जन्म कुंडली में प्रथम भाव

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Astro Rakesh Periwal 22nd Jan 2019

 

प्रथम भाव

 

जन्म कुंडली में प्रथम भाव यानि लग्न का विशेष महत्व है। हिन्दू ज्योतिष शास्त्र की उत्पत्ति ऋग्वेद से हुई है, इसलिए इसे वैदिक ज्योतिष कहा गया है। भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं और हर भाव की अपनी विशेषताएँ और महत्व होता है। इनमें प्रथम भाव को इसलिए महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि यह मनुष्य के व्यक्तित्व, स्वभाव, आयु, यश, सुख और मान-सम्मान आदि बातों का बोध कराता है। प्रथम भाव को लग्न या तनु भाव भी कहा जाता है। हर व्यक्ति के जीवन का संपूर्ण दर्शन लग्न भाव पर निर्भर करता है।

 

लग्न का महत्व और विशेषताएँ

 

जब कोई भी व्यक्ति जन्म लेता है तो उस समय विशेष में आकाश में स्थित राशि,  नक्षत्र और ग्रहों की स्थिति के प्रभाव को ग्रहण करता है। दूसरे शब्दों में जन्म के समय पूर्वी क्षितिज पर जो राशि उदय होती है, वही व्यक्ति का लग्न बन जाता है। लग्न के निर्धारण के बाद ही कुंडली का निर्माण होता है। जिसमें ग्रहों की निश्चित भावों, राशि और नक्षत्रों में स्थिति का पता चलता है। इसलिए बिना लग्न के जन्म कुंडली की कल्पना नहीं की जा सकती है।

 

ज्योतिष में प्रथम भाव से क्या देखा जाता है?

 

 

प्रथम भाव का कारक सूर्य को कहा जाता है। इस भाव से व्यक्ति की शारीरिक संरचना, रुप, रंग, ज्ञान, स्वभाव, बाल्यावस्था और आयु आदि का विचार किया जाता है। प्रथम भाव के स्वामी को लग्नेश का कहा जाता है। लग्न भाव का स्वामी अगर क्रूर ग्रह भी हो तो, वह अच्छा फल देता है।

 

शारीरिक संरचना: प्रथम भाव से व्यक्ति की शारीरिक बनावट और कद-काठी के बारे में पता चलता है। यदि प्रथम भाव पर जलीय ग्रहों का प्रभाव अधिक होता है तो व्यक्ति मोटा होता है। वहीं अगर शुष्क ग्रहों और राशियों का संबंध लग्न पर अधिक रहता है तो जातक दुबला होता है।

स्वभाव: किसी भी व्यक्ति के स्वभाव को समझने के लिए लग्न का बहुत महत्व है। लग्न मनुष्य के विचारों की शक्ति को दर्शाता है। यदि चतुर्थ भाव, चतुर्थ भाव का स्वामी, चंद्रमा, लग्न व लग्न भाव के स्वामी पर शुभ ग्रहों का प्रभाव होता है तो व्यक्ति दयालु और सरल स्वभाव वाला होता है। वहीं इसके विपरीत अशुभ ग्रहों के प्रभाव से व्यक्ति क्रूर प्रवृत्ति का होता है।

आयु और स्वास्थ्य: प्रथम भाव व्यक्ति की आयु और सेहत को दर्शाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब लग्न, लग्न भाव के स्वामी के साथ-साथ सूर्य, चंद्रमा, शनि और तृतीय व अष्टम भाव और इनके स्वामी मजबूत हों तो, व्यक्ति को दीर्घायु एवं उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। वहीं यदि इन घटकों पर क्रूर ग्रहों का प्रभाव हो या कमजोर हों, तो यह स्थिति व्यक्ति की अल्पायु को दर्शाती है।

बाल्यकाल: प्रथम भाव से व्यक्ति के बचपन का बोध भी होता है। ज्योतिषीय गणनाओं के अनुसार यदि लग्न के साथ लग्न भाव के स्वामी और चंद्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव हो, तो व्यक्ति को बाल्यकाल में शारीरिक कष्ट उठाने पड़ते हैं। वहीं शुभ ग्रहों के प्रभाव से बाल्यावस्था अच्छे से व्यतीत होती है।

मान-सम्मान: प्रथम भाव मनुष्य के मान-सम्मान, सुख और यश को भी दर्शाता है। यदि लग्न, लग्न भाव का स्वामी, चंद्रमा, सूर्य, दशम भाव और इनके स्वामी बलवान अवस्था में हों, तो व्यक्ति को जीवन में मान-सम्मान प्राप्त होता है।

वैदिक ज्योतिष के पुरातन ग्रन्थों में प्रथम भाव

 

