हमारे रोजमर्रा के विषय
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Ramesh Periwal
31st Oct 2020
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हमारी रोजमर्रा के कुछ विषय - भाग १
*गलती*
*जैसे दूसरों की गलतियां निकालने को हम उत्सुक रहते हैं, वैसे ही अपनी गलतियां भी स्वीकार करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिएँ।*
छोटी मोटी गलतियां तो सभी से होती हैं, क्योंकि जीवात्मा का स्वभाव ही ऐसा है, वह अल्पज्ञ है। बहुत थोड़ा जानता है और ज्ञान शक्ति सामर्थ्य बहुत कम होने से, तथा आलस्य लापरवाही आदि के कारण वह सदा सावधान भी नहीं रह पाता, इसलिये गलतियां हो जाती हैं।
जब किसी दूसरे व्यक्ति से गलती हो जाती है, तब तो प्रायः अन्याय, पक्षपात आदि दोषों के कारण, लोग बड़े ही उत्साह से फटाफट दूसरों की गलतियां निकाल देते हैं। इतना भी विचार नहीं करते कि जो हम गलती बता रहे हैं, वह गलती उस व्यक्ति ने की भी है या नहीं! पक्षपात, ईर्ष्या, द्वेष, अभिमान आदि अनेक दोषों के कारण व्यक्ति दूसरे मनुष्य पर जानबूझकर झूठे आरोप भी लगा देता है। ऐसा करना उचित नहीं होता है।
मेरा मानना है कि दूसरे की गलती निकालना भी एक बहुत कठिन कार्य है। इसके लिए तीव्र बुद्धि तथा निष्पक्षता की आवश्यकता होती है। कम बुद्धि वाला व्यक्ति दूसरे की गलती भी नहीं पकड़ पाता। बुद्धिमान और ईमानदार व्यक्ति ही दूसरे की गलतियां पकड़ सकता है या बता सकता है। परंतु सब लोग इतने तीव्र बुद्धि वाले तथा ईमानदार नही होते या तो वे गलतियां पहचान ही नहीं पाते। कई लोग तो छोटी मोटी गलती पकड़ कर उसे बात का बतंगड़ बना कर पेश करते हैं और जानबूझकर बड़े बड़े आरोप भी लगाते हैं। ऐसा करना भी एक कला कहलाती है।
*और* जब स्वयं से गलती हो जाती है तब व्यक्ति अनेक बार समझ नहीं पाता कि मुझसे क्या गलती हुई ? यहाँ भी अपनी गलतियों को समझने के लिए, मानने के लिए बुद्धि और विवेक का होना जरूरी है।
*अनेक बार अपनी गलती समझ में आने पर भी व्यक्ति स्वार्थ, हठ एवं अभिमान आदि दोषों के कारण कुटिल आचरण करता है तथा अपनी गलती को स्वीकार नहीं करता जो अनुचित है। अपनी गलती को स्वीकार करने के लिए शुद्ध हृदय चाहिए, शांत दिमाग चाहिए जो कि बहुत कम लोगों के पास होता है*
इसलिए अधिकतर लोग गलती की उलझन में सारा जीवन बिता देते हैं, दूसरों पर झूठे आरोप लगाते रहते हैं, अपनी गलतियां छिपाते रहते हैं, गलती कभी स्वीकार नहीं करते। ये सभी कार्य मानसिक रूप से हानिकारक होते है और तन, मन, धन, सम्मान, इज्जत, आदि में विघ्नकारक होते है।
इस प्रकार से हानि से बचने तथा जीवन का पूरा लाभ उठाने के लिए व्यक्ति में दो गुण होने आवश्यक हैं यानी
*तीव्र बुद्धि* हो, जिससे वह दूसरों की गलतियों को ठीक प्रकार से समझ सके, दूसरों को स्नेह से उनकी गलतियां बता कर दूर कर सके तथा स्वयं से गलती होने पर उसे *शान्त मन* एवं सहृदयता से स्वीकार कर सके। तभी सब का सम्मान होगा, सबकी उन्नति होगी, सबको सुख मिलेगा और सब आगे बढ सकेंगे।
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*रमेश पेड़ीवाल*
*गंगटोक*