🌺🌼पितृपक्ष🌼🌺 आश्विन मास के कृष्णपक्ष के पन्द्रह दिन "पितृपक्ष" कहलाता है । इन पन्द्रह दिनों तक लोग अपने पितरों को जल देते है तथा मृत्यु तिथि पर श्राद्ध करते है । पितरों का ॠण श्राद्धों के द्वारा चुकाया जाता है । पितृपक्ष श्राद्धों के लिए निश्चित पन्द्रह तिथियों का एक समुह है । वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उस तिथि को श्राद्ध किया जाता है । पूर्णिमा तिथि में देहान्त होने पर भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है । इसी दिन महालय का प्रारंभ माना जाता है । 🍁 श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाय । पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्षभर तक प्रसन्न रहते हैं । पितृपक्ष में श्राद्ध तो मुख्य तिथि को ही होता है किंतु तर्पण प्रतिदिन किया जाता है । शास्त्रों में तीन प्रकार के ॠण का वर्णन है प्रथम देवॠण , द्वितीय ॠषि ॠण व तृतीय पितृॠण आसी हेतु देवताओं तथा ॠषियों के जल देने के अनन्तर पितरों को जल देकर तृप्त किया जाता है । 🍁पितृपक्ष में श्राद्ध की महिमा:— आयुः पुत्रान् यशः स्वर्गं कीर्तिं पुष्टिं बलं श्रियम् । पशून् सौख्यं धनं धान्यं प्राप्नुयात् पितृपूजनात् ।। तथा— आयुः प्रजा धनं वित्तं स्वर्गं मोक्षं सुखानि च । प्रयच्छन्ति तथा राज्यं प्रीता नृणां पितामहाः ।। धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों को पिण्डदान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु , पुत्र-पौत्रादि , यश, स्वर्ग , पुष्टि, बल , लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धन्यादि की प्राप्ति करता है । यही नही पितरों की कृपा से उसे सब प्रकार के समृद्धि , सौभाग्य, सुख-सुविधा तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है । 🍁जो व्यक्ति पितृपक्ष के पन्द्रह दिनों तक श्राद्ध -तर्पण आदि नहीं करते हैं वह अमावास्या को ही अपने पितरों के निमित्त श्राद्धादि सम्पन्न करते है । जिन्हें अपने पितरों की तिथि याद नहीं हो उनके निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावास्या को किया जाता है । अमावास्या के दिन पितर अपने पुत्र के द्वार पर पिण्डदान व श्राद्धादि के आशा में जाते हैं यदि वह वहाँ से खाली लौटते हैं तो वे श्राप देकर चले जाते हैं । इसलिए श्राद्ध का परित्याग न करें , पितरों को संतुष्ट अवश्य करें । 🍁 हमारे पूर्वजों को, पितरों को जब मृत्यु उपरांत भी शांति नहीं मिलती और वे इसी लोक में भटकते रहते हैं, तो पारिवारिक जनों को पितृ दोष लगता है । शास्त्रों में कहा गया है कि पितृ दोष के कुप्रभाव से बचने के लिए अशांत जीवन का उपाय श्राद्ध है तथा इससे बचने के लिए विभिन्न उपाय किए जाते हैं । जिनमें श्राद्ध, तर्पण व तीर्थ यात्राएं आदि तो हैं ही साथ ही विभिन्न प्रकार की साधनाएं एवं प्रयोग किए जाते हैं जिनके संपन्न करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है। 🍁मृत आत्मा की शांति-तर्पण दान देकर उनका आशीर्वाद और कृपा प्राप्त कर सकते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार श्राद्ध कर्म से संतुष्ट होकर पितर हमें आयु, पुत्र, यश, वैभव, समृद्धि देते हैं। स्कंद पुराण के अनुसार श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों के द्वारा ही होती है। श्राद्ध के पिण्डों को गाय, कौवा अथवा अग्रि या पानी में छोड़ दें। पितृ दोष हो तो गृह एवं देवता भी काम नहीं करते तथा एेसे जातक का जीवन शापित एवं अशांत हो जाता है। जो व्यक्ति माता-पिता का वार्षिक श्राद्ध नहीं करता उसे घोर नरक की प्राप्ति होती है । शास्त्रों में कहा गया है कि जिस व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटना में, विष से अथवा शस्त्र से हुई है उनका श्राद्ध चतुर्दशी के दिन करना चाहिए। 🍁जिन व्यक्तियों को अपने माता-पिता की मृत्यु तिथि ज्ञात नहीं है, एेसे व्यक्ति को श्राद्ध पक्ष की अमावस्या को श्राद्ध कर्म संपन्न करना चाहिए। नवमी के दिन अपनी मृत मां, दादी, परदादी इत्यादि का श्राद्ध करना चाहिए। 🍁जब मृत्यु के बाद मृत आत्माओं की इच्छाओं की पूर्ति नहीं होती तो उनकी आत्मा अप्रत्यक्ष रुप से प्रभाव दिखाती है, जिसके कारण अशुभ घटनाएं घटित होती हैं। इसे पितृदोष कहा जाता है। इस दोष के कारण दुर्भाग्य में भी वृद्धि होती है। पितृ दोष एक ऐसा दोष है जो अधिकतर कुंडली में होता है। इस प्रकार का दोष होने पर व्यक्ति को कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लोग पितृदोषों से मुक्ति हेतु वाराणसी में लोग त्रिपीण्डी श्राद्ध कराते हैं एऊ उसका प्रत्यक्ष फल भी प्राप्त करते हैं । 🍁शास्त्रानुसार :- "पुन्नान् नरकात् त्रायते इति पुत्रम‘‘ एवं ’’पुत्रहीनो गतिर्नास्ति" । अर्थात: जिनके पुत्र नहीं होते हैं उन्हें मरोणोपरांत मुक्ति नहीं मिलती है । पुत्र द्वारा किए श्राद कर्म से ही मृत व्यक्ति को पुम् नामक नर्क से मुक्ति मिलती है । इसलिए सभी लोग पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखते हैं । 🍁इस वर्ष पितृपक्ष 13 सितम्बर {शुक्रवार} से प्रारंभ है :— 13 सितम्बर- पूर्णिमा निमित्त श्राद्ध । 14 सितम्बर - प्रतिपदा निमित्त श्राद्ध । 15 सितम्बर - द्वितीया निमित्त श्राद्ध । 16 सितम्बर- तृतीया निमित्त श्राद्ध । 18 सितम्बर - चतुर्थी निमित्त श्राद्ध । 19 सितम्बर- पंचमी निमित्त श्राद्ध । 20 सितम्बर- षष्ठी निमित्त श्राद्ध । 21 सितम्बर- सप्तमी निमित्त श्राद्ध । 22 सितम्बर- अष्टमी निमित्त श्राद्ध । 23 सितम्बर- मातृ नवमी निमित्त श्राद्ध । 24 सितम्बर- दशमी एवं एकादशी निमित्त श्राद्ध । 25 सितम्बर- द्वादशी निमित्त श्राद्ध । 26 सितम्बर- त्रयोदशी निमित्त श्राद्ध । 27 सितम्बर- चतुर्दशी निमित्त श्राद्ध (शस्त्र आदि से मृत व्यक्ति का श्राद्ध) । 28 सितम्बर- अमावास्या निमित्त श्राद्ध व पितृविसर्जन ।