“उत्तर-कालामृत” के अनुसार, “प्रथम भाव मुख्य रूप से मनुष्य के शरीर के अंग, स्वास्थ्य, प्रसन्नता, प्रसिद्धि समेत 33 विषयों का कारक होता है।”

प्रथम भाव को मुख्य रूप से स्वयं का भाव कहा जाता है। यह मनुष्य के शरीर और शारीरिक संरचना का प्रतिनिधित्व करता है। यह हमारे शरीर के ऊपरी हिस्से जैसे चेहरे की बनावट, नाक-नक्शा, सिर और मस्तिष्क आदि को प्रकट करता है। काल पुरुष कुंडली में प्रथम भाव मेष राशि को दर्शाता है, जिसका स्वामी ग्रह मंगल है।

 

सत्याचार्य के अनुसार, कुंडली में प्रथम भाव अच्छे और बुरे परिणाम, बाल्यकाल में आने वाली समस्याएँ, हर्ष व दुःख और देश या विदेश में निवेश की संभावनाओं को प्रकट करता है।

नाम, प्रसिद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा का विचार भी लग्न से किया जा सकता है। उच्च शिक्षा, लंबी यात्राएँ, पढ़ाई के दौरान छात्रावास में जीवन, बच्चों के अनजान और विदेशी लोगों से संपर्कों (विशेषकर पहली संतान के) का बोध भी लग्न से किया जाता है।

 

‘प्रसन्नज्ञान’ में भट्टोत्पल कहते हैं कि जन्म, स्वास्थ्य, हर्ष, गुण, रोग, रंग, आयु और दीर्घायु का विचार प्रथम भाव से किया जाता है।

प्रथम भाव से मानसिक शांति, स्वभाव, शोक, कार्य की ओर झुकाव, दूसरों का अपमान करने की प्रवृत्ति, सीधा दृष्टिकोण, संन्यास, पांच इंद्रियां, स्वप्न, निंद्रा, ज्ञान, दूसरों के धन को लेकर नजरिया, वृद्धावस्था, पूर्वजन्म, नैतिकता, राजनीति, त्वचा, शांति, लालसा, अत्याचार, अहंकार, असंतोष, मवेशी और शिष्टाचार आदि का बोध होता है।

 

मेदिनी ज्योतिष में लग्न से पूरे देश का विचार किया जाता है, जो कि राज्य, लोगों और स्थानीयता को दर्शाता है।

प्रश्न ज्योतिष में प्रथम भाव प्रश्न पूछने वाले को दर्शाता है।

प्रथम भाव का अन्य भावों से अंतर्संबंध

 

प्रथम भाव अन्य भावों से भी अंतर्संबंध बनाता है। यह पारिवारिक धन की हानि को भी दर्शाता है। यदि आप विरासत में मिली संपत्ति को स्वयं के उपभोग के लिए इस्तेमाल करते हैं, अतः यह संकेत करता है कि आप अपने धन की हानि कर रहे हैं। इससे आपके स्वास्थ्य के बारे में भी पता चलता है, अतः आप विरासत में मिले धन को इलाज पर भी खर्च कर सकते हैं। यह मुख्य रूप से अस्पताल के खर्च, कोर्ट की फीस और अन्य खर्चों को दर्शाता है। यह भाव भाई-बहनों की उन्नति और स्वयं अपने प्रयासों, कौशल और संवाद के जरिये तरक्की करने का बोध कराता है।

 

प्रथम भाव करियर, सम्मान, माता की सामाजिक प्रतिष्ठा, आपके बच्चों की उच्च शिक्षा, आपके बच्चों के शिक्षक, आपके बच्चों की लंबी दूरी की यात्राएँ, बच्चों का भाग्य, आपके शत्रुओं की हानि और उन पर आपकी विजय को प्रकट करता है। इसके अतिरिक्त यह कर्ज और बीमारी को भी दर्शाता है।

 

यह भाव आपके जीवनसाथी और उसकी इच्छाओं के बारे में दर्शाता है। इसके अतिरिक्त यह भाव आपके ससुराल पक्ष के लोगों की सेहत और जीवनसाथी की सेहत को भी प्रकट करता है। ठीक इसी प्रकार प्रथम भाव पिता के व्यवसाय से जुड़ी संभावनाओं को दर्शाता, पिता के भाग्य, पिता के बच्चों (यानि आप) और उनकी शिक्षा के बारे में बताता है।

 

लग्न भाव आपकी खुशियां और समाज में आपकी प्रतिष्ठा को भी दर्शाता है। वहीं कार्यस्थल पर अपने कौशल से वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा मिलने वाली प्रशंसा को भी प्रकट करता है। यह बड़े भाई-बहनों के प्रयास और उनकी भाषा, स्वयं के प्रयासों द्वारा अर्जित आय का भी प्रतिनिधित्व करता है। यह भाव धन संचय के अलावा व्यय को भी दर्शाता है।


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