम स्थान (भाग्य स्थान)- शुभ एवं बलवान भाग्येश का धन स्थान, लाभ स्थान से संबंध जातक को धन संबंधी शुभ फल देता है। 

दशम स्थान (कर्म स्थान)- जातक को किस व्यवसाय से धन लाभ होगा, यह जानकारी मिलती है। पिता के द्वारा प्राप्त होने वाले धन की जानकारी भी यहां से मिलती है। 

एकादश स्थान: इसे लाभ स्थान भी कहते हैं। जातक की इच्छा पूर्ति, धन का संग्रह एवं धन की प्राप्ति के बारे में इस स्थान से जानकारी मिलती है।

राजयोग
● केंद्र के बलवान और शुभ ग्रह यदि उच्च के, या स्वग्रही हों, तो यह एक राजयोग है। ऐसे जातक राजा के समान धनी होता है। 

● जातक की कुंडली में सब ग्रह उच्च के, या स्वग्रही बनते हों, तो यह भी एक राजयोग है। ऐसे जातक प्रचुर धन-संपत्ति प्राप्त करते हैं। 

● लग्न में चंद्र-शनि, पंचम, या नवम स्थान में गुरु-सूर्य की युति, दशम स्थान में मंगल, यह भी एक राजयोग है। ऐसे जातक को धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं रहती है। 

● पंच महाभूत योग, जैसे रूचक योग, भद्र योग, हंस योग, मालव्य योग, या शश योग वाले जातक विपुल धन-संपत्ति प्राप्त करते हैं।  

जातक को कौन सी दिशा से धन लाभ होगा, यह जानकारी भी जातक की कुंडली से मिलती है। दिशा जानने हेतु जातक की कुंडली में दूसरे स्थान में जो ग्रह है, उस ग्रह की दिशा जातक को फायदेमंद रहेगी, जैसे सूर्य पूर्व दिशा से, शनि पश्चिम दिशा से, बुध उत्तर दिशा से, मंगल दक्षिण दिशा से, चंद्र वायव्य कोण से, राहु-केतु नैऋर्त्य कोण से, गुरु ईशान कोण से, शुक्र अग्नि कोण से धन लाभ करवाते हैं। ग्रह की तरह जातक के दूसरे स्थान में स्थित राशि भी जातक के धन लाभ से संबंधि जानकारी देती है, जैसे:

● मेष, सिंह, धनु राशि: पूर्व दिशा 

● वृषभ, कन्या, मकर: दक्षिण दिशा 

● मिथुन, तुला, कुंभ: पश्चिम दिशा 

● कर्क, वृश्चिक, मीन: उत्तर दिशा से धन लाभ देती हैं। 

धन प्राप्ति के सामान्य टोटके- जिस घर में नियमित रूप से अथवा प्रत्येक शुक्रवार को श्रीसूक्त अथवा श्री लक्ष्मी सूक्त का पाठ होता है वहां मां लक्ष्मी का स्थाई वास होता है  प्रत्येक सप्ताह घर में फर्श पर पोछा लगाते समय थोड़ा सा समुंदरी नमक मिला लिया करें ऐसा करने से घर में होने वाले झगड़े कम होते हैं? इसके अतिरिक्त सारी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।  प्रात: उठ कर गृह लक्ष्मी यदि मुख्य द्वार पर एक गिलास अथवा एक लोटा जल डाले तो मां लक्ष्मी के आने का मार्ग प्रशस्त होता है? यदि आप चाहतें हैं कि घर में सुख शांति बनी रहे तथा आप आर्थिक रूप से समर्थ रहें तो प्रत्येक अमावस्या को अपने घर की पूर्ण सफाई करवा दें? जितना भी फालतू सामान इकट्ïठा हुआ हो उसे कबाड़ी को बेच दें अथवा बाहर फेंक दें सफाई के बाद पांच अगरबत्ती घर के मंदिर में लगायें। शनिवार के दिन पीपल का एक पत्ता तोड़कर उसे गंगाजल से धोकर उसके ऊपर हल्दी तथा दही के घोल से अपने दाएं हाथ की अनामिका अंगुली से ह्रीं लिखें। इसके बाद इस पत्ते को धूप-दीप दिखाकर अपने बटुए में रख लें। प्रत्येक शनिवार को पूजा के साथ वह पत्ता बदलते रहें। यह उपाय करने से आपका बटुआ कभी धन से खाली नहीं होगा। पुराना पत्ता किसी पवित्र स्थान पर ही रखें। काली मिर्च के 5 दाने अपने सिर पर से 7 बार उतारकर 4 दाने चारों दिशाओं में फेंक दें तथा पांचवें दाने को आकाश की ओर उछाल दें। यह टोटका करने से आकस्मिक धन लाभ होगा। अचानक धन प्राप्ति के लिए सोमवार के दिन श्मशान में स्थित महादेव मंदिर जाकर दूध में शुद्ध शहद मिलाकर चढ़ाएं। अगर धन नहीं जुड़ रहा हो तो तिजोरी में लाल वस्त्र बिछाएं। तिजोरी में गुंजा के बीज रखने से भी धन की प्राप्ति होती है। जिस घर में प्रतिदिन श्रीसूक्त का पाठ होता है, वहां लक्ष्मी अवश्य निवास करती हैं।


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आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताआलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः | नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति || Laziness is verily the great enemy residing in our body. There is no friend like hard work, doing which one doesn’t decline. *मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |* हरि ॐ,प्रणाम, जय सीताराम।राम।

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